महायोगी गोरखनाथ के बिना भारत की आध्यात्मिक परंपरा शून्य: योगी आदित्यनाथ

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[email protected] । Sep 26 2019 6:06PM

योगी ने कहा कि त्रिपुरा में 35 प्रतिशत आबादी गोरखनाथ के अनुयायियों की है। असम की 15 प्रतिशत आबादी गोरखनाथ की अनुयायी है। पूरे देश में नाथ परंपरा के मंदिर मठ और संत-अनुयायी मौजूद हैं।

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को कहा कि महायोगी गोरखनाथ के बिना भारत की आध्यात्मिक परंपरा शून्य है। उन्होंने कहा कि हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने ओशो से जब अध्यात्म के बारे में पूछा तो उन्होंने चार नाम लिए थे, जिनमें गोरखनाथ का भी नाम था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरुवार को राजधानी में हिन्दी संस्थान के यशपाल सभागार में गोरखनाथ पर केंद्रित तीन दिवसीय संगोष्ठी की शुरुआत की योगी ने नाथ संप्रदाय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘वृहतर भारत में महायोगी गोरखनाथ की महा-प्रतिष्ठा है। मैं पिछले 25 वर्ष से इस परंपरा से जुड़ा हूं। जब हम ऐसे महापुरुष के बारे में सोचते हैं तो एक ओर सम्प्रदाय एवं आस्था का पक्ष होता है तथा दूसरी ओर इतिहास एवं साहित्य का पक्ष होता है।

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दोनों का समन्वय कभी होता है तो कभी नहीं हो पाता है। इस विषय को जानने के लिए सभी में जिज्ञासा होती है।’’ उन्होंने कहा कि गुरु गोरखनाथ ही नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। वह शिव स्वरूप माने गए हैं। गुरु गोरखनाथ की मान्यता भारत के साथ पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश तथा म्यांमार में भी है। महायोगी गोरखनाथ वहां की कई लोकगाथाओं में विद्यमान हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत के हर प्रांत में गोरखनाथ के अनुयायी हैं। मलिक मोहम्मद जायसी ने भी अपने यहां गोरखनाथ का मंदिर बनाया था। उनका दृष्टिकोण राष्ट्र प्रेम का रहा है। उनका कोई साम्प्रदायिक दृष्टिकोण नहीं है। जाति और भाषा का बंधन नहीं है। हर भाषा में उनका साहित्य मिलेगा। 

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उन्होंने कहा कि त्रिपुरा में 35 प्रतिशत आबादी गोरखनाथ के अनुयायियों की है। असम की 15 प्रतिशत आबादी गोरखनाथ की अनुयायी है। पूरे देश में नाथ परंपरा के मंदिर मठ और संत-अनुयायी मौजूद हैं। बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा में बड़ी आबादी नाथ सम्प्रदाय से जुड़ी हुई है।योगी ने कहा कि महायोगी गोरखनाथ का एक पक्ष योग भी है। महर्षि पतंजलि ने योग का दर्शन दिया था। मगर गुरु गोरखनाथ ने उसे शुद्धि के रूप में सभी के लिए जरूरी बताया था। 

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