तनाव कम करने की दिशा में आगे बढ़े भारत और चीन, शनिवार को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत
पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच लगभग चार सप्ताह से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनातनी चली आ रही है। दोनों देशों के सैनिक गत पांच मई को पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो क्षेत्र में लोहे की छड़ और डंडे लेकर आपस में भिड़ गए थे।
नयी दिल्ली/बीजिंग। पूर्वी लद्दाख में महीने भर से जारी सीमा गतिरोध को हल करने के अपने पहले बड़े प्रयास के तहत भारत और चीन की सेनाएं शनिवार को लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर बातचीत करेंगी। इस बीच, दोनों देशों ने शुक्रवार को पूर्वी लद्दाख में अपने सैन्य गतिरोध को दूर करने के उद्देश्य से शुक्रवार को राजनयिक वार्ता की। दोनों देशों ने एक दूसरे की संवेदनशीलता, चिंता एवं आकांक्षाओं का सम्मान करने तथा इन्हें विवाद नहीं बनने देने पर भी सहमति जतायी। बातचीत में दोनों पक्ष, दोनों देशों के नेतृत्वों द्वारा दिये गये मार्गदर्शन के मुताबिक मतभेदों को दूर करने पर सहमत हुए। वहीं, चीन ने बीजिंग में कहा है कि दोनों देशों को एक दूसरे के लिये खतरा पैदा नहीं करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच2018 में चीनी शहर वुहान में हुई एक अनौपचारिक शिखर बैठक में लिये गये फैसलों के संदर्भ में यह कहा गया। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह करेंगे। सिंह लेह स्थित 14वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग हैं। चीनी पक्ष का नेतृत्व तिब्बत सैन्य जिला कमांडर करेंगे। यह बातचीत पूर्वी लद्दाख के चुशूल सेक्टर में, मालदो में सीमा कर्मी बैठक स्थान पर सुबह करीब आठ बजे से होगी।
सूत्रों ने कहा कि भारत को बैठक से किसी ठोस नतीजे की उम्मीद नहीं है लेकिन वह इसे महत्वपूर्ण मानता है क्योंकि उच्च-स्तरीय सैन्य संवाद गतिरोध के हल के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है। दोनों पक्षों के मध्य पहले ही स्थानीय कमांडरों के बीच कम से कम 12 दौर की तथा मेजर जनरल स्तरीय अधिकारियों के बीच तीन दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन चर्चा से कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला। एक शीर्ष सैन्य अधिकारी ने कहा, ‘‘बातचीत में हमारे लिये एकसूत्री एजेंडा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति एवं स्थिरता वापस लाना है। हम इसे हासिल करने के लिये विशेष उपाय का सुझा देंगे, जिनमें पांच मई से पहले की स्थिति में लौटना शामिल होगा।’’ यह गतिरोध पांच मई को पैंगोंग त्सो में दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़पें होने के बाद शुरू हुआ था। समझा जाता है कि थल सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने वार्ता से पहले पूर्वी लद्दाख में शीर्ष सैन्य अधिकारियों के साथ व्यापक समीक्षा की। उधर, बीजिंग में चीन ने शुक्रवार को दोनों देशों के वरिष्ठ राजनयिकों के बीच हुई वार्ता का जिक्र करते हुए कहा कि दोनों देशों को एक दूसरे के लिये खतरा पैदा नहीं करना चाहिए और अपने मतभेदों को विवाद में में तब्दील नहीं होने देना चाहिए। एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि दोनों पक्षों को रणनीतिक परस्पर विश्वास बढ़ाना चाहिए, परस्पर लाभकारी सहयोग को मजबूत करना चाहिए, मतभदों को उपयुक्त रूप से दूर करना चाहिए और दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की 70 वीं वर्षगांठ के समारोहों को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि भारत-चीन संबंध सही दिशा में आगे बढ़ सके।Ambassador of India to China held digital interaction on India-China bilateral relations with scholars from Shanghai-based institutions, covering broad swathe of bilateral,regional&international issues in lively&thought-provoking discussion: Embassy of India in Beijing, China pic.twitter.com/a9HzjrvihB
