भाजपा नेता का कोर्ट से अनुरोध, वंदे मातरम को भी मिले जन गण मन जैसा सम्मान
उपाध्याय ने इसमे कहा है कि राष्ट्र गीत ने स्वतंत्रता संग्राम में महती भूमिका निभाई थी और पहली बार, 1896 में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इसका गायन किया था। याचिका में कहा गया है कि ‘जन गण मन’ और ‘वंदे मातरम’ को बराबर सम्मान देना होगा। ‘जन गण मन’ में जिन भावनाओं को व्यक्त किया गया है, उन्हें राष्ट्र को ध्यान में रखते हुए अभिव्यक्त किया गया है।
नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय में सोमवार को एक याचिका दायर कर अनुरोध किया गया है कि वह राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्र गान ‘जन गण मन’ के समान दर्जा देने वाला कानून बनाने का निर्देश केन्द्र सरकार को दे। भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने यह याचिका दायर की है। याचिका में अनुरोध किया गया है कि बंकिम चन्द्र चटर्जी लिखित राष्ट्र गीत ‘वंदे मातरम’ को रवीन्द्र नाथ ठाकुर लिखित राष्ट्र गान ‘जन गण मन’ के समान ही सम्मान दिया जाए। इस याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होने की संभावना है।
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उपाध्याय ने इसमे कहा है कि राष्ट्र गीत ने स्वतंत्रता संग्राम में महती भूमिका निभाई थी और पहली बार, 1896 में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इसका गायन किया था। याचिका में कहा गया है कि ‘जन गण मन’ और ‘वंदे मातरम’ को बराबर सम्मान देना होगा। ‘जन गण मन’ में जिन भावनाओं को व्यक्त किया गया है, उन्हें राष्ट्र को ध्यान में रखते हुए अभिव्यक्त किया गया है। उसमें कहा गया है, वहीं, ‘वंदे मातरम’ में जिन भावनाओं को अभिव्यक्ति दी गई है वह देश के चरित्र को बताता है और उसे भी बराबरी का सम्मान मिलना चाहिए। याचिका में इस उद्घोषणा की मांग की गई है कि ‘वंदे मातरम’ को ‘जन गण मन’ के बराबर सम्मान दिया जाएगा और दोनों का दर्जा समान होगा।
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