अदालतें यौन शोषण के विरुद्ध शिकायत के अधिकार की रक्षा करें: न्यायालय

Supreme Court

न्यायालय ने कहा, “कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण (रोकथाम, निषेध और शिकायत) अधिनियम 2013 के तहत यौन प्रकृति के कदाचरण पर दंड देने का प्रावधान है और सभी सार्वजनिक तथा निजी संस्थानों को शिकायत के लिए उचित व्यवस्था बनाने को कहा गया है।

नयी दिल्ली|  उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि अदालतें यौन शोषण के विरुद्ध शिकायत के अधिकार की रक्षा करें जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, सभी के जीने के अधिकार के एक भाग और सम्मान के अधिकार के रूप में निहित है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों के लिए यह भी अहम है कि वे इसका ध्यान रखें कि कार्यस्थलों पर यौन शोषण में ताकत के खेल भी होते हैं।

न्यायालय ने कहा कि यदि अपील करने के तरीके इस प्रकिया को सजा में तब्दील कर देते हैं तो यौन शोषण से पीड़ित व्यक्ति के लिए सुधारात्मक कानून किसी काम के नहीं रहेंगे।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की एक पीठ ने कहा, “हम इस पर भी ध्यान दिलाना चाहते हैं कि ऐसा देखने में आ रहा है कि सेवा नियमावली की अत्यधिक तकनीकी व्याख्या के चलते यौन कदाचरण में की गयी कार्यवाही की वैधता समाप्त हो रही है।” न्यायालय ने यह टिप्पणी कलकत्ता उच्च न्यायालय के 18 दिसंबर 2018 को दिए गए आदेश को निरस्त करते हुए दी।

उक्त आदेश में, जूनियर अधिकारी के यौन शोषण के आरोपी, बीएसएफ के एक हेड कांस्टेबल के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई को खारिज कर दिया गया था।

न्यायालय ने कहा, “कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण (रोकथाम, निषेध और शिकायत) अधिनियम 2013 के तहत यौन प्रकृति के कदाचरण पर दंड देने का प्रावधान है और सभी सार्वजनिक तथा निजी संस्थानों को शिकायत के लिए उचित व्यवस्था बनाने को कहा गया है।

हालांकि, सुधारात्मक कानून यौन शोषण से पीड़ित व्यक्तियों के लिए किसी काम के नहीं होंगे अगर अपील करने के तरीके को सजा की प्रक्रिया में तब्दील कर दिया जाएगा।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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