Shaurya Path: Bangladesh-China, Russia-Ukraine, Israel-Hamas और Pakistan Army से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

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Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कार्यालय की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह सैन्य अभियान सभी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एक मंच पर लायेगा और अभियोजन में बाधा डालने वाली खामियों को दूर करेगा।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने भारत-बांग्लादेश संबंधों, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास संघर्ष और पाकिस्तान में चल रहे एक नये अभियान के मुद्दे पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न- 1. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हाल ही में भारत यात्रा पर आई थीं, उन्हें जल्द ही चीन की यात्रा पर भी जाना है। इससे पहले उन्होंने कहा है कि तीस्ता परियोजना पर भारत और चीन, दोनों के प्रस्तावों पर विचार करेगा बांग्लादेश। इसे आप कैसे देखते हैं?

उत्तर- बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का यह कहना चौंकाता है कि उनका देश भारत और चीन, दोनों के सीमापार तीस्ता नदी पर जलाशय से संबंधित एक बड़ी परियोजना निर्माण के लिए प्रस्तावों पर विचार करेगा तथा बेहतर प्रस्ताव को स्वीकार करेगा। लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निमंत्रण पर पिछले सप्ताह भारत की यात्रा कर चुकीं हसीना ने अपनी यात्रा को "बहुत उपयोगी" बताते हुए कहा है कि भारत के शीर्ष नेतृत्व के साथ उनकी वार्ता के परिणाम मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और सहयोग के नये रास्ते खोलने में "महत्वपूर्ण भूमिका" निभाएंगे।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि बांग्लादेश ने तीन तीस्ता परियोजनाएं शुरू कीं। चीन ने प्रस्ताव दिया है और भारत ने भी। इसलिए बांग्लादेश ने कहा है कि दोनों प्रस्तावों का मूल्यांकन करेंगे और हमारे लोगों के हितों के संदर्भ में जो सबसे अधिक लाभकारी और स्वीकार्य होगा, उसे स्वीकार करेंगे। उन्होंने कहा कि जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री से यह पूछा गया कि तीस्ता परियोजना के संबंध में भारत और चीन में से वह किस पक्ष का अधिक समर्थन करती हैं तो उन्होंने कहा था कि हम अपने देश की विकास संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर अपनी मित्रता बनाए रखते हैं। उन्होंने कहा कि चीन ने इस परियोजना पर भौतिक सर्वेक्षण पूरा कर लिया है, जबकि भारत ने तीस्ता परियोजना के क्रियान्वयन के संबंध में एक और अध्ययन करने की इच्छा व्यक्त की है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि माना जा रहा है कि भारत को अपने रणनीतिक सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास एक प्रमुख परियोजना में चीन की भागीदारी पर आपत्ति है, जिसे ‘चिकन नेक’ के रूप में भी जाना जाता है, जबकि बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने पहले कहा था कि ढाका प्रस्ताव पर आगे बढ़ने में "भू-राजनीतिक मुद्दों को संज्ञान में लेगा। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के अधिकारियों के अनुसार, चीन ने 2020 में तीस्ता नदी पर गाद निकालने के एक बड़े कार्य और भारत की किसी भी भूमिका के बिना जलाशयों और तटबंधों के निर्माण का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बांग्लादेश इस परियोजना पर आगे नहीं बढ़ा है। उन्होंने कहा कि इस परियोजना में चीन की भागीदारी प्रमुख साझा नदी पर भारत-बांग्लादेश विवाद को जटिल बना सकती है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वर्ष 2009 में अवामी लीग सरकार के सत्ता में लौटने के बाद से तीस्ता जल बंटवारे के समझौते पर बातचीत चल रही है, जबकि हसीना ने अब कहा है कि "बांग्लादेश का भारत के साथ तीस्ता नदी जल बंटवारे को लेकर एक पुराना मुद्दा है।’’ उन्होंने कहा कि हसीना का कहना है कि अगर भारत तीस्ता परियोजना करता है तो बांग्लादेश के लिए यह आसान होगा। उस स्थिति में, बांग्लादेश को हमेशा तीस्ता जल बंटवारे के बारे में बात करने की आवश्यकता नहीं होगी। उन्होंने कहा कि हालांकि हसीना ने साथ ही कहा कि बांग्लादेश का भारत के साथ 54 साझा नदियों के जल बंटवारे को लेकर एक पुराना मुद्दा है, लेकिन उनका यह भी कहना है कि अगर समस्याएं हैं तो समाधान भी हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा के दौरान ढाका और नयी दिल्ली तीस्ता समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले थे, जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मनमोहन सिंह के दल की सदस्य होने वाली थीं। हालांकि ममता बनर्जी ने संधि का विरोध करते हुए अंतिम समय में दल से बाहर हो गईं। भारत और बांग्लादेश समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हुए लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार के विरोध के कारण इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने जलपाईगुड़ी और कूच बिहार जिलों में सिंचाई के लिए पानी की आपूर्ति के लिए तीस्ता नदी को मोड़ने के वास्ते दो नयी नहरें खोदने का सैद्धांतिक रूप से निर्णय लिया है।

प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध अब किस मोड़ पर है? 

