बाबुल सुप्रियो को भाजपा से नहीं है कोई डर, बोले- राजनीति से आहत होकर लिया था रिजायरमेंट का फैसला

Babul Supriyo
प्रतिरूप फोटो

टीएमसी नेता बाबुल सुप्रियो ने कहा कि मैं राजनीति से आहत होकर रिजायरमेंट का फैसला लिया था, मुझे लगा था कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को ज्ञान की कोई परवाह नहीं है। मैंने 2014 से भाजपा के लिए कड़ी मेहनत की है। ऐसे में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद अगर मेरी पदोन्नति की आकांक्षाएं हैं तो इसमें क्या गलत है ?

कोलकाता। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता बाबुल सुप्रियो ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधा। इस दौरान उन्होंने कहा कि मैंने राजनीति से आहत होकर रिजायरमेंट का फैसला लिया था। मुझे लगा था कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री को ज्ञान की कोई परवाह नहीं है। दरअसल, बाबुल सुप्रियो टीएमसी की टिकट पर बालीगंज विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ रहे हैं। 

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समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, टीएमसी नेता बाबुल सुप्रियो ने कहा कि मैं राजनीति से आहत होकर रिजायरमेंट का फैसला लिया था, मुझे लगा था कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को ज्ञान की कोई परवाह नहीं है। मैंने 2014 से भाजपा के लिए कड़ी मेहनत की है। दो बार चुनाव जीतने और मंत्रालय में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद अगर मेरी पदोन्नति की आकांक्षाएं हैं तो इसमें क्या गलत है ?

उन्होंने कहा कि अगर मुझे कोई डर होता तो मैं पार्टी क्यों छोड़ता। एक व्यक्ति जो एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाता है और अक्सर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के साथ अपने संबंध का दिखावा करता है लेकिन वह लोग मेरे पीछे केंद्रीय एजेंसियों को लगाने की कोशिश कर रहे हैं। हम इसका सामना करेंगे।

पूर्व केंद्रीय मंत्री व आसनसोल से दो बार सांसद चुने गए बाबुल सुप्रियो ने पिछले साल भाजपा छोड़कर टीएमसी का दामन थामा था। इसके बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, जिसके चलते इस सीट पर उपचुनाव की जरूरत पड़ी। उपचुनाव के लिए 12 अप्रैल को मतदान होगा। जबकि 16 अप्रैल को उपचुनाव के परिणाम सामने आएंगे। 

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बालीगंज में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना

बालीगंज उपचुनाव में बाबुल सुप्रियो को विपक्षी भाजपा और माकपा से कड़ी टक्कर मिल सकती है। हालांकि, इस सीट को साल 2006 से टीएमसी का गढ़ माना जाता है। 1950 के दशक से इस सीट पर चुनावी मुकाबला माकपा और कांग्रेस के बीच हुआ करता था। झुग्गी बस्तियों और कुछ मध्यम वर्ग के लोग जहां वाम दलों का समर्थन करते थे, जबकि बाकी के मध्यम वर्ग और अमीर दूसरी ओर रहते थे। हालांकि, टीएमसी के उदय के बाद गरीब और अमीर दोनों के वोट ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी को मिलने लगे। लेकिन इस बार टीएमसी, भाजपा और माकपा के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है।

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