उच्च न्यायपालिका एवं विभागों में हिन्दी में कामकाज का मुद्दा उठा

[email protected] । May 10 2016 5:59PM

सरकार ने कहा कि उच्च एवं उच्चतम न्यायालय में हिन्दी के उपयोग के बारे में प्रधान न्यायाधीश के प्रतिकूल निर्णय देने के कारण उच्च न्यायपालिका में हिन्दी उपयोग का प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया।

हिन्दी के प्रचार प्रसार एवं कामकाज में उपयोग की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए सरकार ने आज कहा कि उच्च एवं उच्चतम न्यायालय में हिन्दी के उपयोग के बारे में भारत के प्रधान न्यायाधीश के प्रतिकूल निर्णय देने के कारण उच्च न्यायपालिका में हिन्दी के उपयोग का प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया। हालांकि चार राज्यों के उच्च न्यायालय में हिन्दी का उपयोग होता है। लोकसभा में रंजीत रंजन, रमेश कुमार वैश समेत कई सदस्यों के पूरक प्रश्नों के उत्तर में गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने कहा कि संविधान में उच्च न्यायालयों में हिन्दी के उपयोग का प्रावधान किया गया है, साथ ही राजभाषा अधिनियम में भी इसका प्रावधान किया गया है।

मंत्री ने कहा कि हम चाहते हैं कि हिन्दी और हिन्दुस्तान की स्थानीय भाषाओं का न्यायालय में प्रावधान होना चाहिए। साल 1965 में कैबिनेट का एक निर्णय आया था और इसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में हिन्दी में किस तरह से काम हो, उसके बारे में भारत के प्रधान न्यायाधीश निर्णय दें। भारत के प्रधान न्यायाधीश का निर्णय ‘नकारात्मक’ रहा। रिजीजू ने कहा कि देश के चार राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में उच्च न्यायालयों में हिन्दी का उपयोग होता है। हालांकि इसका विरोध करते हुए रंजीत रंजन ने कहा कि बिहार में उच्च न्यायालय ने हिन्दी में सुनवाई करने से मना कर दिया। इस पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अगर बिहार में उच्च न्यायालय ने हिन्दी में सुनवाई करने से मना किया है तो यह गंभीर बात है। इस बारे में सदस्य वहां के राज्यपाल से मिल सकती है और इस विषय को उठा सकती है।

रिजिजू ने कहा कि अन्य राज्यों में राष्ट्रपति और राज्यपाल की मंजूरी के पश्चात इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राज्यों में कामकाज में हिन्दी के उपयोग के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई है। ‘क’ श्रेणी वाले प्रदेशों में यह अच्छा काम कर रहा है। अन्य श्रेणी के राज्यों पर हम हिन्दी को थोप नहीं सकते हैं। प्रश्नकाल के दौरान रंजीत रंजन कहा कि संसद और मंत्रालयों के कामकाज में हिन्दी का प्रयोग जरूरी है। ऐसा लगता है कि हम अंग्रेजों के गुलाम बनकर रह गए हैं। इस विषय को उठाते हुए रमेश कुमार वैश ने कहा कि हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि राजभाषा बनकर रह गई है। आजादी के इतने वर्ष गुजरने के बाद भी हम हिन्दी को उसका उचित स्थान नहीं दिला पाये।

हिन्दी के प्रचार प्रसार की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए रिजिजू ने कहा कि सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में प्रत्येक तिमाही के अंत में राजभाषा हिन्दी के प्रयोग से संबंधित तिमाही प्रगति रिपोर्ट मंगाई जाती है और उसकी समीक्षा की जाती है। उन्होंने कहा कि राजभाषा विभाग द्वारा प्रति वर्ष वाषिर्क कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें हिन्दी के प्रयोग के लिए लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। सरकार की पहल पर 50 हजार सरल शब्दावली तैयार की गई है। केंद्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान और केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो के माध्यम से केंद्र सरकार के कर्मियों को हिंदी भाषा, हिंदी टंकण, हिन्दी आशुलिपि, अनुवाद एवं कम्प्यूटर पर हिन्दी के प्रयोग का प्रशिक्षण दिया जाता है। मंत्री ने कहा कि सरकार की राजभाषा नीति प्रेरणा, प्रोत्साहन और सद्भाव पर आधारित है और इसलिए हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए राजभाषा विभाग की तरफ से भारत सरकार के विभिन्न विभागों के लिए प्रोत्साहन योजनाएं लागू की गईं हैं।

We're now on WhatsApp. Click to join.

Tags

    All the updates here:

    अन्य न्यूज़