वह 4 कारण जिनके आधार पर इंदिरा गांधी ने लगाई थी इमरजेंसी

reasons why emergency imposed

26 जून 1975 की तड़के सुबह का वो दिन जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियों के जरिए घोषणा की, राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की है घबराने की जरुरत नहीं है। अब चलिए आपको बताते हैं कि वो चार कारण जिनको आधार बनाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। सबसे पहले बात करते हैं गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन की।

आज से 46 साल पहले 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी का ऐलान किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा ने इसकी घोषणा की और इसके साथ ही तमाम विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। फैसला तो लिया था पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लेकिन इस दौरान जो जुल्म और ज्यादितियां की गईं उनके पीछे कांग्रेस के नेताओं का हाथ था। 

भले ही इमरजेंसी को आज 46 साल हो चुके हैं लेकिन जिन लोगों ने इस दौरान हुए जुर्मों की पीड़ा देखी उनके जख्म आज भी नहीं भरे हैं। 26 जून 1975 की तड़के सुबह का वो दिन जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियों के जरिए घोषणा की, राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की है घबराने की जरुरत नहीं है।  

25 जून की रात को ही राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए थे। इसके तुरंत बाद, दिल्ली भर के समाचार पत्र, प्रेस अंधेरे में डूब गए क्योंकि बिजली कटौती ने सुनिश्चित किया कि अगले दो दिनों तक कुछ भी नहीं छापा जा सके। इमरजेंसी के दौरान प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी गई थी। वहीं दूसरी ओर, 26 जून की तड़के सैकड़ों राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं और कांग्रेस पार्टी का विरोध करने वाले ट्रेड यूनियनों को जेल में डाल दिया गया।

देश में 21 महीने तक चलने वाले आपातकाल का लक्ष्य "आंतरिक अशांति" को नियंत्रित करना था, जिसके लिए संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस को वापस ले लिया गया था। इंदिरा गांधी ने मुख्य रूप से तीन आधारों पर राष्ट्रीय हित के संदर्भ में इमरजेंसी जैसे कठोर उपाय को उचित ठहराया।  

उन्होंने कहा कि जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए आंदोलन के कारण भारत की सुरक्षा और लोकतंत्र खतरे में है। दूसरा, उनका विचार था कि तेजी से आर्थिक विकास और वंचितों के उत्थान की आवश्यकता थी। तीसरा, उन्होंने विदेशों से आने वाली शक्तियों के हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी दी जो भारत को अस्थिर और कमजोर कर सकती थी।

आपातकाल की घोषणा से पहले के महीने आर्थिक परेशानियों से भरे हुए थे - बढ़ती बेरोजगारी, अत्यधिक महंगाई और भोजन की कमी। भारतीय अर्थव्यवस्था की निराशाजनक स्थिति के साथ-साथ देश के कई हिस्सों में व्यापक दंगे और विरोध प्रदर्शन हुए। दिलचस्प बात यह है कि देश की अब तक सिमटती सीमाएं आपातकाल से पहले के सालों में शांत थीं। 

अब चलिए आपको बताते हैं कि वो चार कारण जिनको आधार बनाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। सबसे पहले बात करते हैं गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन की।

नवनिर्माण आंदोलन

गुजरात में मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस का शासन था। सरकार अपने भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात थी और इसके प्रमुख को लोकप्रिय रूप से चिमन चोर (चोर) के रूप में जाना जाता था। चिमनभाई पटेल के शासनकाल में ही दिसंबर 1973 में, अहमदाबाद में एल डी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्र स्कूल फीस में बढ़ोतरी के विरोध में हड़ताल पर चले गए। एक महीने बाद गुजरात विश्वविद्यालय के छात्रों ने राज्य सरकार को बर्खास्त करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। इस आंदोलन को 'नवनिर्माण आंदोलन' या उत्थान के लिए आंदोलन का नाम दिया गया। 

सरकार के खिलाफ छात्रों का विरोध और भी ज्यादा उग्र होने लगा। जल्द ही कारखाने के कर्मचारी और समाज के अन्य क्षेत्रों के लोग शामिल हो गए। पुलिस के साथ झड़पें, बसों और सरकारी कार्यालयों को जलाना और राशन की दुकानों पर हमले जैसे रोजाना की घटना बन गई। फरवरी 1974 तक, केंद्र सरकार को विरोध पर कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसने विधानसभा को निलंबित कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। इतिहासकार बिपिन चंद्र ने अपनी किताब ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत में’ लिखा है, "गुजरात नाटक का अंतिम अभिनय मार्च 1975 में खेला गया था, जब मोरारजी देसाई के निरंतर आंदोलन और आमरण अनशन का सामना करने के बाद इंदिरा गांधी ने विधानसभा भंग कर दी और जून में नए चुनाव की घोषणा की।

जेपी आंदोलन

गुजरात में हुए नवनिर्माण आंदोलन की सफलता और इससे प्रेरित होकर जल्द ही बिहार में ऐसे ही एक और आंदोलन की शुरुआत हुई। जिसे नाम जेपी आंदोलन नाम दिया गया। इस आंदोलन को जेपी आंदोलन का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसका नेतृत्व स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण कर रहे थे। पहले इस आंदोलन को बिहार आंदोलन नाम दिया गया था लेकिन जल्द ही जयप्रकाश नारायण के इसमें प्रवेश से इसे एक नया बल मिला और आंदोलन का नाम भी बदलकर जेपी आंदोलन कर दिया गया।  

