बटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी ठहराने के लिए झूठी खबरों और अफवाहों का लिया गया सहारा: करनैल सिंह

Karnal Singh

केंद्रशासित क्षेत्र कैडर के 1984 बैच के अधिकारी रहे सिंह ने दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर में बटला हाउस इलाके में स्थित एल-18 मकान में 19 सितंबर 2008 को हुई मुठभेड़ पर ‘बटला हाउस: एंन इन्काउंटर दैट शुक द नेशन’ शीर्षक से किताब लिखी है।

नयी दिल्ली। सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एवं दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के तत्कालीन मुखिया करनैल सिंह ने कहा है कि 2008 में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों के साथ बटला हाउस में हुई मुठभेड़ को फर्जी ठहराने के लिए नेताओं, कार्यकर्ताओं और मीडिया के एक तबके ने ‘‘झूठी खबरों’’ और ‘‘सड़क पर उड़तीं अफवाहों’’ का सहारा लिया। केंद्रशासित क्षेत्र कैडर के 1984 बैच के अधिकारी रहे सिंह ने दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर में बटला हाउस इलाके में स्थित एल-18 मकान में 19 सितंबर 2008 को हुई मुठभेड़ पर ‘बटला हाउस: एंन इन्काउंटर दैट शुक द नेशन’ शीर्षक से किताब लिखी है। किताब रूपा पब्लिकेशंस ने प्रकाशित की है। 

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सिंह पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के मुखिया एवं संयुक्त पुलिस आयुक्त के रूप में 2008 के दिल्ली बम विस्फोटों की जांच का नेतृत्व कर रहे थे। विस्फोट स्थल से मिले सुरागों ने जांच की दिशा बटला हाउस की तरफ मोड़ दी जहां इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी छिपे थे। बटला हाउस इलाके में टोह लेने गए पुलिसकर्मियों तथा आतंकवादियों के बीच मुइभेड़ हो गई जिसमें दो आतंकवादी मारे गए और विशेष प्रकोष्ठ में शामिल इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए। प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के रूप में 2018 में सेवानिवृत्त हुए सिंह ने इस मुठभेड़ के बारे में पीटीआई-से बात की। इस मुठभेड़ को लेकर देशभर में जमकर राजनीति हुई थी।

सिंह ने आरोप लगाया, ‘‘बटला हाउस मुठभेड़ के बारे में फर्जी खबरें फैलाकर एक धारणा पैदा की गई। कई नेताओं, कार्यकर्ताओं और मीडिया प्रतिष्ठानों ने तथ्यों की जांच किए बिना सड़क पर उड़तीं अफवाहों को उठाया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा उनके सहकर्मियों द्वारा उनकी पीठ पर दागी गईं तीन गोलियों की वजह से मारे गए। इन लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि आतंकवादियों ने कोई गोलीबारी नहीं की। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में स्पष्ट खुलासा हुआ कि शर्मा को सामने से दो गोलियां लगी थीं, न कि पीछे से।’’ 

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सिंह ने कहा कि दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने मारे गए दोनों आतंकवादियों का पोस्टमॉर्टम किया और उनके हाथों से लिए गए नमूनों को यह पता करने के वास्ते ‘डर्मल नाइट्रेट’ जांच के लिए अपराध विज्ञान प्रयोगशाला भेजा कि उन्होंने गोली चलाई थी या नहीं। उन्होंने कहा, ‘‘जांच रिपोर्ट में स्पष्ट हो गया कि दोनों आतंकवादियों ने पुलिस टीम पर गोली चलाई थी।’’ सिंह ने कहा, ‘‘फर्जी खबरों के प्रसार से बाधा उत्पन्न हुई, लेकिन कुछ समय के लिए। सभी तथ्यों, साक्ष्यों और जांच से मुठभेड़ की प्रामाणिकता साबित हो गई।’’

कुछ समय के लिए देश की वित्तीय खुफिया इकाई का भी नेतृत्व कर चुके सिंह ने कहा कि संवेदनशील जांच की मीडिया रिपोर्टिंग बड़ी जिम्मेदारी का काम है। यह पूछे जाने पर कि इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने देश में विभिन्न स्थानों पर विस्फोट क्यों किए, सिंह ने कहा कि वे ओसामा बिन लादेन से प्रभावित थे। उन्होंने कहा, ‘‘उनके (आतंकवादियों) इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर साक्ष्यों के जरिए हमने पाया कि वे ओसामा बिन लादेन के भाषणों से प्रभावित थे। हमें जांच में प्रस्तुतियां, प्रेरित करने वाले गीत और वीडियो कॉल के सबूत मिले, ताकि और अधिक लोगों को वे अपने मिशन में जोड़ सकें।’’ 

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सिंह ने कहा, ‘‘आईएम (इंडियन मुजाहिदीन) की आकृति में रखे गए बमों की तस्वीरें मिलीं। हमें पता चला कि उनमें से अधिकतर अपने मित्रों या परिचितों के माध्यम से आईएम से जुड़े थे।’’ उन्होंने कहा कि बटला हाउस मुठभेड़ के बाद कुछ आतंकवादी पाकिस्तान और दुबई भाग गए जिनके बारे में कोई सूचना नहीं है कि वे जीवित हैं या मर गए। किताब में इस बात का ब्योरा है कि बटला हाउस में छापेमारी करने गई पुलिस टीम ने बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहन रखी थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अच्छा काम करने के लिए सिंह तथा उनकी टीम की प्रशंसा की थी।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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