भारी हंगामे के बाद संसद में आएगा गिलोटिन, मोदी सरकार के नए दांव के बारे में विस्तार से जानें

guillotine-will-come-to-parliament-after-a-lot-of-uproar-know-more-about-the-new-stake-of-modi-government
अभिनय आकाश । Mar 6 2020 4:41PM

सरकार ने बजट सत्र में सभी मंत्रालयों की अनुदान मांगों को पारित करने के लिए ''गिलोटिन'' का सहारा लेने का फैसला किया है। सरकार को तीन अप्रैल से पहले बजट पारित कराना है, लिहाजा 16 मार्च को लोकसभा में गिलोटिन होगा।

संसद के दोनों सदनों में दिल्ली हिंसा पर गतिरोध बरकरार है। इन सब के बीच कांग्रेस के 7 सांसदों के निलंबन के बाद हंगामे की वजह से बजट सत्र के दूसरे हिस्से में कोई भी कामकाज नहीं हो पाया है। जबकि दोनों ही सदनों से विभिन्न मंत्रालयों की अनुपूरक मागों को पारित कराया जाना है। इसके तहत सरकार ने बजट सत्र में सभी मंत्रालयों की अनुदान मांगों को पारित करने के लिए 'गिलोटिन' का सहारा लेने का फैसला किया है। सरकार को तीन अप्रैल से पहले बजट पारित कराना है, लिहाजा 16 मार्च को लोकसभा में गिलोटिन होगा। 

इसे भी पढ़ें: लोकसभा में हंगामे के कारण खनिज विधि संशोधन विधेयक नहीं हो सका पारित

संसद में कई तरह के बिल और विधायी होते हैं जिन्हें की संसद में पास करना होता है। उन प्रस्तावों पर हमेशा एक तरह की समस्या उतपन्न होती है कि विभिन्न राजनीतिक दल उस विषय पर अपने विचार व्यक्त करना चाहती है। हर दल में अनेक सदस्य होते हैं और कुछ स्वतंत्र सांसद भी होते हैं जो उस बिल पर अपने विचार रखना चाहते हैं। परिणाम स्वरूप मेंबर के अधिक होने की अवस्था में समय कम पड़ जाता है। हमेशा स्पीकर के सामने ये बड़ी चुनौती होती है कि वो समय के अनुरुप ही तमाम विधायी कार्यों को समाप्त करे। इसके लिए लोकसभा अध्यक्ष सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं से परामर्श करके प्रत्येक दिन के कैलेंडर को बनाया जाए और उसके अनुरूप ही सदन का संचालन किया जाए। कभी-कभी इसके लिए स्पीकर को कटोर भी होना पड़ता है क्योंकि तय सीमा में विधायी कार्यो को  पूरा करवाना उनकी जिम्मेदारी होती है। इसलिए हर स्पीकर को कभी पार्टियों की नाराजगी कभी सदस्यों की नाराजगी झेलनी पड़ती है। जब भी कभी ऐसी स्थिति आती है और उसे लगता है कि समय का आभाव है और सदन इस मुद्दे पर ज्यादा चर्चा नहीं कर सकता तो उसे मतदान कराना पड़ता है और मतदान के लिए एक समय-सीमा निर्धारित करनी पड़ती है। इसी समय सीमा को निर्धारित करने के लिए दो तरह के महत्वपूर्ण समापन उसको करने पड़ते हैं। एक को कंगारू समापन कहते हैं और दूसरे को गिलोटिन क्लोजर कहते हैं। 

इसे भी पढ़ें: लोकसभा की कार्यवाही 12 बजे तक के लिए स्थगित

कंगारू और गिलोटिन ये दोनों शब्दों के भाव को जानते हैं। कंगारू वैसे तो आस्टेलिया में पाए जाने वाला एक जानवर है। आपको कभी इसके चाल को देखा होगा तो वो फुदकता हुआ जाता है। मतलब वो वाक नहीं बल्कि स्किप करता हुआ जाता है। इसकी वजह से कंगारू क्लोजर शब्द का प्रयोग किया गया है तो इसका मतलब हुआ कि सदन में जो चर्चा हो रही है वो धारा-प्रवाह ढंग से चर्चा नहीं हो पाती है। कुछ चीजों को छोड़के हुए स्किप करते हुए आगे बढ़ने की प्रवृति होती है जिससे की समापन जल्दी किया जा सके। 

इसे भी पढ़ें: लोकसभा ने खनिज विधि संशोधन विधेयक 2020 को दी मंजूरी

गिलोटिन एक फ्रेंच शब्द है जिसका मतलब मृत्यु के समय ढंड देने की प्रक्रिया जैसे कि सिर कलम करने के लिए या मौत के लिए इस्तेमाल होता था। लेकिन बाद में इस शब्द को कई अलग-अलग अर्थों में इस्तेमाल होने लगा है। भारतीय संविधान में बजट सत्र में मंत्रालयों के अनुदान मांगों को बिना चर्चा के पारित कराने की प्रक्रिया को 'गिलोटिन' कहा जाता है। वहीं सामान्य प्रक्रिया है में मंत्रालयों के अनुदान मांगों पर चर्चा होती है इसके बाद सदन इसको संशोधन या इसके बिना पारित कर देता है। लेकिन भारत में कई मंत्रालय हैं सभी चर्चा होना संभव नहीं इसलिए ऐसे में जिन मांगों पर चर्चा नहीं हो पाती है उस पर मतदान कराकर पारित कर दिया है जिसे गिलोटिन कहा जाता है।


पहले भी कानून पास कराने के लिए हुआ है 

ऐसा नहीं है कि गिलोटिन का इस्तेमाल पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी यूपीए-2  के समय में भी हंगामे के बीच 18 बिल गिलोटिन के माध्यम से पारित कराए गए थे। इसके अलावा, द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, नरेंद्र मोदी सरकार ने भी मार्च 2018 को गिलोटिन के तहत 2 बिल व 218 अमेंडमेंट को पास करा दिया था। इस समय देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली थे। गिलोटिन के तहत 2 बिल व 218 संशोधन को पास कराने में सरकार को करीब आधे घंटे का समय लगा था। ये दोनों बिल व संशोधन बिना किसी चर्चा के ही सदन में पास हो गया था।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़