CBI में असाधारण व अभूतपूर्व स्थिति की वजह से हस्तक्षेप जरूरी हुआ: सरकार

extraordinary-and-unprecedented-situation-in-cbi-necessitated-intervention-government-says
[email protected] । Oct 24 2018 6:49PM

सरकार की ओर से बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा द्वारा सीवीसी के कामकाज में इरादतन बाधा खड़ी की गई जो उनके खिलाफ की गई भ्रष्टाचार की शिकायतों को देख रहा था

नयी दिल्ली। सरकार की ओर से बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा द्वारा सीवीसी के कामकाज में इरादतन बाधा खड़ी की गई जो उनके खिलाफ की गई भ्रष्टाचार की शिकायतों को देख रहा था, और इसके साथ ही अपने अधीनस्थ राकेश अस्थाना के साथ "गुटबंदी" की वजह से सरकार द्वारा दोनों अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया। इसमें कहा गया कि वर्मा और अस्थाना के बीच मचे घमासान की वजह से एजेंसी में कामकाज का माहौल दूषित हुआ।

सीबीआई में अभूतपूर्व घटनाओं पर सरकार की तरफ विस्तृत बयान जारी किया गया है। सीबीआई में दो सर्वोच्च अधिकारियों - वर्मा और अस्थाना - को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति द्वारा मंगलवार को उनकी जिम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया। बयान में कहा गया, ‘‘सीबीआई के वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों ने संगठन के कार्यालयी परितंत्र को दूषित किया है। इन आरोपों का मीडिया में भी काफी जिक्र हुआ।’’

बयान में कहा गया कि सीबीआई में गुटबंदी का माहौल अपने चरम पर पहुंच गया है जिससे इस प्रमुख संस्था की विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचा। इसके अलावा संगठन में कामकाज का माहौल भी दूषित हुआ है जिसका समग्र शासन पर गहरा और स्पष्ट प्रभाव दिखा। इसमें कहा गया कि यह कदम केंद्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर ‘‘असाधारण और अभूतपूर्व’’ परिस्थितियों पर विचार के बाद उठाया गया। आयोग ने निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को सभी जिम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त करने का आदेश पारित किया था।

सरकार से सिफारिश करते हुए केंद्रीय सतर्कता आयोग ने डीपीएसई (सीबीआई) के कार्यकलाप पर अधीक्षण (सीवीसी कानून, 2003 की धारा 8) की अपनी शक्ति के तहत अधिकारियों के कामकाज, अधिकार, दायित्व और पहले से पंजीकृत मामलों में निरीक्षणात्मक भूमिका से मुक्त करने का आदेश भ्रष्टाचार रोक कानून, 1988 के प्रावधानों के तहत जारी किया है। बयान में कहा गया, ‘‘भारत सरकार ने अपने समक्ष उपलब्ध दस्तावेजों का मूल्यांकन किया और समानता, निष्पक्षता एवं नैसर्गिक न्याय के हित में सीबीआई के निदेशक आलोक कुमार वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को क्रमश: सीबीआई निदेशक और विशेष निदेशक के रूप में उनके कामकाज, शक्ति, दायित्व, और निरीक्षणात्मक भूमिका के निर्वहन पर रोक लगा दी है।’’

इसमें कहा गया कि भारत सरकार उपलब्ध दस्तावेजों की सावधानीपूर्वक जांच और मूल्यांकन के बाद इस बात से संतुष्ट हो गई कि ऐसे ‘‘असाधारण और अभूतपूर्व हालात’’ पैदा हो गए हैं जिसमें सरकार को डीपीएसई कानून की धारा 4(2) के तहत मिली शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे उसे सीबीआई निदेशक का कार्यकाल समयपूर्व खत्म करने का भी अधिकार मिलता है। बयान में कहा गया, ‘‘यह फैसला अंतरिम व्यवस्था के रूप में लिया गया है और यह रोक मौजूदा असाधारण और अभूतपूर्व हालात पैदा करने वाले सभी मामलों में सीवीसी की जांच पूरी होने और सीवीसी और/या सरकार के इस मामले में कानून के तहत उचित फैसला लेने तक बनी रहेगी।’’।

सीबीआई के तब के विशेष निदेशक अस्थाना ने सरकार को 24 अगस्त को भेजी एक शिकायत में वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, जिसे सीवीसी को भेज दिया गया था। सीवीसी ने सीबीआई से मांग की थी कि अस्थाना की शिकायत में सूचीबद्ध मामलों से जुड़ी फाइलें उसके पास भेजी जाएं। बयान में कहा गया, ‘‘सीबीआई निदेशक को ये रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के कई मौके दिए गए और कई स्थगनों के बाद सीबीआई ने 24 सितंबर, 2018 को आयोग को तीन सप्ताह के अंदर रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का आश्वासन दिया। लगातार आश्वासन और चेतावनी के बावजूद सीबीआई निदेशक आयोग के सामने रिकॉर्ड/फाइल प्रस्तुत करने में विफल रहे।’’

सीवीसी ने ये भी पाया कि सीबीआई निदेशक आयोग को मांगे गए दस्तावेज और फाइलें मुहैया कराने में सहयोग नहीं कर रहे थे। बयान के मुताबिक, सीवीसी ने यह भी पाया कि सीबीआई निदेशक का रवैया जरूरतों/निर्देशों के अनुपालन को लेकर असहयोगजनक था और उन्होंने इरादतन आयोग की कार्यप्रणाली को बाधित करने की कोशिश की। 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़