राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम बनाने की तैयारी कर रही सरकार: डॉ. हर्षवर्धन
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने कहा कि महामारी तथा स्वास्थ्य संबंधी अन्य आपात परिस्थितियों से जुड़ी काफी चीजें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम एवं कानून के तहत कवर होती हैं।
नयी दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने शनिवार को कहा कि सरकार महामारी सहित अन्य जैविक आपात स्थिति एवं स्वास्थ्य संबंधी विषय को लेकर एक समग्र एवं समावेशी ‘राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम’ बनाने की तैयारी कर रही है। राज्यसभा में महामारी (संशोधन) विधेयक 2020 पर हुई चर्चा के जवाब में यह बात कही। उच्च सदन ने मंत्री के जवाब के बाद महामारी (संशोधन) विधेयक 2020 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने कहा कि महामारी तथा स्वास्थ्य संबंधी अन्य आपात परिस्थितियों से जुड़ी काफी चीजें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम एवं कानून के तहत कवर होती हैं।
इसे भी पढ़ें: राज्यसभा से होम्योपैथी केंद्रीय परिषद विधेयक पास, जानिए हर्षवर्धन ने सदन में क्या कुछ कहा
उन्होंने बताया ‘‘ पिछले 3-4 वर्षों से हमारी सरकार लगातार जैविक आपात स्थिति, महामारी जैसे विषयों से निपटने के बारे में समग्र एवं समावेशी पहल अपना रही है। ’’ डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, ‘‘ इस दिशा में सरकार ‘राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम’बनाने पर काम कर रही है।’’ उन्होंने कहा कि इस बारे में विधि विभाग ने राज्यों के विचार जानने का सुझाव दिया था। ‘‘प्रारंभ में हमें सिर्फ चार राज्यों मध्यप्रदेश, त्रिपुरा, गोवा और हिमाचल प्रदेश से सुझाव मिले। हाल ही में इस बारे में 10 अन्य राज्यों से सुझाव प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार 14 राज्यों से हमें सुझाव मिल चुके हैं।’’
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम एवं अन्य कानून में जो चीजें कवर नहीं होती हैं, वे सभी इस प्रस्तावित राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम में कवर होंगी। उच्च सदन ने मंत्री के जवाब के बाद महामारी (संशोधन) विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। यह विधेयक संबंधित अध्यादेश के स्थान पर लाया गया। इस संबंध में अध्यादेश अप्रैल में लागू किया गया था। सदन ने भाकपा सदस्य विनय विश्वम द्वारा पेश उस संकल्प को खारिज कर दिया जिसमें महामारी (संशोधन) अध्यादेश 2020 को नामंजूर करने का प्रस्ताव किया गया था।
इसे भी पढ़ें: राज्यसभा में विपक्षी दलों का सरकार से सवाल, पूछा- होम्योपैथी केंद्रीय परिषद के गठन में क्यों हुई देरी ?
इससे पहले, कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने जितना अधिक प्रभावित किया है, उतना किसी अन्य बीमारी ने नहीं किया है। उन्होंने कहा कि यह काफी छोटा संशोधन है। कोरोना संक्रमण काल में स्वास्थ्य कर्मियों ने जो कार्य किये हैं, वह सराहनीय हैं। लेकिन पुलिस कर्मी, रक्षा कर्मी एवं कुछ अन्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने भी काफी अच्छा काम किया है और उन्हें भी समर्थन दिये जाने की जरूरत है। शर्मा ने कहा कि सरकार को महामारी से जुड़े विषय पर एक कार्य बल का गठन करना चाहिए जिसमें अन्य लोगों के अलावा स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ, वैज्ञानिक समुदाय से जुड़े लोगों को शामिल किया जाना चाहिए। इसमें राज्यों से भी सुझाव लिया जाए और भविष्य में महामारी को लेकर एक ठोस प्रबंधन का ढांचा तैयार किया जाए।
कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार को महामारी को लेकर एक स्पष्ट परिभाषित प्रोटोकॉल तैयार करना चाहिए और इसे राज्य, जिला और ब्लाक स्तर पर उपलब्ध कराना चाहिए। वहीं, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि निजी अस्पतालों के शुल्क को लेकर केंद्र सरकार ने राज्यों को दिशा निर्देश जारी किया था। निजी अस्पतालों के शुल्क व्यवहारिक हों, इस दिशा में पहल की गई। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पीपीई किट एवं अन्य चीजों की कालाबाजारी के संबंध में ड्रग कंट्रोलर राज्यों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। कंपनियों को वेबसाइट पर जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया है। दवा निर्माता इकाइयों की ऑडिट भी की जा रही है।
इसे भी पढ़ें: सरकार ने कोरोना मृत्युदर को एक फीसदी से नीचे लाने का रखा लक्ष्य: स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत राज्यों को पर्याप्त कोष दिया गया है और कई राज्यों ने अनुपालन रिपोर्ट भी दी है। उल्लेखनीय है कि इस विधेयक के माध्यम से महामारी रोग अधिनियम 1897 में संशोधन किया गया है। इसमें महामारियों से जूझने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को संरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है। साथ ही, विधेयक में बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार की शक्तियों में विस्तार करने का भी प्रावधान है। इसके तहत स्वास्थ्य कर्मियों के जीवन को नुकसान, चोट, क्षति या खतरा पहुंचाने कर्तव्यों का पालन करने में बाधा उत्पन्न करने और स्वास्थ्य सेवा कर्मी की संपत्ति या दस्तावेजों को नुकसान या क्षति पहुंचाने पर जुर्माने और दंड का प्रावधान किया गया है। इसके तहत अधिकतम पांच लाख रूपये तक जुर्माना और अधिकतम सात साल तक सजा का प्रावधान किया गया है।
Many healthcare workers incl doctors, paramedics were insulted in some form or the other, due to stigma attached to COVID19. Centre govt acted on this situation & found that there was a need for a law, a prohibitory mechanism against such incidents:Dr Harsh Vardhan in Rajya Sabha pic.twitter.com/lTT3zhE04f
— ANI (@ANI) September 19, 2020
अन्य न्यूज़