दलगत राजनीति की वेदी पर बौद्धिक स्वतंत्रता की बलि मत चढ़ाइए: शशि थरूर

Shashi Tharoor

कांग्रस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने रविवार को कहा कि दलगत राजनीति की वेदी पर बौद्धिक स्वतंत्रता की बलि नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मानना “मूर्खतापूर्ण” है कि किसी के विचारों की अनदेखी कर आप उन्हें हरा सकते हैं।

तिरुवनंतपुरम। कांग्रस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने रविवार को कहा कि दलगत राजनीति की वेदी पर बौद्धिक स्वतंत्रता की बलि नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मानना “मूर्खतापूर्ण” है कि किसी के विचारों की अनदेखी कर आप उन्हें हरा सकते हैं। थरूर के बयान को एक तरह से कन्नूर विश्वविद्यालय के उस निर्णय के समर्थन में देखा जा रहा है, जिसके अनुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक एम एस गोलवलकर और हिन्दू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर की पुस्तकों के अंश को शासन तथा राजनीति पर स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

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विश्वविद्यालय के इस निर्णय की विभिन्न छात्र संगठनों ने आलोचना करते हुए विश्वविद्यालय का‘भगवाकरण’ किये जाने का आरोप लगाया है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा था कि उनकी सरकार उन नेताओं और विचारों को महिमामंडित नहीं करेगी, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को पीठ दिखाई थी। थरूर ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, “बौद्धिक स्वतंत्रता का हमारे समाज में इतना महत्व है कि दलगत राजनीति की वेदी पर उसकी बलि नहीं दी जा सकती। यह मानना मूर्खतापूर्ण है कि किसी के विचारों की अनदेखी कर आप उन्हें हरा सकते हैं। मैंने अपनी पुस्तकों में सावरकर और गोलवलकर को उद्धृत किया है और उनका खंडन किया है।”

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उन्होंने कहा कि उनके कुछ दोस्तों ने उनके इस रुख की आलोचना की कि अकादमिक स्वतंत्रता ‘‘हमें पढ़ने, समझने और हर दृष्टिकोण पर चर्चा करने का अवसर देती है, उनसे भी जिनसे हम सहमत नहीं होते।’’ थरूर ने पोस्ट में लिखा है, “अगर हम सावरकर और गोलवलकर को पढ़ेंगे नहीं, तो किस आधार पर उनके विचारों का खंडन करेंगे? कन्नूर विश्वविद्यालय में (रवींद्रनाथ) टैगोर और (महात्मा) गांधी के बारे में भी पढ़ाया जाता है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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