जानिए क्या है जम्मू कश्मीर की राजसी प्रथा, शुक्रवार को बंद होगा ''दरबार''

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सुरेश डुग्गर । Apr 25 2019 5:22PM

दो राजधानियों वाले राज्य जम्मू कश्मीर में महबूबा मुती सरकार का दरबार शीतकालीन राजधानी जम्मू में शुक्रवार दोपहर को छह महीनों के लिए बंद हो जाएगा।

जम्मू। चौंकाने वाली बात यह है कि जम्मू कश्मीर में ‘राजसी प्रथा’ अभी भी जारी है। हर छह महीने के बाद मौसम के बदलाव के साथ ही राजधानी को बदलने की प्रथा को फिलहाल समाप्त नहीं किया गया है तभी तो गर्मियों में राजधानी जम्मू से श्रीनगर चली जाती है और छह महीनों के बाद सर्दियों की आहट के साथ ही यह जम्मू आ जाती है। इस राजधानी बदलने की प्रक्रिया को राज्य में दरबार मूव के नाम से जाना जाता है जो प्रतिवर्ष सभी मदों पर खर्च किए जाने वाली राशि को जोड़ा जाए तो तकरीबन 800 करोड़ रूपया डकार जाती है और वित्तीय संकट से जूझ रही रियासत में राजसी प्रथा को बंद करने की हिम्मत कोई भी जुटा नहीं पा रहा है। इस बार जम्मू में ‘दरबार’ 26 अप्रैल यानि कल बंद होगा और 6 मई को ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में खुलेगा।

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दो राजधानियों वाले राज्य जम्मू कश्मीर में महबूबा मुती सरकार का दरबार शीतकालीन राजधानी जम्मू में शुक्रवार दोपहर को छह महीनों के लिए बंद हो जाएगा।  अब सरकार का दरबार 6 मई से ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में काम करेगा। महाराजा के समय की दरबार मूव की इस व्यवस्था को कश्मीर केंद्रित सरकारों ने बदस्तूर जारी रखा। अब राज्य सचिवालय व राजभवन अक्टूबर माह के अंत तक प्रशासनिक कामकाज श्रीनगर से  चलाएंगे। आतंकवाद का सामना कर रहे जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की प्रक्रिया को कामयाब बनाना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस दौरान कड़ी व्यवस्था के बीच सचिवालय के अपने 35 विभागों, सचिवालय के बाहर के करीब इतने ही मूव कायालयों के करीब पंद्रह हजार कर्मचारी श्रीनगर रवाना होंगे। उनके साथ खासी संख्या में पुलिस कर्मी भी मूव करेंगे। श्रीनगर में इन कर्मचारियों को सरकारी आवासों, लैटों व होटलों में कड़ी सुरक्षा के बीच ठहराया जाएगा।

तंगहाली के दौर से गुज रहे जम्मू कश्मीर में दरबार मूव पर सालाना खर्च  होने वाला 300 करोड़ रूपये वित्तीय मुश्किलों को बढ़ाता है।  सुरक्षा खर्च मिलाकर यह 700-800 करोड़ से अधिक हो जाता है। दरबार मूव के लिए दोनों राजधानियों में स्थायी व्यवस्था करने पर भी अब तक अरबों रूपये खर्च हो चुके हैं। साल में दो बार कर्मचारियों को लाने, ले जाने, सचिवालय के रिकार्ड को ट्रकों में लाद कर जम्मू, श्रीनगर पहुंचाने के दौरान नुकसान भी होता है। इ गर्वनेंस के दौर में भारी भरकम फाइलों का बोझ ढोया जा रहा है। दरबार मूव के तहत सचिवालय के 35 विभागों व सचिवालय के बाहर इतने ही मूव कार्यालयों के पंद्रह हजार से ज्यादा कर्मचारियों के साथ पुलिस मुख्यालय, सुरक्षा शाखा के भी हजारों कर्मचारी दरबार के साथ आते जाते हैं। मूव करने वाले कर्मचारियों को साल में दो बार पंद्रह हजार रूपये का मूव टीए मिलता है। इसके साथ प्रति माह दो हजार के हिसाब से 24 हजार रूपये का टेंपरेरी मूव टीए भी मिलता है। 

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अधिकारियों के मुताबिक श्रीनगर में दरबार खुलने के मद्देनजर सारी तैयारियां कर ली गई हैं। राज्य प्रशासन को निर्देश दिए गए है कि कर्मचारियों को वहां पर रहने, खाने, सुरक्षा संबंधी कोई मुश्किल पेश न आए। सात मई को दरबार खुलते ही सरकार का कामकाज शुरू हो जाएगा। इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई है। जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की शुरूआत महाराजा रणवीर सिंह ने 1872 में बेहतर शासन के लिए की थी। कश्मीर, जम्मू से करीब तीन सौ किलोमीटर दूरी पर था, ऐसे में डोगरा शासक ने यह व्यवस्था बनाई कि दरबार गर्मियों में कश्मीर व सर्दियों में जम्मू में रहेगा। उन्नीसवीं शताब्दी में दरबार को तीन सौ किलोमीटर दूर ले जाना एक जटिल प्रक्रिया थी व यातायात के कम साधन होने के कारण इसमें काफी समय लगता था। 

अप्रैल महीने में जम्मू में गर्मी शुरू होते ही महाराजा का काफिला श्रीनगर के लिए निकल पड़ता था। महाराजा का दरबार अक्टूबर महीने तक कश्मीर में ही रहता था। जम्मू से कश्मीर की दूरी को देखते हुए डोगरा शासकों ने शासन को ही कश्मीर तक ले जाने की व्यवस्था को वर्ष 1947 तक बदस्तूर जारी रखा। जब 26 अक्टूबर 1947 को राज्य का देश के साथ विलय हुआ तो राज्य सरकार ने कई पुरानी व्यवस्थाएं बदल ले लेकिन दरबार मूव जारी रखा। राज्य में 146 साल पुरानी यह व्यवस्था आज भी जारी है। दरबार को अपने आधार क्षेत्र में ले जाना कश्मीर केंद्रित सरकारों को सूट करता था, इस लिए इस व्यवस्था में कोई बदलाव नही लाया गया है।

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