राम मंदिर के सहारे खोई जमीन वापस पाने की उम्मीद में कांग्रेस
मुख्य विपक्षी पार्टी को लगता है कि न्यायालय के फैसले के बाद अब उस मुद्दे का पूरी तरह पटाक्षेप हो जाएगा जो दशकों से भाजपा के लिए फायदे का मुद्दा रहा है।
नयी दिल्ली। अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले से भले ही एक बहुत पुराने विवाद का अंत हो गया हो, लेकिन कांग्रेस इसके जरिए अपने बारे में बनी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की धारणा को तोड़कर बहुसंख्यक समाज में लोकप्रियता का ग्राफ एक बार फिर से बढ़ाने के अवसर पर के तौर पर देख रही है। शायद यही वजह है कि निर्णय आने के तत्काल बाद उसने विवादित स्थान पर मंदिर निर्माण का खुलकर समर्थन किया।
"Statement of the Congress Working Committee:
— Congress (@INCIndia) November 9, 2019
The Indian National Congress respects the verdict of the Supreme Court in the Ayodhya case." : @rssurjewala pic.twitter.com/BWWns0PzAx
मुख्य विपक्षी पार्टी को लगता है कि न्यायालय के फैसले के बाद अब उस मुद्दे का पूरी तरह पटाक्षेप हो जाएगा जो दशकों से भाजपा के लिए फायदे का मुद्दा रहा है। फैसला आने के बाद पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से बातचीत में खुलकर कहा कि कांग्रेस अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की पक्षधर है।वर्ष 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा क्योंकि उस वक्त यह धारणा बनी कि केंद्र की सत्ता में रहते हुए वह इस घटना को रोकने में नाकाम रही। कांग्रेस का दावा है कि 26 साल पहले उसने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की पहल की थी और सबकी सहमति या अदालती निर्णय से राम मंदिर का निर्माण चाहती थी। उसका आरोप है कि भाजपा ने ऐसा होने नहीं दिया। मुख्य विपक्षी पार्टी के नेताओं ने यह दावा किया कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए एक फरवरी, 1986 को विवादित स्थल पर पूजा की अनुमति मिली और ताला खोला गया। इसके बाद 1989 में शिलान्यास हुआ।
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कांग्रेसजनों का यह भी कहना है कि केंद्र में उसकी सरकार रहते हुए जनवरी, 1993 में अयोध्या अधिनियम लेकर आई जिसके तहत 2.77 एकड़ के विवादित क्षेत्र और आसपास की भूमि को अधिग्रहित किया गया। उस वक्त केंद्र में एस बी चव्हाण गृह मंत्री थे। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘26 साल के बाद उच्चतम न्यायालय ने वही किया जो कांग्रेस ने 1993 में अयोध्या अधिनियम के तहत करने की कोशिश की थी जिसमें राम मंदिर, मस्जिद और संग्रहालय बनाया जाना था। लेकिन भाजपा ने भारत सरकार द्वारा मंदिर निर्माण का विरोध किया और यहां तक कि भाजपा अध्यक्ष एस एस भंडारी ने अधिनियम को पक्षपातपूर्ण करार दिया।’’ उन्होंने यह दावा भी किया कि 1989 में राजीव गांधी ने मस्जिद के निकट मंदिर निर्माण की अनुमति दी और लोकसभा एवं उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचार का आगाज ‘राम राज्य’ की स्थापना के वादे से किया। राजीव गांधी के कार्यकाल में अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल रहे पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार नेकहा, ‘‘ इस विवादित मुद्दे के चलते पैदा हुए ध्रुवीकरण, सामाजिक एवं धार्मिक विभाजन के कारण कांग्रेस भारी कीमत चुकानी पड़ी है।’’ उन्होंने कहा कि इस फैसले से अगर कोई पार्टी राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करती है तो वह अच्छा नहीं करती है।
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कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि अब लोगों के लिए रोजी-रोटी खासकर अर्थव्यवस्था की स्थिति बड़ा मुद्दा है और यह बात महाराष्ट्र एवं हरियाणा विधानसभा चुनावों में साबित हुई।पूर्व गृह राज्य मंत्री सुबोधकांत सहाय ने दावा किया कि केंद्र इस मुद्दे का हमेशा सर्वसम्मति से हल चाहती थी, लेकिन भाजपा ने इसका समाधान नहीं होने दिया ताकि वह इसे भावनात्मक एवं वैचारिक मुद्दा बना सके। पूर्व केंद्रीय मंत्री के के तिवारी कहते हैं, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने मामले का समाधान कर दिया है और अब भाजपा इसमें बहुत ज्यादा राजनीति नहीं कर सकती है। कांग्रेस ने इस मुद्दे का ध्रुवीकरण नहीं किया। वह हमेशा से मंदिर के पक्ष में रही।’
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