परीक्षा जीवन का आखिरी मुकाम नहीं बल्कि एक छोटा सा पड़ाव: पीएम मोदी

PM MODI

प्रधानमंत्री ने अभिभावकों से बच्चों के साथ समय बिताने का आग्रह किया और कहा कि तभी वह बच्चों के असली सामर्थ्य ओर उनकी रुचि का अंदाजा लगा पाएंगे। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन आज कुछ मां-बाप इतने व्यस्त हैं कि वे बच्चों को समय ही नहीं दे पाते।बच्चे के सामर्थ्य का पता लगाने के लिए उन्हें परीक्षाओं का परिणाम देखना पड़ता है।

नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि परीक्षा छात्रों के जीवन में आखिरी मुकाम नहीं बल्कि एक छोटा सा पड़ाव होता है। इसलिए अभिभावकों या शिक्षकों को बच्चों पर दबाव नहीं बनाना चाहिए। ‘‘परीक्षा पर चर्चा’’ के ताजा संस्करण में डिजीटल माध्यम से छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से संवाद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि बच्चों पर बाहर का दबाव कम हो जाता है तो वे कभी परीक्षा का दबाव महसूस नहीं करेंगे। आंध्र प्रदेश की एम पल्लवी और मलेशिया के अर्पण पांडे ने प्रधानमंत्री से परीक्षा का डर खत्म करने का उपाय पूछा था।

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इसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘आपको डर परीक्षा का नहीं है। आपके आसपास एक महौल बना दिया गया है कि परीक्षा ही सब कुछ है। यही जिंदगी है। इस परिस्थिति में छात्र कुछ ज्यादा ही सोचने लगते हैं। मैं समझता हूं कि यह सबसे बड़ी गलती है। परीक्षा जिंदगी में कोई आखिरी मुकाम नहीं है। जिंदगी बहुत लंबी और इसमें बहुत पड़ाव आते हैं। परीक्षा एक छोटा सा पड़ाव है।’’ उन्होंने अभिभावकों, शिक्षकों और रिश्तेदारों को छात्रों पर अनावश्यक दबाव ना बनाने का आग्रह करते हुए कहा कि अगर बाहर का दबाव खत्म हो जाएगा तो छात्र परीक्षा का दबाव महसूस नहीं करेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि परीक्षा आखिरी मौका है बल्कि वह एक प्रकार से लंबी जिंदगी जीने के लिए अपने आपको कसने का उत्तम अवसर है। समस्या तब होती है जब हम परीक्षा को ही जीवन के सपनों का अंत मान लेते हैं और जीवन मरण का प्रश्न बना लेते हैं।’’ उन्होंने कहा कि परीक्षा जीवन को गढ़ने का एक अवसर है और परिजनों को अपनों बच्चों को तनाव मुक्त जीवन देना चाहिए।

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प्रधानमंत्री ने अभिभावकों से बच्चों के साथ समय बिताने का आग्रह किया और कहा कि तभी वह बच्चों के असली सामर्थ्य ओर उनकी रुचि का अंदाजा लगा पाएंगे। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन आज कुछ मां-बाप इतने व्यस्त हैं कि वे बच्चों को समय ही नहीं दे पाते। बच्चे के सामर्थ्य का पता लगाने के लिए उन्हें परीक्षाओं का परिणाम देखना पड़ता है। इसलिए बच्चों का आकलन भी परीक्षा के परिणाम पर सीमित हो गया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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