कांग्रेस मुक्त भारत से कैप्टन मुक्त कांग्रेस की ओर कदम बढ़ाती बीजेपी!

bjp-moving-towards-congress-free-india-to-captain-free-congress
अभिनय आकाश । Jul 27 2019 4:04PM

कांग्रेस में उचित सम्मान और ओहदा पाने की लालसा के साथ शामिल हुए सिद्धू को तवज्जों देने के लिए राहुल कैप्टन को राजी नहीं कर सके। हर बात में शेरो शायरी पढ़ने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टन ने अपने दांव से चित्त कर दिया और पंजाब में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का ठीकरा सिद्धू के सिर फोड़ते हुए उनका मंत्रालय बदल दिया जिसके बाद अपने घटे कद से आहत सिद्धू के सामने इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। लेकिन केंद्रीय भूमिका में लाने की खबरों के बाद कुछ दिन मौन रहे सिद्धू फिर से सक्रिय हो गए हैं। अपने समर्थकों से मुलाकात करते हुए सिद्धू ने कहा कि उन्होंने पंजाब मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया है कांग्रेस पार्टी से नहीं।

राजनीति संभावनाओं का खेल है और इसमें कब क्या होगा इसका अंदाजा लगाना आखिरी क्षण तक बेहद मुश्किल है। वैसे तो राजनेताओं का पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल होना अब आम बात हो गई है। लेकिन अगर किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री और पार्टी की सबसे मजबूत कड़ी ही उससे अलग होकर किसी और दल में चले जाए तो यह बड़ी बात होगी। पटियाला राज घराने के वारिस और पंजाब में कांग्रेस की सबसे मजबूत कड़ी कैप्टन अमरिंदर सिंह क्या भाजपा की सियासी पिच पर आने वाले दिनों में बैटिंग करते दिख सकते हैं? ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि अमरिंदर सिंह और भाजपा के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है। उनकी एंट्री को लेकर भी सियासी हलकों में चर्चा है। दरअसल, यह इन कयासों के पीछे की वजह क्रिकेट और टीवी के हंसोड़ से सियासतदार बने नवजोत सिंह सिद्धू को केंद्र में नई जिम्मेदारी दिए जाने की खबरों से हवा मिल रही है। पंजाब कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पंजाब कांग्रेस में अलग-थलग पड़ गए नवजोत सिंह सिद्धू को कांग्रेस में बड़ा ओहदा मिलने की कई खबरें चर्चा में है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी की होने वाली बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के साथ ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान होने के संकेत पार्टी सूत्रों से मिले हैं, जिसमें नवजोत सिद्धू समेत पंजाब के तीन चेहरों को जगह मिल सकती है। बता दें कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के निधन के चलते वर्किंग कमेटी की बैठक अगले हफ्ते के लिए टल गई थी। इस बैठक में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारियों का निर्धारण भी होना है। 

इसे भी पढ़ें: HC का आदेश, लिखित अनुमति के बिना लाउडस्पीकर नहीं कर सकेंगे इस्तेमाल

अमरिंदर सिंह और सिंद्धू के बीच की रार अब पार्टी के अंदरूनी हलकों से निकल कर सार्वजनिक हो चुकी है। गौर हो कि अमरिंदर सिंह ने पंजाब में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के लिए सिद्धू को ज़िम्मेदार ठहराते हुए उनका मंत्रालय (शहरी निकाय) बदल दिया था। लेकिन सिद्धू इसके विरोध में नए मंत्रालय (बिजली एवं ऊर्जा) का कार्यभार नहीं संभाला और फिर इस्तीफा सौंप दिया। वैसे तो ऐसा लग रहा था कि नवजोत सिंह सिद्धू और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच लोकसभा चुनाव के समय से चला आ रहा टकराव सिद्धू के मंत्रिमंडल से इस्तीफे के साथ समाप्त हो जाएगा। लेकिन इसमें गौर करने वाली बात ये थी कि सिद्धू ने अपना इस्तीफा राहुल गांधी को क्यों भेजा? वो भी जब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं? नियमानुसार इन्हें अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री, स्पीकर या फिर राज्यपाल को क्यों नहीं भेजा? इससे पहले सिद्धू ने दिल्ली में राहुल और प्रियंका से मुलाकात की तस्वीर भी ट्वीट की थी। जिसके बाद से राहुल और प्रियंका द्वारा उन्हें प्रदेश की सियासत से केंद्रीय भूमिका में लाए जाने की बात चलने लगी थी।  

इसे भी पढ़ें: अमरिंदर ने सिद्धू का इस्तीफा स्वीकार किया, विपक्ष ने कहा- ठोको ताली

