आतंकरोधी कानून और ढांचे को मजबूत करेगी सरकार
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज कहा है कि राजग सरकार आतंकरोधी कानूनों को मजबूत करने और अंडर कवर अभियानों के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करने की तैयार कर रही है।
आतंकवादियों द्वारा अपने दुष्प्रचार के लिए सोशल मीडिया का व्यापक इस्तेमाल करने और इससे नए खतरों के उभरने के मद्देनजर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज कहा है कि राजग सरकार आतंकरोधी कानूनों को मजबूत करने और अंडर कवर अभियानों के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करने की तैयार कर रही है। ‘जांच एजेंसियों पर राष्ट्रीय सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि सरकार आतंकवादियों को दंड देने और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम तथा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है।
उन्होंने कहा, ‘‘अंडरकवर ऑपरेशन को कानूनी संरक्षण देने, खुफिया सूचनाओं को सबूत के तौर पर इस्तेमाल करने और आतंकवाद से लड़ाई से जुड़े सभी मुद्दों पर हम विचार कर रहे हैं।’’ सिंह ने कहा कि आतंकवादियों द्वारा सोशल मीडिया के व्यापक इस्तेमाल के कारण देश में नए खतरे पनप रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इन चुनौतियों का सामना करने के लिए इंडियन कंप्यूटर इमर्जेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी-आईएन), सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (सी-डेक) जैसे विशेषज्ञ संगठनों की मौजूदा क्षमताओं को मजबूत किए जाने की जरूरत है।’’ गृहमंत्री ने कहा कि सरकार परस्पर कानूनी सहायता संधियों के जरिए प्राप्त सबूतों को कानूनी मंजूरी देने के लिए आपराधिक मामले कानून में परस्पर कानूनी सहायता के क्रियान्वयन पर भी विचार कर रही है। ताकि ऐसे सबूतों की स्वीकार्यता को लेकर कोई भी संदेह नहीं रह जाए। सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार दलितों के विकास और सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध है। और सरकार ने ऐसा माहौल बनाया है जहां यह समुदाय पीड़ित होने की दशा में बगैर किसी हिचक के पुलिस से संपर्क कर सकता है। उन्होंने कहा कि राजग सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) कानून में साल 2014 में संशोधन करके और इसमें अपराध की नई श्रेणी जोड़कर इस कानून को और मजबूत बना दिया है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जांच की गुणवत्ता को सुधारने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं और क्राइम ऐंड क्रिमिनल ट्रेकिंग नेटवर्क सिस्टम्स (सीसीटीएनएस) परियोजना में भी सुधार किया है। इस परियोजना के तहत पुलिस की कार्यप्रणाली को पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत किया जाएगा और फिर इस परियोजना का विस्तार अदालत, जेल, अभियोजन और फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं तक किया जाएगा। महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पर उन्होंने कहा कि सरकार महिलाओं के खिलाफ अपराधों से चिंतित है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच के लिए भारत के 564 जिलों में ‘‘महिलाओं के खिलाफ अपराध जांच इकाईयां (आईयूसीएडब्ल्यू)’’ स्थापित की जा रही हैं।
उन्होंने बताया कि इन इकाईयों के जांचकर्ताओं में से एक तिहाई महिलाएं होंगी और इनके लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 50-50 फीसदी की साझेदारी के आधार पर धन उपलब्ध करवाया जाएगा। गृहमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार अगले दो साल में इन इकाईयों पर 324 करोड़ र. खर्च करेगी। सिंह ने कहा कि जांच एजेंसियां कई चुनौतियों का सामना कर रही हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि सम्मेलन इन चुनौतियों से निबटने के उपायों पर चर्चा करने का मौका दे सकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक दोषी ठहराए जाने की दर बहुत कम है और इसलिए पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए जांच की गुणवत्ता मायने रखती है। सिंह ने कहा कि जांच की गुणवत्ता को पुलिस थाना स्तर पर सुधारने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘पुलिस थाना स्तर पर जांच की गुणवत्ता सुधारने के अलावा हमें पीड़ितों और चश्मदीदों के साथ उचित व्यवहार भी सुनिश्चित करना होगा।’’ गृहमंत्री ने कहा कि जांच के लिए बुलाए जाते वक्त पीड़ितों और चश्मदीदों की सुविधा का भी खयाल रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पीड़ितों को समय-समय पर जांच में प्रगति की जानकारी दी जानी चाहिए।
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