2014 से लेकर 2020 तक कांग्रेस ने चखा शून्य का स्वाद, यह बड़ी गलतियां कीं

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दिल्ली विधानसभा चुनाव के रुझानों में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिल चुका है, जबकि कांग्रेस को एक बार फिर से शून्य का स्वाद चखना पड़ा है। आपको बता दें कि पार्टी उम्मीदवारों ने आला नेतृत्व से आर्थिक मदद की भी बात की थी लेकिन वहां से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं आई।

नयी दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के रुझानों में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिल चुका है, जबकि कांग्रेस को एक बार फिर से शून्य का स्वाद चखना पड़ा है। इसके लिए सीधे तौर पर कांग्रेस पार्टी का आला नेतृत्व जिम्मेदार है क्योंकि पिछले दिनों सूत्रों के हवाले से खबर चली कि कांग्रेस उम्मीदवार लगातार पार्टी नेतृत्व से रैलियां करने के लिए संपर्क करते रहे लेकिन किसी ने भी कोई रिस्पांस नहीं दिया।

साथ ही कहा गया कि पार्टी उम्मीदवारों ने आला नेतृत्व से आर्थिक मदद की भी बात की थी लेकिन वहां से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं आई। जिसके चलते कांग्रेस उम्मीदवारों का मनोबल कमजोर होने लगा था और आज चुनावी परिणाम में इसे साफ-साफ देखा जा सकता है।

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सोनिया गांधी की रणनीति हुई फेल

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अलग-अलग राज्यों के दिग्गज पार्टी नेताओं की बैठक की थी, जिसमें उन्होंने चुनाव के लिए रणनीतियां तैयार की थीं। साथ ही कहा जा रहा था कि सोनिया गांधी खुद हर एक विधानसभा सीट के लिए उम्मीदवारों का चयन कर रही थीं।

आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की कैबिनेट में शामिल कई नेताओं पर भी पार्टी ने दांव खेला था। हालांकि कोई भी नेता अपना दम नहीं दिखा पाया।

शिखर से शून्य तक कांग्रेस

1998 के विधानसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद शीला दीक्षित प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। उनका कार्यकाल इतना बेहतरीन रहा कि उन्होंने लगातार तीन बार दिल्ली की सत्ता संभाली। लेकिन साल 2011 में अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद से कांग्रेस की छवि खराब होने लगी और फिर आंदोलन से एक नेता निकलकर सामने आया।

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साल 2013 के विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की मदद से दिल्ली में सरकार बनाई। हालांकि यह सरकार 49 दिनों की ही थी। फिर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया।

कांग्रेस की बात करें तो साल 2014 से लेकर अभी के विधानसभा चुनाव में शून्य का ही स्वाद चखा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। 2015 के विधानसभा चुनाव में 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी आई तो 3 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज किया। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई और हालिया स्थिति तो आप सभी के सामने है ही। 

2020 की शुरुआत के साथ कांग्रेस दिल्ली में सरकार बनाने का दावा कर रही थी। लेकिन उनका दावा तो इतना गलत साबित हुआ कि आप सोच भी नहीं सकते हैं। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 36 सीटों की आवश्यकता होती है लेकिन कांग्रेस ने तो एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं की है।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस ने सिर्फ और सिर्फ आम आदमी पार्टी का वोट काटा है और भाजपा को 2015 के मुकाबले मजबूत करने में सहायता प्रदान की है। दिल्ली में मिली करारी हार के बाद पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश करने की बात कही है।

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