एल्गार परिषद मामला: दो आरोपियों ने NIA जांच के खिलाफ खटखटाया HC का दरवाजा

Bombay High Court

याचिका में कहा गया, ‘‘जांच हस्तांतरण का आदेश मनमाना, भेदभावपूर्ण, अन्यायोचित और मामले में आरोपियों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला है।’’

मुंबई। एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार वकील सुरेंद्र गाडलिंग और लेखक-कार्यकर्ता सुधीर धवले ने मामले में जांच पुणे पुलिस से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपे जाने को शुक्रवार को बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी। यह मामला इस साल 24 जनवरी को पुणे पुलिस से एनआईए को हस्तांतरित किया गया था। इसमें माओवाद से कथित रूप से तार जुड़े होने के मामले में कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। गाडलिंग और धवले को जून 2018 में गिरफ्तार किया गया था और मुंबई के पास तलोजा जेल में उन्हें रखा गया। 

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वकील एस बी तालेकर के माध्यम से दाखिल याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र में भाजपा के सत्ता से बाहर होने के बाद जांच हस्तांरित करने का आदेश दिया, इसलिए यह ‘राजनीति से प्रेरित’ कदम है। याचिका में कहा गया, ‘‘जांच हस्तांतरण का आदेश मनमाना, भेदभावपूर्ण, अन्यायोचित और मामले में आरोपियों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला है।’’ याचिका के अनुसार, ‘‘हिंदुत्व एजेंसी के साथ तत्कालीन भाजपा नीत राज्य सरकार ने पुणे में दिसंबर 2017 से जनवरी 2018 के बीच कोरेगांव भीमा में हिंसा की घटना का इस्तेमाल एल्गार परिषद की बैठक को माओवादी आंदोलन का हिस्सा बताकर प्रभावशाली दलित विचारकों पर निशाना साधने के लिए किया।’’ 

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याचिका में कहा गया कि एनआईए कानून के तहत अधिकारों का इस्तेमाल करने और जांच हस्तांतरित करने का आधार‘राजनीतिक लाभ’ को नहीं बनाया जा सकता। याचिका में दावा किया गया है कि एनआईए कानून, 2008 जांच पूरी होने और मुकदमा शुरू होने के बाद मामले के तबादले की अनुमति नहीं देता, खासतौर पर उस समय जब इस तरह के मामले के हस्तांतरण के लिए जरूरी बाध्यकारी परिस्थितियां नहीं हैं। याचिका में कहा गया कि जांच पूरी होने के बाद उसे एनआईए को सौंपने का आदेश पुन: जांच कराने के समान है। जो कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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