CAPF अधिकारियों ने अपने साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए शाह को लिखा खत

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[email protected] । Aug 11 2019 6:02PM

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के अधिकारियों ने एक सोशल मीडिया अभियान शुरू कर कहा है कि उच्चतम न्यायालय के एक हालिया आदेश और केंद्रीय कैबिनेट से इसे मंजूरी मिलने के बावजूद उनका मुख्यालय उन्हें संगठित सेवा लाभ प्रदान करने की प्रक्रिया में बाधा डाल रहा है।

नयी दिल्ली। सीएपीएफ के कई अधिकारियों ने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है और अपने सेवा लाभों को प्राप्त करने में आईपीएस अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले कथित भेदभाव को खत्म करने के लिए उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के अधिकारियों ने एक सोशल मीडिया अभियान शुरू कर कहा है कि उच्चतम न्यायालय के एक हालिया आदेश और केंद्रीय कैबिनेट से इसे मंजूरी मिलने के बावजूद उनका मुख्यालय उन्हें संगठित सेवा लाभ प्रदान करने की प्रक्रिया में बाधा डाल रहा है। साथ ही, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों की संख्या घटा कर निगरानी स्तर पर अधिक पदों को आवंटित करने में भी अवरोध पैदा किया जा रहा है।

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शाह को भेजे ऐसे कई आधिकारिक पत्र पीटीआई ने हासिल किये हैं। इनमें सीएपीएफ अधिकारियों ने वांछित कार्रवाई के लिए उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की है, ताकि उनके भर्ती नियम में संशोधन हो और एक संगठित केंद्रीय सेवा के लिए वैधता की तर्ज पर एक नयी कैडर समीक्षा हो। नये भर्ती नियमों को बनाए जाने से इन अधिकारियों को निगरानी रैंक में अधिक पद प्राप्त होंगे, जिसे अभी मुख्य रूप से आईपीएस अधिकारी देखते हैं। सीआरपीएफ कैडर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अधिकारियों ने मंत्री से अनुरोध किया है कि हाल ही में घोषित उनके वाजिब सेवा लाभ उसी तरह से सुनिश्चित किया जाए, जिस तरह से अनुच्छेद 370 पर एक साहसिक फैसले की घोषणा का क्रियान्वयन किया गया।

उन्होंने कहा कि अधिकारी शाह को सीधे पत्र लिख रहे हैं क्योंकि केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी के बावजूद इन बलों के मुख्यालय उन्हें पूर्ण लाभ प्रदान करने वाली कार्यवाही को या तो धीमी गति से कर रहे हैं या उन्हें पूरा करने को अनिच्छुक हैं। दरअसल, यह प्रतिनियुक्ति पर इन बलों में शामिल होने वाले आईपीएस अधिकारियों की करियर संभावनाओं को प्रभावित करेगा। वहीं, सीएपीएफ में कैडर अधिकारियों के लिए इन कार्यवाहियों को देख रहे एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने उनकी दलीलों का खंडन करते हुए कहा कि भर्ती नियमों की समीक्षा फौरन नहीं की जा सकती क्योंकि कुछ स्पष्टीकरण अपीलें उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं। 

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उन्होंने कहा कि आईपीएस एक केंद्रीय सेवा है और उसका एक अखिल भारतीय सेवा स्वरूप है। इसे केंद्रीय सेवाओं में उनकी कैडर क्षमता के मुताबिक पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिए जाने की जरूरत है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना सभी सीएपीएफ की गंभीर कोशिश है कि कैडर अधिकारियों को उनका हक उच्चतम न्यायालय के आदेश और सरकार की हालिया अधिसूचना के मुताबिक मिले। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के कुछ अधिकारियों ने रिट याचिका के साथ शीर्ष न्यायालय का रूख कर नयी कैडर समीक्षा का आदेश देने के लिए निर्देश देने की मांग की, ताकि वे उप महानिरीक्षक (डीआईजी) रैंक से अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) रैंक तक के पद प्राप्त कर सकें। 

गृह मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि अन्य बलों में कैडर अधिकारियों और आईपीएस अधिकारियों के बीच इसी तरह के गतिरोध देखने को मिले हैं। उन्होंने कहा कि हम इन घटनाक्रमों से अवगत हैं और इन्हें ठीक करने की कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने तीन जुलाई को घोषणा की थी कि सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी जैसे बलों के कैडर अधिकारियों को ‘नॉन फंक्शनल फिनांशियल अपग्रेडेशन’ दिया जाएगा और उन्हें एक संगठित ग्रुप ए सेवा के रूप में श्रेणीबद्ध किया जाएगा। यह फैसला कैडर अधिकारियों द्वारा शुरू की गई दशक भर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आया। दरअसल, वे एक समान स्तर की मांग कर रहे थे। साथ ही, अपने सीनियर रैंक में आईपीएस अधिकारियों के वर्चस्व को खत्म करने की मांग कर रहे थे। नये आदेश से करीब 11,000 सेवारत कैडर अधिकारियों को लाभ होगा। साथ ही, पांचों सीएपीएफ से 2006 से सेवानिवृत्त होने वाले इस कैडर के सैकड़ों अधिकारियों को भी लाभ मिलेगा। 

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