हिंदी भाषा को थोपना और कुछ नहीं बल्कि राज्यों पर नृशंस हमला: सिद्धरमैया

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सिद्धरमैया ने इस बात पर जोर देते हुए कि हिंदी को जबरन लागू किए जाने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए कहा, “अगर वे तीन भाषा की नीति बना रहे हैं तो यह जबरन लागू करने जैसा होगा।”

बेंगलुरु। कांग्रेस नेता एवं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में तीन भाषाओं के फार्मूले का सोमवार को जबर्दस्त विरोध किया। हालांकि इस फॉर्मूले को अब हटा लिया गया है। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा को थोपना और कुछ नहीं बल्कि राज्यों पर “नृशंस हमला” है। सिद्धरमैया ने कहा, “हमारी राय के खिलाफ कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए। तीन भाषाओं की कोई जरूरत नहीं है। अंग्रेजी एवं कन्नड़ पहले से हैं ...वे काफी हैं। कन्नड़ हमारी मातृ भाषा है, इसलिए प्रमुखता कन्नड़ को दी जानी चाहिए।”

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मैसुरु में उन्होंने संवाददाताओं से यह भी कहा कि कर्नाटक के जल, भूमि एवं भाषा के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होगा। सिद्धरमैया ने इस बात पर जोर देते हुए कि हिंदी को जबरन लागू किए जाने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए कहा, “अगर वे तीन भाषा की नीति बना रहे हैं तो यह जबरन लागू करने जैसा होगा।”

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उन्होंने कहा, “क्या हमने हिंदी की मांग की। अगर यह हमारी सहमति के बिना किया जाएगा तो यह जबरन होगा। यह एकतरफा फैसला होगा। हम भी विरोध करेंगे।” हालांकि आक्रोश के बीच केंद्र ने गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने को अनिवार्य बनाने वाले विवादास्पद प्रावधान को हटा लिया है और शिक्षा नीति पर संशोधित मसौदा जारी किया। 

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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