उत्तर- रूस और यूक्रेन युद्ध खिंचते चले जाने से अब दोनों ओर नीरसता-सी दिख रही है। जहां तक युद्ध के समाप्त होने या संघर्षविराम की स्थिति बनने की बात है तो इसके बारे में रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह संघर्ष तब तक समाप्त नहीं होगा जब तक यूक्रेन अन्य शक्तियों के हाथों की 'कठपुतली' बनना बंद नहीं करता। रूसी विदेश मंत्रालय का कहना है कि वर्तमान में जारी युद्ध के दौरान संघर्ष को हल करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और राजनीतिक एवं कूटनीतिक तंत्रों का पूर्ण हृास हुआ है। रूस का तो आरोप है कि कीव के युद्ध छेड़ने के कारण डोनबास और नोवोरोसिया क्षेत्र में कुल 19,300 लोगों की मौत हुई है और आम नागरिकों की मौत की संख्या भी 13 हजार के आंकड़े को पार कर गई है। रूस का पश्चिमी देशों की ओर इशारा करते हुए स्पष्ट आरोप है कि यूक्रेन गलत लोगों के साथ हाथ मिलाकर युद्ध लड़ रहा है। यह संघर्ष तब तक समाप्त नहीं होगा जब तक यूक्रेन दूसरे के हाथों को कठपुतली बनना नहीं छोड़ेगा और अपने लोगों के बारे में नहीं सोचेगा।

प्रश्न-3. इजराइल-हमास संघर्ष के बीच ही इजराइली प्रधानमंत्री को घरेलू राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा, अमेरिका-इजराइल के संबंधों में तनाव के बीच इजराइली मंत्री भी इस समय अमेरिका दौरे पर हैं इस सबको कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि अमेरिका पर यह आरोप लगाना गलत है कि वह इजराइल की मदद नहीं कर रहा। गाजा में युद्ध की शुरुआत के बाद से, बाइडन प्रशासन ने इज़राइल को बड़ी संख्या में युद्ध सामग्री भेजी है, जिसमें 10,000 से अधिक अत्यधिक विनाशकारी 2,000 पाउंड के बम और हजारों हेलफायर मिसाइलें शामिल हैं। पिछले अक्टूबर में युद्ध की शुरुआत और हाल के दिनों के बीच, अमेरिका ने कम से कम 14,000 एमके-84 2,000-पाउंड बम, 6,500 500-पाउंड बम, 3,000 हेलफायर सटीक-निर्देशित हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें और 1,000 बंकर-बस्टर भेजे हैं। इसके अलावा भी इजराइल को काफी युद्धक सामग्री दी गयी है। साथ ही यह भी पता चला है कि हथियारों की आपूर्ति को सीमित करने के अंतरराष्ट्रीय आह्वान और एक शिपमेंट को रोकने के अमेरिकी प्रशासन के हालिया फैसले के बावजूद, अपने सहयोगी के लिए अमेरिकी सैन्य समर्थन में कोई महत्वपूर्ण गिरावट नहीं हुई है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इजराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष की बात है तो उसमें ताजा अपडेट यह है कि इज़रायली बलों ने गाजा पट्टी के दो उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों के भीतरी इलाकों तक पहुँच बना ली है। इसके अलावा, फिलिस्तीनी स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि राफा में टैंक गोलाबारी में कम से कम 11 लोग मारे गए हैं। साथ ही हमास मीडिया ने कहा है कि इजराइली टैंकों के आगे बढ़ने के चलते हजारों विस्थापित लोगों को अपने तम्बू शिविर छोड़ने और उत्तर की ओर पास के खान यूनिस की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इजराइल प्रधानमंत्री के समक्ष खड़ी घरेलू राजनीतिक चुनौतियों की बात है तो ऐसा लगता है कि सत्ता में उनके दिन अब लद चुके हैं। जिस तरह इजराइली लोग सड़कों पर उतर कर नये चुनाव कराये जाने की मांग कर रहे हैं उसके आगे आज नहीं तो कल नेतन्याहू को झुकना ही पड़ेगा और इसका असर हमास के खिलाफ संघर्ष पर पड़ेगा ही।

प्रश्न-4. पाकिस्तान ने जो 'अज्म-ए-इस्तेहकाम' अभियान शुरू किया है उसका मतलब क्या है?