मार्च 1974 में बिहार में एक छात्र विरोध भड़क उठा, जिसमें विपक्षी दलों ने अपनी ताकत झोंक दी। दूसरा, बिहार के मामले में, इंदिरा गांधी ने विधानसभा के निलंबन को स्वीकार नहीं किया। हालांकि उन्हें आपातकाल घोषित करने के लिए निर्धारित करने में जेपी आंदोलन महत्वपूर्ण था। मशहूर लेखकर रामचंद्र गुहा लिखते हैं उन्होंने छात्रों को कक्षाओं का बहिष्कार करने और समाज की सामूहिक चेतना को बढ़ाने की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया। पुलिस, अदालतों और कार्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों के साथ बड़ी संख्या में झड़पें हो रही थीं।

जून 1974 में, जेपी ने पटना की सड़कों के माध्यम से एक बड़े जुलूस का नेतृत्व किया, जिसका समापन 'पूर्ण क्रांति' के आह्वान के रूप में हुआ। उन्होंने असंतुष्टों से मौजूदा विधायकों पर इस्तीफा देने का दबाव बनाने का आग्रह किया, ताकि कांग्रेस सरकार को गिराने में सक्षम हो सकें। इसके अलावा, जेपी ने उत्तर भारत के बड़े हिस्से का दौरा किया, छात्रों, व्यापारियों और बुद्धिजीवियों के वर्गों को अपने आंदोलन की ओर आकर्षित किया। 1971 में कुचले गए विपक्षी दलों ने जेपी को एक लोकप्रिय नेता के रूप में देखा जो गांधी के खिलाफ खड़े होने के लिए सबसे उपयुक्त थे। जेपी ने भी गांधी का प्रभावी ढंग से सामना करने में सक्षम होने के लिए इन पार्टियों की संगठनात्मक क्षमता की आवश्यकता को महसूस किया।

इंदिरा गांधी ने जेपी आंदोलन को अतिरिक्त संसदीय होने की निंदा की और उन्हें मार्च 1976 के आम चुनावों में उनका सामना करने की चुनौती दी। जेपी ने भी इंदिरा गांधी की चुनौती स्वीकार कर ली और इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय समन्वय समिति का गठन किया। इसके बाद गांधी ने जल्द ही आपातकाल लगा दिया।

रेल आंदोलन

अभी बिहार आंदोलन की आग में जल ही रहा था कि तब तक एक और आंदोलन की आग देश में सुलग उठी। बिहार में दंगे और प्रदर्शन हो रहे थे कि समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में रेल आंदोलन की घोषणा कर दी। इस आंदोलन की वजह से देश ठप हो गया था। तीन सप्ताह तक चलने वाले इस आंदोलन, मई 1974 में, हड़ताल के परिणामस्वरूप माल और लोगों की आवाजाही ठप हो गई। गुहा ने अपनी किताब में लिखा है कि इस आंदोलन में करीब एक लाख रेलकर्मियों ने हिस्सा लिया। "कई कस्बों और शहरों में उग्रवादी प्रदर्शन हुए- कई जगहों पर, शांति बनाए रखने के लिए सेना को बुलाया गया," वे लिखते हैं। गांधी की सरकार प्रदर्शनकारियों पर भारी पड़ी। हजारों कर्मचारियों को गिरफ्तार किया गया और उनके परिवारों को उनके क्वार्टर से बाहर कर दिया गया।

राज नारायण बनाम इंदिरा गांधी

अभी देश में जेपी आंदोलन और रेल आंदोलन की आग ठीक से बुझी भी नहीं थी कि इंदिरां गाधी के सामने एक और मुसबीत आ खड़ी हुई। इसी बीच समाजवादी नेता राज नारायण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इंदिरा गांधी के खिलाफ एक याचिका दायर की। 1971 के रायबरेली संसदीय चुनावों में गांधी के लिए राज नारायण एक खतरा बनकर उभरे। याचिका में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पर भ्रष्ट आचरण के माध्यम से चुनाव जीतने का आरोप लगाया गया था। यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने अनुमति से ज्यादा पैसा खर्च किया और आगे सरकारी अधिकारियों द्वारा उसका अभियान चलाया गया।

19 मार्च, 1975 को, गांधी अदालत में गवाही देने वाली पहली भारतीय प्रधानमंत्री बनी। 12 जून, 1975 को, न्यायमूर्ति सिन्हा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गांधी के संसद के चुनाव को शून्य घोषित करने के फैसले को पढ़ा, लेकिन उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के लिए 20 दिनों का समय दिया गया।

24 जून को, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश पर सशर्त रोक लगा दी। इस दौरान इंदिरा गांधी को संसद में तो उपस्थित होने की अनुमति मिल गई लेकिन उनकी अपील पर कोर्ट के फैसले तक उन्हें वोट देने की अनुमति नहीं दी गई। कोर्ट इस फैसले ने जेपी आंदोलन को गति दी, जिससे उन्हें प्रधानमंत्री के इस्तीफे की उनकी मांग के बारे में आश्वस्त किया गया। इसके अलावा, अब तक कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों की भी राय थी कि उनका इस्तीफा पार्टी के अनुकूल होगा। हालांकि इंदिरा गांधी ने दृढ़ता से प्रधानमंत्री पद पर इस विश्वास के साथ कब्जा कर लिया कि वह अकेले ही देश का नेतृत्व कर सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक दिन बाद, आंतरिक आपातकाल की स्थिति घोषित करने वाले एक अध्यादेश का मसौदा तैयार किया गया और राष्ट्रपति ने तुरंत उस पर हस्ताक्षर किए। आपातकाल की घोषणा का अनुरोध करते हुए राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में, गांधी ने लिखा, "सूचना हमारे पास पहुंची है जो भारत की सुरक्षा के लिए आसन्न खतरे का संकेत देती है।" 

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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