गोवा में परिवारों के पुनर्मिलन का समय होता है गणेश उत्सव

Ganesh
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पेशे से डॉक्टर साईदत्त कुवेलकर ने कहा, ‘‘यह मकान 1918 में हमारे परदादा सदाशिव कुवेलकर ने बनवाया था। परिवार के सभी लोग 1966 तक इस घर में साथ रहते थे। इससे बाद हम काम आदि के सिलसिले में बाहर का रुख करने लगे। घर 1966 के बाद से साल भर बंद रहता है, लेकिन गणेश चतुर्थी के दौरान यह जीवंत हो उठता है क्योंकि गोवा के विभिन्न स्थानों और मुंबई में बसे परिजन यहां आते हैं।’’

पणजी, 22 अगस्त। दक्षिण गोवा के राया गांव में कुवेलकर परिवार का 104 साल पुराना घर एक बार फिर से इस राज्य की पुरानी परंपरा का गवाह बनेगा, जहां एकजुट होकर गणेश उत्सव मनाने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचेंगे। 31 अगस्त से शुरू होने वाले इस उत्सव को पूरे गोवा में धूमधाम से मनाया जाता है, जिसके कारण राज्य जाने वाली रेलगाड़ियों, खासकर पड़ोसी महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र की रेलगाड़ियों में भीड़ होती है।

पेशे से डॉक्टर साईदत्त कुवेलकर ने कहा, ‘‘यह मकान 1918 में हमारे परदादा सदाशिव कुवेलकर ने बनवाया था। परिवार के सभी लोग 1966 तक इस घर में साथ रहते थे। इससे बाद हम काम आदि के सिलसिले में बाहर का रुख करने लगे। घर 1966 के बाद से साल भर बंद रहता है, लेकिन गणेश चतुर्थी के दौरान यह जीवंत हो उठता है क्योंकि गोवा के विभिन्न स्थानों और मुंबई में बसे परिजन यहां आते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘गणेश उत्सव के लिए पकाया जाने वाला सभी पारंपरिक भोजन अब भी तैयार किया जाता है। पुरुष धोती पहनते हैं और महिलाएं नौ गज की साड़ी (नौवारी साड़ी) पहनती हैं। परिवार का पुनर्मिलन हम सभी को बहुत उत्साहित करता है।’’

कैनाकोना के पालोलेम में मीडिया पेशेवर नीरज बांदेकर के 80 साल पुराने पैतृक घर में भी ऐसा ही उत्साह होता है। पालोलेम अपने समुद्र तट के लिए जाना जाता है, लेकिन वर्ष के इस समय यह गणेश उत्सव के रंग में रंग जाता है। बांदेकर ने कहा, ‘‘मेरे सभी पांच चाचा हमारे पैतृक घर पर इकट्ठा होते हैं। त्योहार की तैयारी बहुत पहले से शुरू हो जाती है। इस अवसर को भव्य बनाने के लिए सभी समान रूप से योगदान देते हैं। गोवा में, यह एक ऐसा समय है जब परिवार एक साथ जुटते हैं।’’ कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन लिमिटेड के एक अधिकारी ने कहा कि भीड़ के कारण मुंबई से अतिरिक्त ट्रेन चलाई जा रही हैं, क्योंकि महाराष्ट्र में कोंकण तट के विभिन्न क्षेत्रों के लोग इस दौरान गोवा स्थित अपने पैतृक गांवों में आते हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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