आतंकवाद को कतई बर्दाशत ना करना समय की मांग है: सुषमा स्वराज
भारत ने 1996 में संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव रखा था कि अंतररष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक सम्मेलन आयोजित किया जाए लेकिन आज भी यह केवल मसौदा बना हुआ है क्योंकि सभी राष्ट्र आतंकवाद की एक आम परिभाषा पर सहमत नहीं हो पाए हैं।
नयी दिल्ली। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस बात पर जोर देते हुए कि आतंकवाद के मौजूदा खतरे से कोई भी देश सुरक्षित नहीं है , बुधवार को कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना समय की मांग है कि आतंकवाद और उसका इस्तेमाल करने वालों को कतई बर्दाशत नहीं किया जाए। ‘रायसीना डायलॉग’ में स्वराज ने कहा कि बहुपक्षवाद में अटूट आस्था के जरिए भारत ना केवल अपने बल्कि विश्वभर के लोगों के लिए न्याय, अवसरों और समृद्धि की बात करता है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे लिए, परिवर्तन केवल घरेलू एजेंडा नहीं बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण है।
EAM Sushma Swaraj at Raisina Dialogue 2019: Our focus is on finding solutions to challenges before us through innovative approaches&dynamic partnerships. India’s own engagement with world is rooted in its civilisational ethos which has at its heart co-existence&democratic values. pic.twitter.com/VJO3peO4PF
— ANI (@ANI) January 9, 2019
स्वराज ने विश्व के समक्ष पेश होने वाली ‘महत्वपूर्ण चुनौतियों’ पर बात करते हुए कहा कि इसमें सबसे पहले आतंकवाद आता है। स्वराज ने कहा, ‘‘ऐसा समय था जब भारत ने आतंकवाद पर बात की और कई वैश्विक मंचों पर इसे कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे के तौर पर देखा गया। आज, कोई भी बड़ा या छोटा देश मौजूदा खतरों विशेषकर राष्ट्रों द्वारा सक्रिय तौर पर समर्थित एवं प्रायोजित आतंकवाद से सुरक्षित नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि इस डिजिटल युग में कट्टरपंथी विचारों में वृद्धि के चलते आतंकवाद द्वारा उत्पन्न चुनौती और बढ़ गई हैं।
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भारत ने 1996 में संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव रखा था कि अंतररष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक सम्मेलन आयोजित किया जाए लेकिन आज भी यह केवल मसौदा बना हुआ है क्योंकि सभी राष्ट्र आतंकवाद की एक आम परिभाषा पर सहमत नहीं हो पाए हैं। विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘यह सुनिश्चित किया जाना समय की मांग है कि आतंकवाद और सुविधा के अनुसार उसका इस्तेमाल करने वालों को कतई बर्दाशत नहीं किया जाएगा।’’ उन्होंने कहा कि सामूहिक विनाश के लिए हथियारों का प्रसार और जलवायु परिवर्तन भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष मौजूद मुख्य चुनौतियां हैं।
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