मूक प्रदर्शन से हिंसा तक: मराठा आरक्षण को लेकर प्रदर्शन का सफर
नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय ने रैली, मूक प्रदर्शन के बाद हिंसक आंदोलन तक दबाव और बढ़ा दिया है।
मुंबई। नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय ने रैली, मूक प्रदर्शन के बाद हिंसक आंदोलन तक दबाव और बढ़ा दिया है। मराठा समुदाय के प्रतिनिधियों का कहना है कि भाजपा नीत सरकार के ‘अहंकार और झूठ’ तथा आरक्षण देने में देरी से उसके युवाओं के बीच ‘भड़कते आक्रोश’ के कारण समुदाय ने दबाव बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन अहिंसक तरीके से होगा।
राज्य की तकरीबन 13 करोड़ आबादी में एक तिहाई मराठा ने आरक्षण समेत अन्य मांगों पर दबाव बनाने के लिए समूचे महाराष्ट्र में 2016 और 2017 में 50 से ज्यादा मूक मोर्चे निकाले। राज्य विधानमंडल ने समुदाय को आरक्षण प्रदान करने के लिए 2014 में एक विधेयक पारित किया था। इस कानून पर बंबई उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी। इसके बाद मौजूदा सरकार ने उच्चतम न्यायालय का रूख किया। राहत नहीं मिलते देख फिर से उच्च न्यायालय का रूख किया गया।
प्रदर्शन में हिंसा और आत्महत्या की घटनाओं की वजह के बारे में पूछे जाने पर अखिल भारतीय मराठा महासंघ के महासचिव राजेंद्र कोंढारे ने कहा कि समुदाय के सदस्यों का धैर्य जवाब दे रहा है। महासंघ को पता नहीं है कि हिंसा में कौन से लोग संलिप्त हैं। उन्होंने कहा, ‘लोग अब सुनने को तैयार नहीं हैं। उनका गुस्सा बेकाबू हो चुका है। सामान्य जन को इतना नहीं पता कि अदालती प्रक्रिया में समय लगता है। इसलिए लोगों और अदालत को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।’
कोंढारे ने मुद्दे के समाधान के लिए राज्य में तुरंत सर्वदलीय बैठक बुलाने पर जोर दिया। संभाजी ब्रिगेड के प्रमुख और मराठा क्रांति मोर्चा के प्रदेश समन्वयक प्रवीन गायकवाड ने सरकार पर समुदायों की मांग को लेकर हठी और उदासीन रवैया अपनाने का आरोप लगाया।
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