उत्तर- इस अभियान का हिंदी नाम अगर देखें तो वह होता है- स्थिरता का संकल्प। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जिस तरह से हर मोर्चे पर अस्थिरता का सामना कर रहा है उसको देखते हुए वहां स्थिरता लाये जाने की बहुत सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है कि वहां की सरकार आतंकवाद से निबटने को प्राथमिकता दे रही है लेकिन अभी यह देखना होगा कि कहीं एक बार फिर उनकी कथनी और करनी का फर्क तो सामने नहीं आ जाता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान सरकार ने हिंसा और आतंकवाद में वृद्धि को देखते हुए 'अज्म-ए-इस्तेहकाम' नामक एक नए सैन्य अभियान को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने देश के आतंकवाद विरोधी अभियानों की समीक्षा की, जिसके बाद यह पहल की गयी है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन 'अज्म-ए-इस्तेहकाम' का उद्देश्य खासतौर पर इस्लामाबाद और काबुल के बीच बढ़ते तनाव के बीच घरेलू सुरक्षा खतरों और अफगानिस्तान से आने वाले सशस्त्र लड़ाकों का मुकाबला करना है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शरीफ के कार्यालय ने "आतंकवादियों" के खिलाफ प्रयासों को "तेज" करने की योजना की घोषणा की। उन्होंने कहा कि हालांकि वहां का विपक्ष यह कह रहा है कि सरकार ने उसे भरोसे में नहीं लिया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह सैन्य अभियान सभी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एक मंच पर लायेगा और अभियोजन में बाधा डालने वाली खामियों को दूर करेगा और आतंकवादियों को कड़ा दंड देगा। उन्होंने कहा कि यह घोषणा पिछले 18 महीनों में हिंसक घटनाओं में जोरदार वृद्धि के बीच आई है। पाकिस्तान में ज्यादातर हमलों का दावा टीटीपी ने किया है। उन्होंने कहा कि टीटीपी ने नवंबर 2022 में युद्धविराम समाप्त कर दिया था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने काबुल पर टीटीपी सदस्यों को शरण देने का आरोप लगाया है, हालांकि तालिबान सरकार इस आरोप से इंकार करती है। उन्होंने कहा कि यदि पाकिस्तान का सैन्य अभियान अफ़ग़ानिस्तान तक फैलता है तो संभावित तनाव बढ़ सकता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मार्च में पाकिस्तान ने संदिग्ध पाकिस्तानी तालिबान ठिकानों के खिलाफ अफगानिस्तान में सीमा पार हमले भी किए थे जिसकी विदेश कार्यालय ने सार्वजनिक रूप से पुष्टि की थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पाकिस्तान का यह ऑपरेशन 62 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की सुरक्षा को लेकर चीन की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए भी चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मार्च 2024 में पांच चीनी इंजीनियरों की मौत सहित कई हमलों के बाद चीनी नागरिकों और परियोजनाओं की सुरक्षा महत्वपूर्ण हो गई है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा पिछले साल, पाकिस्तान को लगभग डिफ़ॉल्ट का सामना करना पड़ा और महत्वपूर्ण घरेलू राजनीतिक उथल-पुथल के बीच एक विवादास्पद चुनाव हुआ। उन परिस्थितियों में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान संभव नहीं था इसलिए यह अब चलाया जायेगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को इस समय आर्थिक मदद की सख्त जरूरत है और वह तभी मिल सकेगी जब वह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की काली सूची से बाहर आ पायेगा इसलिए भी पाकिस्तान इस तरह का अभियान शुरू करने जा रहा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि इस ऑपरेशन की संभावित सफलता को लेकर चिंताएं हैं। उन्होंने कहा कि सशस्त्र समूह सार्वजनिक समर्थन बनाए रखते हुए सरकारी हितों को कमजोर करने के लिए सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं। हिंसा प्रभावित प्रांतों में जनता के समर्थन की कमी इस ऑपरेशन की प्रभावशीलता में बाधा बन सकती है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पाकिस्तानी तालिबान का पाकिस्तान में कोई स्थायी ठिकाना नहीं है, वे अस्थायी रूप से काम करते हैं, बार-बार स्थान बदलते रहते हैं। अगर पाकिस्तान अफगानिस्तान में सीमा पार अभियान चलाता है, तो इससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 2001 के बाद से पाकिस्तान की सेना ने सीमावर्ती क्षेत्रों में घरेलू आतंकवादियों के खिलाफ कई हाई-प्रोफाइल ऑपरेशन चलाए हैं जैसे- 'जर्ब-ए-अज्ब', 'राह-ए-निजात' और 'राह-ए-रस्त'। हालाँकि, ये प्रयास उग्रवादी समूहों को पूरी तरह से ख़त्म करने में विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन के दबाव में पाकिस्तान सरकार ने अज्म-ए-इस्तेहकम को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि विपक्ष की चिंताओं के बीच पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने हालांकि कहा है कि आतंकवादियों के खिलाफ नए सैन्य अभियान के मुद्दे पर संसद से परामर्श किया जायेगा। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी ने मांग की थी कि किसी भी नए अभियान पर सर्वोच्च मंच पर चर्चा की जानी चाहिए।

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