— ANI (@ANI) June 5, 2020
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लेफ्टिनेंट जनरल स्तर पर वार्ता के बारे में पूछे जाने पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बीजिंग में प्रेस वार्ता में कहा, ‘‘हमारे पास सीमा संबंधी पूर्ण तंत्र है और हम सैन्य एवं राजनयिक माध्यमों से करीबी संचार कायम रखेंगे।’’ सूत्रों ने कहा कि भारत इस बैठक से कोई ‘‘ठोस नतीजे’’ की उम्मीद नहीं कर रहा है लेकिन इसे महत्वपूर्ण समझता है क्योंकि उच्च स्तर की सैन्य वार्ता तनावपूर्ण गतिरोध का बातचीत वाले किसी समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। उम्मीद है कि शनिवार की बैठक में भारतीय पक्ष पैंगोंग त्सो और गलवान घाटी में यथास्थिति बहाल रखने पर जोर देगा, ताकि पांच मई को दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प के बाद चीन द्वारा बनाए गए अस्थायी शिविरों को हटाते हुए तनाव में धीरे-धीरे कमी लायी जा सके। सूत्रों ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल मोदी और शी द्वारा वुहान में लिये गये फैसलों के अनुरूप दोनों सेनाओं द्वारा जारी रणनीतिक दिशानिर्देशों के क्रियान्वयन पर जोर देगा। समझा जाता है कि दोनों पक्ष गतिरोध दूर करने के लिए राजनयिक स्तर पर भी प्रयासरत हैं। 2017 के डोकलाम प्रकरण के बाद दोनों पक्षों के बीच यह सबसे गंभीर सैन्य गतिरोध है। पिछले महीने गतिरोध शुरू होने के बाद भारतीय सैन्य नेतृत्व ने फैसला किया कि भारतीय सेना पैंगोंग त्सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी के सभी विवादित क्षेत्रों में चीनी सैनिकों की आक्रामक मुद्रा से निपटने के लिए दृढ़ दृष्टिकोण अपनाएगी।
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समझा जाता है कि चीन पैंगोंग त्सो और गलवान घाटी में लगभग 2,500 सैनिकों को तैनात करने के अलावा धीरे-धीरे अस्थायी बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है और हथियारों की तैनाती बढ़ा रहा है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि उपग्रह द्वारा लिए गए चित्रों से चीन द्वारा अपनी ओर रक्षा संबंधी बुनियादी ढांचे को विकसित करने की जानकारी मिली है। उन्होंने कहा कि चीन ने उत्तरी सिक्किम और उत्तराखंड में वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे कुछ क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति बढ़ायी है, जिसके बाद भारत भी अतिरिक्त सैनिकों को भेजकर अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है। गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच लगभग चार सप्ताह से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनातनी चली आ रही है। दोनों देशों के सैनिक गत पांच मई को पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो क्षेत्र में लोहे की छड़ और डंडे लेकर आपस में भिड़ गए थे। उनके बीच पथराव भी हुआ था। इस घटना में दोनों पक्षों के सैनिक घायल हुए थे। पांच मई की शाम को चीन और भारत के 250 सैनिकों के बीच हुई यह हिंसा अगले दिन भी जारी रही। इसके बाद दोनों पक्ष ‘‘अलग’’ हुए। बहरहाल, गतिरोध जारी रहा। इसी तरह की एक घटना में नौ मई को सिक्किम सेक्टर में नाकू ला दर्रे के पास लगभग 150 भारतीय और चीनी सैनिक आपस में भिड़ गए थे। इससे पहले 2017 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच डोकलाम में आमना-सामना हुआ था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच युद्ध की आशंका बढ़ गई थी। भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा है।अन्य न्यूज़