कोलेजियम नहीं, न्यायपालिका से जुड़े मुद्दे चिंता का विषय हैं: सुप्रीम कोर्ट

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[email protected] । Jul 25 2019 7:24PM

पीठ ने सवाल किया, ‘‘त्रिपुरा, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में वास्तविकता क्या है? मध्य प्रदेश जैसे राज्य अभी भी आरोपी और पीड़ित के बीच अदालत में एक पर्दा डालकर काम करने में यकीन करते हैं।’’

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करने वाली कोलेजियम की कार्यशैली नहीं बल्कि अधीनस्थ अदालतों में बड़ी संख्या में न्यायिक अधिकारियों के पदों की रिक्तियां और बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे मुद्दे न्यायपालिका के लिये चिंता का विषय है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने देश में बच्चों के बलात्कार के मामलों की संख्या में तेजी से हुयी वृद्धि से संबंधित मामले पर विचार के दौरान अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि राष्ट्रीय राजधानी से दूर के स्थानों पर न्यायिक अधिकारियों को बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। पीठ ने सवाल किया, ‘‘त्रिपुरा, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में वास्तविकता क्या है? मध्य प्रदेश जैसे राज्य अभी भी आरोपी और पीड़ित के बीच अदालत में एक पर्दा डालकर काम करने में यकीन करते हैं।’’

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पीठ ने कहा कि दिल्ली में साकेत की जिला अदालत जैसे अदालत कक्षों की तुलना देश के दूसरे हिस्सों की अदालत के कक्षों से नहीं की जा सकती। पीठ ने कहा, ‘‘साकेत की अदालत में आपके पास गवाह के लिये कक्ष हो सकता है लेकिन हम उन राज्यों की बात कर रहे हैं जहां ये सुविधायें नहीं है। हमारे यहां ऐसे स्थान भी हैं जहां मजिस्ट्रेट चार फुट के कमरे में बैठते हैं। हमने यह देखा है और अदालतों की यही हकीकत है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि देश में न्यायिक अधिकारियों के पांच हजार से अधिक पद रिक्त हैं और विधायिका एक के बाद दूसरा नया कानून बना रही है। न्यायाधीश पर मुकदमो का बोझ बढ़ रहा है और तमाम कानूनों में प्रावधान किया जाता है कि इससे संबंधित मामलों में छह महीने या एक साल के भीतर निर्णय हो। पीठ ने कहा, ‘‘कोई भी न्यायिक सुविधाओं और संरचनाओं पर ध्यान नहीं दे रहा है। ये ऐसे मुद्दे हैं जो न्यायपालिका के लिये अधिक चिंताजनक हैं न कि शीर्ष अदालत की कोलेजियम।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हम मार्ग से भटक गये हैं।’’

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शीर्ष अदालत ने कोलेजियम के बारे में हाल के वर्षो में कहे जा रहे एक वाक्य का जिक्र करते हुये कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में कोलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति की खूब आलोचना की जाती है और कहा जाता है कि शीर्ष अदालत के पांच और तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश उच्चतर न्यायपालिका के लिये न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये नामों की सिफारिश करते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली की जिला अदालतों में सबसे बेहतरीन सुविधाये हैं लेकिन पूर्वोतर और ओडिशा जैसे स्थानों पर इस तरह की सुविधायें उपलब्ध नहीं है। पोक्सो के तहत मुकदमों की सुनवाई कानून का पालन करने के लिये एक पर्दा डालकर की जा रही है। कानून के तहत सुनवाई के दौरान पीड़ित या आरोपी का बयान दर्ज करते समय दोनों एक दूसरे को नजर नहीं आने चाहिए।

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