कोई भी नागरिक संवैधानिक नैतिकता से वंचित नहीं हो सकता: दीपक मिश्रा

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[email protected] । Oct 6 2018 10:48AM

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने शुक्रवार को कहा कि किसी व्यक्ति को, संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत से वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने साथ ही सहिष्णुता, स्वीकार्यता एवं दूसरे के रूख का सम्मान करने के विचार को बढ़ावा देने की मजबूती से वकालत की।

नयी दिल्ली। भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने शुक्रवार को कहा कि किसी व्यक्ति को, संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत से वंचित नहीं किया जा सकता। उन्होंने साथ ही सहिष्णुता, स्वीकार्यता एवं दूसरे के रूख का सम्मान करने के विचार को बढ़ावा देने की मजबूती से वकालत की। दो अक्टूबर को पद छोड़ने वाले न्यायमूर्ति मिश्रा ने साथ ही सवाल किया कि जब कानून का शासन है और एक मजबूत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका है तब कोई कैसे नैतिकता की पहरेदारी कर सकता है। उन्होंने यह टिप्पणी नैतिकता की पहरेदारी से जुड़ी घटनाओं में हुई बढ़ोतरी के आलोक में की। राजनीति के अपराधीकरण, व्यभिचार, समलैंगिकता, भीड़ द्वारा पीट पीटकर की जा रही हत्या और सबरीमला सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसले सुनाने वाली पीठों का नेतृत्व करने वाले पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संवैधानिक संप्रभुता सर्वोपरि है और भारत की एक मजबूत स्वतंत्र न्यायपालिका है जो कानून के शासन से शासित होती है। न्यायमूर्ति मिश्रा हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा आयोजित ‘लीडरशिप समिट’ कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी देने से जुड़े उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर कहा, ‘‘हमने संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा की शुरूआत की और हमने कहा कि यह नैतिकता संविधान द्वारा विकसित की गयी नैतिकता है।’’

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि मुझे लैंगिक न्याय के योद्धा के रूप में पेश किया जा रहा है। आप किसी खास धर्म की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोक सकते। महिलाओं का सम्मान करना होगा और वे पुरूषों के जीवन में बराबर की भागीदार हैं।’’ उन्होंने कहा कि इसलिए ‘‘आप महिलाओं को (मंदिर से) दूर नहीं रख सकते।’’ संसद से भीड़ द्वारा पीट पीटकर कर की जाने वाली हत्या को लेकर कानून बनाने की सिफारिश करने वाली पीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायमूर्ति मिश्रा ने सवाल किया कि कैसे कोई पुरूष या समूह नैतिकता की पहरेदारी कर सकता है? उन्होंने समाज से ‘‘सहिष्णुता के विचार को बढ़ावा देने एवं दूसरों के रूख का सम्मान करने’’ की अपील की। उन्होंने राष्ट्र के विभिन्न अंगों द्वारा शक्तियों के बंटवारे की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि न्यायालय कानून नहीं बनाते और कानून बनाना विधायिका का काम है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि भारत के नागरिक के रूप में किसी को भी यह नहीं महसूस होना चाहिए कि संविधान उससे दूर है या वह इसका हिस्सा नहीं है और किसी भी नागरिक को इस अवधारणा से वंचित नहीं किया जा सकता है।

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