बीजेपी और शिवसेना में टकराव, क्या होगा इसका अंजाम?
केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर दिए गए बयान के बाद गिरफ्तारी से राजनीति तेज हो गई है।
केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर दिए गए बयान के बाद गिरफ्तारी से राजनीति तेज हो गई है। विवादित बयान के बारे में बात करें तो केंद्रीय मंत्री राने ने रायगढ़ में जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर कहा था -यह शर्मनाक बात है कि मुख्यमंत्री को यह नहीं पता कि आजादी को कितने साल हो गए हैं, भाषण के दौरान वह पीछे मुड़कर इस बारे में पूछते नजर आए थे। अगर मैं वहां होता तो उन्हें 1 थप्पड़ मारता।
राणे ने दावा किया कि 15 अगस्त को जनता को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री यह भूल गए थे कि आजादी को कितने साल पूरे हो गए हैं। केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के खिलाफ महाराष्ट्र के कई पुलिस थानों में एफ आई आर दर्ज किए जाने को लेकर अब बीजेपी और राज्य पुलिस आमने सामने आ गई हैं । बंगाल में जिस तरह से टीएमसी बनाम बीजेपी की लड़ाई देखी गई थी उसी तरह से यह जंग अब महाराष्ट्र में भी दिखाई दे रही है। राणे की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी और शिवसेना के बीच एक बड़ा टकराव माना जा रहा है ।
बीजेपी ने राणा की गिरफ्तारी को लेकर नाराजगी जाहिर की है ।बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी संवैधानिक मूल्यों का हनन है, साथ ही जेपी नड्डा ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से ना तो हम डरेंगे ,ना दबेंगे।
भाजपा को जन आशीर्वाद यात्रा में जनता का अपार समर्थन मिल रहा है। हम लोकतांत्रिक ढंग से लड़ते रहेंगे और यात्रा जारी रहेंगी।
हाल ही में ओबीसी आरक्षण को लेकर सीएम ठाकरे की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में दोनों दलों की ओर से चीजों को सम्मान करने की कोशिशों के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी नहीं चाहती कि मौजूदा दौर में उद्धव ठाकरे से नरेंद्र मोदी के जो सहज रिश्ते हैं या रहे हैं उनमें किसी तरह की कोई कड़वाहट नजर आए।
बीजेपी का नेता होने के नाते यहां नारायण राणे के साथ खड़ा होना बीजेपी की मजबूरी भी माना जा सकता है। लेकिन बीजेपी के तमाम नेता राणा के बयान से शुरू से ही दूरी बनाए हुए हैं ।खुलकर भले ही बीजेपी में कोई नेता नारायण राणे की आलोचना नहीं कर रहा, लेकिन आंदोलन अंदरूनी तौर पर सभी को यह शैली नागवार गुजरी है। हालांकि पुणे के बीजेपी सांसद गिरीश बापट ने नारायण राणे का नाम लिए बिना कहा था कि राजनीति में भाषा के संयम का होना जरूरी है।
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