15 की उम्र में जबरन भर्ती और 17 की उम्र में थमा दी गई बंदूक, माओवाद को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट आई सामने

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अभिनय आकाश । Sep 29 2021 1:35PM

पुलिस द्वारा किए गए एक 'सर्वे' में कहा गया है कि उन्हें ज्यादातर 15 की उम्र में ही भर्ती किआ जाता है और 17 साल की उम्र तक बंदूक थमा दी जाती है।

70% से अधिक माओवादी कैडरों को उनके माता-पिता की सहमति के बिना किशोरावस्था में जबरन भर्ती किया जाता है। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों के बीच बस्तर पुलिस द्वारा किए गए एक 'सर्वे' में कहा गया है कि उन्हें ज्यादातर 15 की उम्र में ही भर्ती किआ जाता है और 17 साल की उम्र तक बंदूक थमा दी जाती है। पुलिस का कहना है कि 'भर्ती' किए गए बच्चों को सालों तक घर नहीं जाने दिया जाता है, कुछ को तो कभी नहीं, भले ही उनके माता-पिता में से किसी की मृत्यु हो जाए। सर्वेक्षण में सबसे चौंकाने वाली बात ये सामने आई है कि इनमें से 25% का युवावस्था में जबरन नसबंदी करवाया जाता है।

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सर्वे को लेकर बस्तर की सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि बच्चों को सिपाहियों के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। मैं स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा इसी तरह के सर्वेक्षणों का स्वागत करती हूं। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण रिपोर्ट परेशान करने वाली है। धारणा यह थी कि माओवादी बच्चों को केवल 'बाल संघम' में डालते हैं और उन्हें 18 साल की उम्र तक हथियार नहीं देते हैं, लेकिन आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों, जिनमें कुछ वरिष्ठ कैडर भी शामिल हैं के खुलासे ने इस धारणा को गलत साबित किया है। माओवादियों ने पुलिस को बताया कि वो अपनी मर्जी से अपनी मर्जी से माओवाद में शामिल नहीं हुए बल्कि उन्हें मजबूर किया गया। सर्वेक्षण 41 माओवादियों के बीच किया गया था, जिन्होंने 2013 और 2021 के बीच दंतेवाड़ा में आत्मसमर्पण किया था और उन पर 5 लाख रुपये या उससे अधिक का इनाम था।

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पुलिस अधिकारियों ने एक महीने से अधिक समय तक उनका साक्षात्कार लिया गया और इस डेटा के साथ आने से पहले उनसे 10-सूत्रीय प्रश्नावली भरने के लिए कहा गया। जिसके आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार 17 साल की उम्र में जब उन्हें पढ़ाई करनी चाहिए थी, उन्हें बंदूकें दी गईं और हमले करने के लिए कहा गया। 20 साल की उम्र तक, वे स्वचालित हथियारों को संभाल रहे थे। दंतेवाड़ा के एसपी अभिषेक पल्लव ने कहा: “सर्वेक्षण के परिणामों का उपयोग दंतेवाड़ा जिले के 'भर्ती हॉटस्पॉट' गांवों में स्थानीय लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए किया जाएगा ताकि वे माओवादियों में शामिल न हों। पुलिस ग्रामीणों को बताएगी कि माओवादी क्रांतिकारी नहीं हैं।

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