कुष्ठ रोग के आधार पर तलाक नहीं हो सकेगा: संबंधित विधेयक को संसद की मंजूरी
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018 में उपभोक्ताओं के अधिकारों को मजबूती देने और उत्पाद में खामी तथा सेवाओं में कोताही के बारे में की गई शिकायतों के निवारण के लिए एक व्यवस्था का भी प्रावधान है।
नयी दिल्ली। कुष्ठ रोग के आधार पर अब तलाक नहीं लिया जा सकेगा। संसद ने इस रोग को तलाक का आधार नहीं मानने के प्रावधान वाले एक विधेयक को आज मंजूरी दे दी। बजट सत्र के अंतिम दिन राज्यसभा में इस विधेयक पर सहमति बनने के बाद इसे बिना चर्चा के पारित कर दिया गया। बहरहाल, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पर सहमति नहीं बनी। बुधवार को सरकार ने इस विधेयक को भी पारित कराने पर जोर दिया। उच्च सदन में पहले वैयक्तिक कानून (संशोधन) विधेयक 2018 को ध्वनि मत से पारित किया गया। फिर सभापति एम वेंकैया नायडू ने खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान से उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पारित करवाने के लिए पेश करने को कहा। पासवान जैसे ही इसे पेश करने के लिए खड़े हुए तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों के सदस्यों ने विभिन्न मुद्दों पर हंगामा शुरू कर दिया। सभापति ने हंगामे की वजह से बैठक दस मिनट के लिए स्थगित कर दी।
इसे भी पढ़ें: नागरिकता विधेयक और तीन तलाक संबंधी विधेयक हो जाएंगे निष्प्रभावी
बैठक पुन: शुरू होने पर नायडू ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण विधेयक पर संवादहीनता की स्थिति होने की वजह से इसे नहीं लिया जाएगा। उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018 में उपभोक्ताओं के अधिकारों को मजबूती देने और उत्पाद में खामी तथा सेवाओं में कोताही के बारे में की गई शिकायतों के निवारण के लिए एक व्यवस्था का भी प्रावधान है। लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018 को दिसंबर 2018 में पारित किया जा चुका है। विधेयक को बिना चर्चा के पारित कि जाने का विरोध करते हुए तृणमूल कांग्रेस के सदस्य सुखेन्दु शेखर राय ने कहा कि प्रस्तावित कानून के तहत राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को असीमित अधिकार मिल जाएंगे जिससे राज्य उपभोक्ता आयोग कमजोर हो जाएंगे।
इसे भी पढ़ें: राज्यसभा में वित्त विधेयक, अंतरिम बजट को बिना चर्चा के मंजूरी
वाम दलों ने भी चर्चा के बिना विधेयक पारित किए जाने का विरोध किया। वैयक्तिक कानून (संशोधन) विधेयक 2018 में पांच वैयक्तिक कानूनों में तलाक के लिए दिए गए आधार से कुष्ठ रोग को हटाने का प्रावधान है। यह पांच वैयक्तिक कानून क्रमश: हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विवाह विच्छेद अधिनियम 1869, मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939, विशेष विवाह अधिनियम 1954 और हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956 हैं। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में उन कानूनों और प्रावधानों को निरस्त करने की सिफारिश की थी जो कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के प्रति भेदभावपूर्ण हैं। इसके अलावा, भारत ने संयुक्त राष्ट्र के उस घोषणापत्र पर भी हस्ताक्षर किए हैं जिसमें कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने का आह्वान किया गया है। 2014 में उच्चतम न्यायालय ने भी केंद्र और राज्य सरकारों से कुष्ठ रोग प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास एवं उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कदम उठाने को कहा था।
Rajya Sabha passes Motion of Thanks on the President's Address without debate. Interim Budget 2019-20 and Appropriation Bill also passed without debate. pic.twitter.com/phLf7cdAQR
— ANI (@ANI) February 13, 2019
अन्य न्यूज़