बाबरी मामले के सबसे बुजुर्ग वादी हाशिम अंसारी का निधन

[email protected] । Jul 20 2016 5:52PM

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सबसे बुजुर्ग पैरोकार मोहम्मद हाशिम अंसारी का हृदय संबंधी बीमारियों के चलते आज सुबह निधन हो गया। उनके बेटे ने यह जानकारी दी।

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सबसे बुजुर्ग पैरोकार मोहम्मद हाशिम अंसारी का हृदय संबंधी बीमारियों के चलते आज सुबह निधन हो गया। वह 1949 से इस मामले से जुड़े थे। उनके बेटे इकबाल ने बताया कि 95 वर्षीय अंसारी ने आज तड़के अपने आवास पर अंतिम सांस ली। अयोध्या में पैदा हुए अंसारी ने सबसे पहले 1949 में इस मामले को लेकर अदालत में मुकदमा दायर किया था। वह सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा फैजाबाद दीवानी अदालत में दायर ‘अयोध्या मामले के मुकदमे’ में 1961 में कुछ अन्य लोगों के साथ प्रमुख वादी बने थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साल 2010 में इस मुकदमे में बहुमत से फैसला सुनाया था। अदालत ने अयोध्या में विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को आवंटित कर दिया था। बाकी का दो तिहाई हिस्सा वक्फ बोर्ड और रामलला का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष के बीच बराबर बांट दिया गया था।

फैसले के तुरंत बाद अंसारी ने विवाद को दफन करने और ‘‘नई शुरूआत’’ करने की अपील की थी। अयोध्या विवाद का हल अदालत से बाहर निकालने के अपने प्रयास के तहत अंसारी ने पिछले साल फरवरी में कहा था कि मामले के शांतिपूर्ण समाधान के लिए वह अल्पसंख्यक समुदाय के प्रमुख लोगों को साथ लेंगे। अंसारी ने विवाद के समाधान के लिए नये प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए अखाड़ा परिषद के प्रमुख महंत ज्ञान दास से मुलाकात भी की थी। अदालत के बाहर समाधान का जो फार्मूला पेश किया गया था उसमें विवादित परिसर के 70 एकड़ में मंदिर और मस्जिद दोनों बनाने तथा फिर दोनों धार्मिक स्थलों के बीच 100 फुट ऊंची दीवार खड़ी करने की बात की गई थी। अंसारी ने यह भी कहा था कि वह जनजागरूकता अभियान शुरू करना और समुदाय के नेताओं का समर्थन हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने कहा था, ‘‘यह न तो एक आदमी का काम है और न ही एक आदमी यह कर सकता है। अगर हम 60 साल से अधिक पुरानी समस्या का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं तो यह जरूरी है कि मुस्लिम समुदाय के जिम्मेदार लोग और धार्मिक नेता इस पर चर्चा के लिए आगे आएं।’’

हाशिम अंसारी के अलावा मोहम्मद फारूक, शहाबुद्दीन, मौलाना निसार और महमूद साहब इस मामले में वादी थे। अंसारी फैजाबाद दीवानी अदालत में यह मामला दायर कराने वाले पहले व्यक्ति थे। विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा ने अंसारी के निधन पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि कट्टरपंथियों को अंसारी से सबक लेना चाहिये। शर्मा ने कहा कि अंसारी के विचार मुस्लिम कट्टरपंथियों से अलग थे। अन्ततोगत्वा राम का नाम ही सत्य है। अंसारी पानी के बुलबुले की तरह थे, जो समय के साथ विलीन हो गये।

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनके जाने से एक बोलती हुई जबान खामोश हो गयी, जो बाबरी मामले पर मीडिया और समाज में अपना सम्मान हासिल कर चुकी थी। विवादित ढांचा विवाद के वह आखिरी मूल वादी थे। ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि बाबरी मस्जिद के सिलसिले में सबसे पुराने पैरोकार रहे अंसारी ने शुरू से लेकर अपनी आखिरी सांस तक बाबरी मस्जिद की जंग को एक जम्हूरी तरीके से लड़ा और जद्दोजहद की, इसके लिये पूरी कौम उन्हें हमेशा याद रखेगी। उन्होंने कहा कि अंसारी ने कई बार हिन्दू पक्ष के साथ बैठकर बातचीत के जरिये हमेशा के लिये इस मसले का हल निकालने की कोशिश की, मगर अफसोस कि कामयाबी नहीं मिली लेकिन अयोध्या में आज भी मुस्लिम के साथ-साथ हिन्दू भाई भी उन्हें इज्जत की नजरों से देखते हैं। अंसारी ने बाबरी मुद्दे पर कानूनी रास्ता अख्तियार किया और कभी कोई सियासत नहीं की।

श्री कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि अंसारी एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने हमेशा इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब की मजबूती के लिये काम किया। उनका जाना इस दौर में जब लोग धर्म के नाम पर नफरत फैला रहे हैं, निश्चित ही इस देश के लिये अफसोसजनक है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उनकी रूह को सुकून दे। यह देश हाशिम अंसारी जैसे लोगों को हमेशा याद रखेगा। उनके जाने से मुसलमानों के साथ-साथ हिन्दुओं में भी मातम का माहौल है।’'

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