गुजरात सरकार ने बंदरगाह को लेकर कांग्रेस के आरोप को नकारा

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रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘सरकार निजी बंदरगाहों को बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओओटी) आधार पर 30 साल की रियायत अवधि प्रदान करती है, जिसके बाद स्वामित्व गुजरात सरकार को हस्तांतरित हो जाता है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने बुधवार को कांग्रेस नेता जयराम रमेश के इस आरोप का खंडन किया कि बंदरगाह के संबंध में उसकी प्रस्तावित नीति अदाणी समूह के पक्ष में है।

गुजरात राज्य सरकार ने दावा किया कि यह नीति सभी बंदरगाह संचालकों पर समान रूप से लागू होगी। सरकार ने यह भी कहा कि बंदरगाह संचालकों को रियायत प्रदान करने के लिए 50 वर्ष की कोई अधिकतम स्वीकार्य अवधि नहीं है, जैसा कि रमेश ने अपने पोस्ट में दावा किया है।

इससे पहले, रमेश ने आरोप लगाया था कि गुजरात सरकार बंदरगाह क्षेत्र में अदाणी समूह की कंपनी का एकाधिकार सुनिश्चित करने के लिए उसकी मदद कर रही है। रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘सरकार निजी बंदरगाहों को बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओओटी) आधार पर 30 साल की रियायत अवधि प्रदान करती है, जिसके बाद स्वामित्व गुजरात सरकार को हस्तांतरित हो जाता है।

इस मॉडल के आधार पर अदाणी पोर्ट्स का वर्तमान में मुंद्रा, हजीरा और दाहेज बंदरगाहों पर नियंत्रण है।’’ उन्होंने दावा किया, ‘‘2024 के लोकसभा चुनावों से पहले, अदाणी पोर्ट्स ने गुजरात समुद्री बोर्ड (जीएमबी) से इस रियायत अवधि को और 45 साल बढ़ाकर कुल 75 साल करने का अनुरोध किया।

यह 50 वर्षों की अधिकतम स्वीकार्य अवधि से बहुत अधिक था, लेकिन जीएमबी ने गुजरात सरकार से ऐसा करने का अनुरोध करने में जल्दबाजी की। रमेश ने कहा, ‘‘जीएमबी इतनी जल्दी में थी कि उसने अपने बोर्ड की मंजूरी के बिना ऐसा किया, जिसके परिणामस्वरूप फाइल वापस आ गई।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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