भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर याद किए गए स्वतंत्रता सेनानी

Freedom fighter remembered on the 75th anniversary of Quit India Movement
[email protected] । Aug 9 2017 2:22PM

सभापति ने कहा कि इस आंदोलन के शुरू होने के पांच साल बाद देश को आजादी मिली। हम आजादी की लड़ाई के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। उन्होंने कहा कि आज हमें देश की एकता और अखंडता की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए।

भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर आज राज्यसभा ने स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी। सभापति हामिद अंसारी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की 75वीं वर्षगांठ के स्मरणोत्सव पर विशेष चर्चा शुरू होने से पहले स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वालों को याद किया और कहा कि आज भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ है जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1947 में आज के ही दिन शुरू हुआ था। महात्मा गांधी के आह्वान पर देश भर ने पूरी प्रतिबद्धता के साथ इस आंदोलन में भाग लिया।

सभापति ने कहा कि इस आंदोलन के शुरू होने के पांच साल बाद देश को आजादी मिली। हम आजादी की लड़ाई के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। उन्होंने कहा कि आज हमें देश की एकता और अखंडता की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद सदस्यों ने स्वतंत्रता सेनानियों की याद में अपने स्थानों पर खड़े होकर मौन रखा और उन्हें श्रद्धांजलि दी। उपसभापति पीजे कुरियन ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का उल्लेख करते हुए चर्चा की शुरूआत करने को कहा।

इस अवसर पर विशेष चर्चा की शुरूआत करते हुए सदन के नेता एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन देश की आजादी के इतिहास का एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। स्वतंत्रता संग्राम लंबे समय तक चला और अंतत: विदेशी हुकूमत को भारत छोड़ना पड़ा। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि अगस्त 1942 आजादी की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण चरण था। महात्मा गांधी ने आजादी के अंतिम संघर्ष के रूप में भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया जो कई साल चला। जेटली ने कहा कि वह समय एक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण था। एक तरफ दूसरा महायुद्ध (विश्वयुद्ध) चल रहा था। देश में गांधी जी के नेतृत्व में एक भावना बही, वहीं दूसरी तरफ आजाद हिन्द फौज भी आजादी के लिए लड़ रही थी।

उन्होंने कहा कि इस 75 साल की अवधि में कई देशों में राजनीतिक संकट आया। चुनौतियां हमारे सामने भी आईं, लेकिन भारत और मजबूत होता गया। नेता सदन ने कहा कि देश के सामने पहली चुनौती तब आई जब पड़ोसी की नजर कश्मीर पर पड़ी, हमने एक हिस्सा खोया जिसे वापस पाने की भावना आज भी कचोटती है। हमने 1962 (भारत-चीन युद्ध) से सबक सीखा कि फौज की मजबूती जरूरी है। 1965 और 1971 (भारत-पाक युद्ध) के घटनाक्रमों से सेना और मजबूत हुई। उन्होंने कहा कि आज कुछ लोगों की नजर हमारी संप्रभुता पर है, लेकिन हमारे वीर बहादुर जवान हर चुनौती से निपटने में सक्षम हैं। जेटली ने देश के समक्ष चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि आज देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद की है। हमने पंजाब में आतंकवाद देखा जिसकी वजह से एक प्रधानमंत्री को भी जान गंवानी पड़ी, लेकिन हमने इस चुनौती का सामना सफलतापूर्वक किया और पंजाब को आतंकवाद मुक्त बनाया। उन्होंने वाम उग्रवाद पर भी चिंता जताई और कहा कि ऐसे लोग हिंसा के माध्यम से सत्ता बदलने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ सीमा पार से और कुछ अंदर से देश में आतंक फैलाने का प्रयास करते हैं। आज आतंकवाद के खिलाफ इस सदन को एकजुट होकर भी बोलना है।

जेटली ने कहा कि हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने इस तरह की चुनौतियों से सफलतापूर्वक मुकाबला किया है। आज जब हम 75 वर्ष बाद खतरा देखते हैं तो यह सदन एकजुट होता है। हर बीते दिन के साथ लोकतंत्र को और मजबूत करने के प्रयास किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी चुनावी प्रक्रिया, हमारी न्यायिक प्रक्रिया और इस तरह के अन्य संस्थान लोकतंत्र को मजबूत बनाने में सक्षम हैं। इसके साथ ही उन्होंने न्यायिक संस्था और संसदीय संस्था को ताकीद देते हुए कहा कि दोनों को अपना संचालन इस तरह से करना चाहिए कि एक लक्ष्मण रेखा बनी रहे, जो कई बार धूमिल होती नजर आती है।

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश को प्रगति के पथ पर ले जाने के प्रयास हुए, गरीबी मिटाने के लिए प्रयास हुए और 1991 के बाद गरीबी कम हुई तथा जनजीवन में सुधार हुआ, लेकिन यात्रा बहुत लंबी है। जनजातीय लोगों के लिए, शिक्षा तथा सुरक्षा के लिए और साधन दिए जाने की आवश्यकता है। जेटली ने कहा कि आज सबसे बड़ा सवाल सार्वजनिक जीवन में विश्वसनीयता का है। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सार्वजनिक जीवन की विश्वसनीयता थी और एक आवाज पर लोग खड़े हो गए। आज देश के सामने भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे हैं। स्थानीय निकायों और पुलिस जैसे संस्थानों को ऐसा बनने की आवश्यकता है जिससे आम आदमी के सामने इनकी विश्वसनीयता बढ़े। उन्होंने कहा कि आज शांति, सद्भाव और मेलजोल की आवश्यकता है। अगर किसी प्रांत में एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक हिंसा होती है, कहीं आतंकवाद की घटना होती है, तो इस तरह की घटनाओं के लिए देश में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। आज देश को प्रगतिशील बनाने का प्रण लेने की आवश्यकता है।

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