बंबई हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण को वैध ठहराया, फडणवीस सरकार को राहत

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[email protected] । Jun 27 2019 6:44PM

अदालत ने कहा, ‘‘हम व्यवस्था देते हैं और घोषित करते हैं कि राज्य सरकार के पास सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) के लिए एक पृथक श्रेणी सृजित करने और उन्हें आरक्षण देने की विधायी शक्ति है।''''

मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा लेकिन कहा कि आरक्षण को वर्तमान 16 प्रतिशत से घटाकर 12 से 13 प्रतिशत किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने कहा कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुरूप आरक्षण का प्रतिशत कम किया जाना चाहिए। इससे पहले, आयोग ने शिक्षा में 12 जबकि नौकरियों में 13 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी।

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अदालत ने कहा, ‘‘हम व्यवस्था देते हैं और घोषित करते हैं कि राज्य सरकार के पास सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) के लिए एक पृथक श्रेणी सृजित करने और उन्हें आरक्षण देने की विधायी शक्ति है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, हमारा कहना है कि आयोग की सिफारिश के अनुरूप, 16 प्रतिशत (आरक्षण) को कम करके 12 से 13 प्रतिशत किया जाना चाहिए।’’ अदालत ने कहा कि राज्य की विधायी शक्ति संविधान के अनुच्छेद 342 (ए) के संशोधन से प्रभावित नहीं होती। अनुच्छेद 342 (ए) में 102वें संशोधन के अनुसार, अगर किसी समुदाय का राष्ट्रपति द्वारा तैयार सूची में नाम शामिल है तब ही उसे आरक्षण दिया जा सकता है।

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अदालत ने कहा कि उसे जानकारी है कि उच्चतम न्यायालय अतीत में कह चुका है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, अगर विशेष परिस्थितियां गणनायोग्य डेटा पर आधारित हों तो ऐसे में 50 प्रतिशत (की सीमा) को पार किया जा सकता है।’’ फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद, राज्य सरकार ने अदालत से कहा कि वह परास्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रमों में 16 प्रतिशत तक आरक्षण के तहत प्रवेश पहले ही दे चुकी है।

सरकारी वकील वीए थोरट ने इस साल इन पाठ्यक्रमों में 16 प्रतिशत आरक्षण बनाए रखने की अनुमति मांगी। इस पर पीठ ने सरकार से इस संबंध में एक अलग आवेदन दायर करने को कहा। अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। महाराष्ट्र विधानसभा ने 30 नवंबर 2018 को एक विधेयक पारित किया था जिसमें मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। राज्य सरकार ने इस समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया था। यह आरक्षण राज्य में पहले से मौजूद कुल 52 प्रतिशत आरक्षण से इतर होगा। आरक्षण को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दायर हुई थीं जबकि कुछ अन्य याचिकाएं इसके समर्थन में दायर हुई थीं। अदालत ने छह फरवरी को सभी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी और अप्रैल में इन्हें फैसले के लिए रख दिया था।

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