लेकिन पार्टी नेतृत्व का सिद्धू को कोई बड़ी जिम्मेदारी दिया जाना कैप्टन को नागवार गुजर सकता है। कहा तो ये भी जाता है कि जब सिद्धू कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर रहे थे तब कैप्टन अमरिंदर सिंह इसके पक्ष में नहीं थे। लेकिन पार्टी आलाकमान के सामने इनकी नहीं चली। फिर मामला आया सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर को लोकसभा चुनाव में टिकट देने का जिसको लेकर सिद्धू और उनकी पत्नी ने अमरिंदर सिंह पर आरोप लगाए कि जान-बूझकर अमृतसर से उन्हें टिकट नहीं दिया गया। गौरतलब है कि सेना से कांग्रेस की पंजाब टीम की कमान और फिर प्रदेश के कप्तान बने अमरिंदर सिंह ने पूरे दम-खम के साथ विधानसभा चुनाव 2017 में कमान संभाल कर इस चुनाव को कांग्रेस के लिए वीआईपी बना दिया था और उम्मीदों के नए दरवाजे भी खोल दिए थे। जब दिल्ली में अभूतपूर्व सफलता के बाद आम आदमी पार्टी पंजाब विजय के सपने संजोये थी उस वक्त फिर से एक बार अकाली और भाजपा की सरकार के दावे कर रही थी। लेकिन चुनाव से पहले ही यह तो साफ हो गया था कि अकाली-भाजपा के सत्ता वापसी के आसार बेहद कम हैं, मगर आप की एंट्री ने पंजाब के चुनाव को त्रिकोणीय जरूर बना दिया था। सारे कयासों के बावजूद कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में शानदार जीत दर्ज की और पार्टी की जीत का सूखा भी समाप्त किया। लेकिन पंजाब के लिए खुलकर फैसले लेने की छूट और केंद्रीय नेतृत्व के ज्यादा दखल करने नहीं देने जैसी बातें कैप्टन को लेकर अक्सर कही जाती रही हैं।

इसे भी पढ़ें: सिद्धू के इस्तीफे पर बुधवार को फैसला लेंगे पंजाब के सीएम अमरिन्दर सिंह

कैप्टन अमरिंदर सिंह सेंट्रल लीडरशिप को, खासकर राहुल गांधी को बहुत ज्यादा भाव नहीं देते हैं। दोनों के बीच असहज रिश्तों का ही नतीजा था कि कभी राहुल ने उनके कद और प्रभाव को कम करने के लिहाजे से कैप्टन के प्रतिद्वंदी प्रताप बाजवा को कमान सौंपी थी। लेकिन विधानसभा चुनाव के मौके पर जब यह लगा कि इस फैसले से नाराज कैप्टन कांग्रेस से अलग हो सकते हैं और बाजवा में पार्टी को जिताने का अभी दम नहीं है तो राहुल को हथियार डालना पड़ गया था। लेकिन सिद्धू को लेकर राहुल घर्मसंकट में फंस गए हैं। सिद्धू को अति महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है।

इसे भी पढ़ें: यदि सिद्धू अपना काम नहीं करना चाहते, तो मैं कुछ नहीं कर सकता: अमरिंदर

कांग्रेस में उचित सम्मान और ओहदा पाने की लालसा के साथ शामिल हुए सिद्धू को तवज्जों देने के लिए राहुल कैप्टन को राजी नहीं कर सके। हर बात में शेरो शायरी पढ़ने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टन ने अपने दांव से चित्त कर दिया और पंजाब में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का ठीकरा सिद्धू के सिर फोड़ते हुए उनका मंत्रालय बदल दिया जिसके बाद अपने घटे कद से आहत सिद्धू के सामने इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। लेकिन केंद्रीय भूमिका में लाने की खबरों के बाद कुछ दिन मौन रहे सिद्धू फिर से सक्रिय हो गए हैं। अपने समर्थकों से मुलाकात करते हुए सिद्धू ने कहा कि उन्होंने पंजाब मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया है कांग्रेस पार्टी से नहीं। वहीं कांग्रेस के सिद्धू को कोई और बड़ी भूमिका में लाया जाना कैप्टन अमरिंदर सिंह को कितना स्वीकार होगा यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे खबरें यह भी आ रही हैं कि भाजपा भी कैप्टन के साथ संपर्क में है। ऐसे में पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह कांग्रेस मुक्त भारत से कैप्टन मुक्त कांग्रेस का दांव खेल दें, इसके बारे में कहा नहीं जा सकता। वैसे भी राजनीति संभावनाओं का खेल है। 

 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़