ठगी की राह पर नेताओं के बाद अब मीडिया भी, किसानों को नहीं दी तवज्जो

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देश के अलग-अलग प्रांतों से आए किसान दिल्ली में गुरुवार की शाम रामलीला मैदान में अपना डेरा डालते हैं और फिर शुक्रवार की सुबह वह दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए संसद मार्ग पुलिस थाने तक पहुंचे।

नयी दिल्ली। देश के अलग-अलग प्रांतों से आए किसान दिल्ली में गुरुवार की शाम रामलीला मैदान में अपना डेरा डालते हैं और फिर शुक्रवार की सुबह वह दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए संसद मार्ग पुलिस थाने तक पहुंचे। वहां पर विपक्षी एकजुटता दिखाई दी। सभी विपक्षी नेताओं ने एक के बाद एक किसानों के मंच को चुरा लिया और ये प्रदर्शन किसानों का कम आने वाले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक शक्ति के प्रदर्शन का ज्यादा दिखाई दिया। 

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किसान मुक्ति मोर्चा की अगुवाई करने वाले 200 से अधिक किसान संगठनों का लक्ष्य सरकार को किसानों के लिए तीन हफ्तों का विशेष संसदीय सत्र बुलाने के लिए मजबूर करना है। शुक्रवार के दिन समूची दिल्ली से किसानों के प्रदर्शन की तस्वीरें सामने आ रही थीं और कहा जा रहा है कि एक लाख से अधिक किसानों ने राजधानी में प्रदर्शन किया मगर एकाध अखबार छोड़ दिया जाए तो किसी भी अखबार ने इन किसानों को पहले पेज पर तवज्जो नहीं दी। पहले पेज में जगह मिली भी तो विपक्षी एकता को जिन्होंने एक के बाद किसानों को संबोधित करने के बहाने सरकार को अपने मुताबिक गरियाया। 

सबसे पहले किसानों के पास पहुंचे पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस प्रमुख एचडी देवेगौड़ा ने आंदोलन को समर्थन दे दिया। देवेगौड़ा द्वारा रामलीला मैदान में पहुंचने की खबर सुर्खियों में जैसे ही आई मानो नेताओं का हुजूम रामलीला मैदान की तरफ बढ़ने लगा और जो नेता रामलीला मैदान नहीं पहुंच पाए उन्होंने शुक्रवार के दिन किसानों का मंच हथिया लिया और अपना-अपना वक्तव्य पेश किया।

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तेजस्वी यादव द्वारा दिल्ली के रामलीला मैदान पर मुजफ्फरपुर आश्रृयग्रह में बच्चियों के साथ हुए दुराचार के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान भी विपक्षी एकता को देखा गया था। लेकिन, बीते दिनों सोशल मीडिया पर जिस तरह से किसान आंदोलन को तवज्जो मिली वैसे आज के अखबारों ने उन्हें सुर्खियों में नहीं रखा। किसी ने कहा कि किसानों ने दिल्ली को जाम कर दिया तो किसी ने इसे नौटंकी बताया। सीधा सवाल आपसे कि जो किसान दिन रात मेहनत करके आपके लिए फसल का उत्पादन करता है उस किसान के लिए क्या आप थोड़ी सी परेशानियां उठा नहीं सकते हैं? हम आपसे यह भी प्रश्न करना चाहते हैं कि 

  • क्या अन्नदाता दिल्ली के लोगों को परेशानी देने के लिए आया था?
  • क्या अन्नदाता नेताओं के द्वारा एक बार फिर से ठगा गया?
  • क्या आपने किसानों की जो मांगे हैं उससे बड़ी सुर्खियां नेताओं के बयानों की नहीं पढ़ीं? 
  • चुनावों को देखते हुए इस बार किसानों को दिल्ली आने से रोका नहीं गया लेकिन क्या गारंटी है कि अगली बार जब किसान दिल्ली की तरफ कूच करेंगे तो उन्हें लाठियां नहीं मिलेगी?

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इस तरह के आंदोलनों में पहली बार देखा गया कि किसानों ने स्वयं किसान घोषणा पत्र का निर्माण किया है। दरअसल, किसानों ने कहा कि कर्ज से मुक्ति दिलाने और कृषि उपज की लागत को डेढ़ गुनी कीमत दिलाने से जुड़े प्रस्तावित दो विधेयक संसद में लंबित हैं। इन्हें पारित कराने के लिये किसानों ने सरकार से संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग को लेकर यह आंदोलन किया है। 

वहीं, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के नेता योगेन्द्र यादव ने कहा है कि किसानों ने कृषि संकट के स्थायी समाधान के लिये पहली बार सरकार के समक्ष समस्या के समाधान का मसौदा पेश किया है। किसान चार्टर और किसान घोषणा पत्र के रूप में इस मसौदे को शुक्रवार को संसद मार्ग पर आयोजित किसान सभा में पेश किया गया। 

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