धनशोधन मामले को रद्द करने संबंधी राबर्ट वाड्रा की याचिका का ED ने किया विरोध
केंद्र और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दोनों याचिकाओं की विचारणीयता को लेकर आपत्ति करते हुये कहा कि उन्हें कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए।
नयी दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय मेंरॉबर्ट वाड्रा की उस याचिका का विरोध किया जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ धनशोधन मामले को रद्द करने का अनुरोध किया था। जांच एजेन्सी ने इस मामले में वाड्रा से पूछताछ की है। निदेशालय ने वाड्रा की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने अदालत से तथ्यों को जानबूझकर छिपाया है इसलिए उन्हें कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए। निदेशालय ने यह भी दलील दी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बहनोई वाड्रा की याचिका कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। निदेशालय ने कहा कि जब उन्हें आशंका हुयी कि ‘‘कानून उन्हें पकड़ लेगा’’ तो उन्होंने पीएमएलए प्रावधानों को चुनौती दी।
Delhi High Court says that 'since the anticipatory bail plea of Robert Vadra is being heard in Patiala House Court, we will not interfere right now'. Notice issued to center (ED) to file an affidavit opposing the plea within 2 weeks. pic.twitter.com/2Dr4Xoon8N
— ANI (@ANI) March 25, 2019
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने जांच एजेंसी को दो सप्ताह के अंदर इस बारे में एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया कि क्या वाड्रा और उनके सहायक मनोज अरोड़ा की दो अलग-अलग लेकिन एक जैसी याचिकाएं विचारणीय हैं या नहीं। अदालत इस मामले की अब दो मई को सुनवाई करेगी। केंद्र और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दोनों याचिकाओं की विचारणीयता को लेकर आपत्ति करते हुये कहा कि उन्हें कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने दलील दी कि उन्हें यह दर्शाने के लिए एक हलफनामा दाखिल करना है कि याचिकाकर्ताओं (वाड्रा और अरोड़ा)दिलचस्पी इस मामले की जड़ तक पहुंचने की बजाये इसे दबाने में है। निदेशालय का मामला लंदन में 12, ब्रायनस्टन स्क्वायर में स्थित, 19 लाख पाउंड मूल्य की एक संपत्ति खरीदने में धन शोधन के आरोपों से संबंधित है। इस संपत्ति का कथित स्वामित्व वाड्रा के पास है।
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इस मामले में वाड्रा का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी कर रहे हैं। वाड्रा ने धनशोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) 2002 के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग भी की है। पीठ ने पूछा कि उन्होंने उच्च न्यायालय का रूख क्यों किया जबकि उच्चतम न्यायालय के पास पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाएं विचाराधीन है। इस पर सिंघवी ने कहा कि उन्होंने यहां पीएमएलए के तहत छह प्रावधानों को चुनौती दी है जबकि इस कानून के तहत गिरफ्तारी और साबित करने की जिम्मेदारी सहित इसके कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली कई याचिकायें पहले से ही उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं। वाड्रा ने पीएमएलए कानून की धारा तीन (धनशोधन का अपराध), 17 (तलाशी एवं जब्ती), 19 (गिरफ्तारी का अधिकार), 24 (सबूतों का जिम्मा), 44 (विशेष अदालत में सुनवाई वाले अपराध) और 50 (समन जारी करने, दस्तावेज पेश करने और सबूत देने आदि के बारे में अधिकारियों की शक्तियों) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। सुनवाई के दौरान अदालत को सूचित किया गया कि वाड्रा और अरोड़ा की अग्रिम जमानत के आवेदन सुनवाई के लिए सोमवार को एक निचली अदालत में लंबित हैं।
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