मुखर्जी की जयंती पर जेटली ने कांग्रेस को याद दिलाई ''अभिव्यक्ति की आजादी''

Jaitley targets Nehru, says he restricted free speech
[email protected] । Jul 6 2018 7:16PM

केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि पार्टी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘टुकड़े टुकड़े’ आंदोलन का यह कहते हुए समर्थन किया था कि यह ‘बोलने की जायज आजादी’ है।

नयी दिल्ली। केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि पार्टी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘टुकड़े टुकड़े’ आंदोलन का यह कहते हुए समर्थन किया था कि यह ‘बोलने की जायज आजादी’ है जबकि देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने श्यामाप्रसाद मुखर्जी के ‘अखण्ड भारत’ की पैरवी को बाधित करने के लिए संविधान में संशोधन कर दिया था।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती है। मुखर्जी भारतीय जन संघ के संस्थापक अध्यक्ष थे। भारतीय जन संघ के बाद ही भारतीय जनता पार्टी बनी थी। जेटली ने ब्लाग में लिखा कि भारत में कई लोग ऐसे थे जो विभाजन के विचार के ही खिलाफ थे। इसका विरोध करने वाले प्रमुख लोगों में निश्चित तौर पर मुखर्जी भी थे। उन्होंने लिखा कि वह (मुखर्जी) अखण्ड भारत के प्रमुख पैरोकार थे। अप्रैल 1950 में जब ‘नेहरू-लियाकत’ समझौते पर हस्ताक्षर किया जाना था तो उससे दो दिन पहले डा. मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया था। वह देश के पहले मंत्रिमण्डल में हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि के रूप में शामिल थे और उद्योग मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे थे। उन्होंने नेहरू - लियाकत समझौते के खिलाफ कड़ा सार्वजनिक रूख अपनाया था।’

मुखर्जी ने संसद के भीतर और बाहर इस समझौते के विरोध में काफी कुछ बोला और ‘अखण्ड भारत’ के बारे में अपने दर्शन को समझाया। उन्होंने कहा, ‘पण्डित नेहरू ने डा. मुखर्जी की आलोचना पर जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया की। उन्होंने ‘अखण्ड भारत’ के विचार की व्याख्या इस प्रकार की मानों यह संघर्ष को न्योता देना है क्योंकि देश को युद्ध के अलावा फिर से एकजुट नहीं किया जा सकता।’

गुर्दा प्रतिरोपण के बाद स्वास्थ्य लाभ कर रहे जेटली ने लिखा कि लिहाजा उन्होंने सरदार पटेल से इस बात पर विचार करने को कहा कि क्या कार्रवाई की जा सकती है। संविधान विशेषज्ञों से विचार विमर्श करने के बाद सरदार पटेल की राय थी कि वह मुखर्जी को संविधान के तहत उनके अखण्ड भारत के विचार का प्रसार करने से नहीं रोक सकते। यदि प्रधानमंत्री उन्हें इससे रोकना चाहते हैं तो उन्हें संविधान में संशोधन करना होगा।

इसके लिए जो संविधान संशोधन का विधेयक लाया गया उसमें अन्य देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्धों को लेकर पाबंदी का प्रावधान था। यह विधेयक एच वी कामथ , आचार्य कृपलानी, मुखर्जी और नजीरूद्दीन अहमद के विरोध के बावजूद पारित हो गया। जेटली के अनुसार क्या यह डा . मुखर्जी और उनकी विचारधारा के प्रति असहिष्णुता थी जिसने इस संविधान संशोधन को आगे बढ़ाया। इसका जवाब साफ है।

उन्होंने कहा कि एक बड़ा विरोधाभास है कि इस संशोधन की मूल बात है कि ‘अखण्ड भारत’ की पैरवी करने वाला महज भाषण भी देश के लिए एक खतरा हो सकती है। यह युद्ध को बढ़ावा दे सकता है लिहाजा इसकी कोई भी बातचीत प्रतिबंधित है। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘इसे दण्डात्मक अपराध भी बनाया जा सकता था। हमारे विधितंत्र के विकास का विरोधाभास यह है कि जो लोग भारत को खण्डित करना चाहते हैं या देशद्रोह का अपराध करते हैं, हम उनके खिलाफ अलग मापदण्ड अपनाते हैं। यह विवाद हाल में तब सामने आया जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘टुकड़े टुकड़े’ आंदोलन हुआ था।’

उन्होंने कहा कि पिछले 70 सालों में भारत में स्थिति में बदलाव हुआ है जब पंडित नेहरू ने संविधान में संशोधन किया क्योंकि ‘अखण्ड भारत’ की मांग से युद्ध को बढ़ावा मिल सकता है लिहाजा इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। फरवरी 2016 में जेएनयू परिसर में छात्रों के एक समूह ने ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे भारत विरोधी नारे लगाये थे। इसे लेकर कुछ छात्रों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।

इस घटना के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी के जेएनयू जाने की भाजपा ने आलोचना की थी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि राहुल गांधी के जेएनयू परिसर जाने के कारण कांग्रेस को शर्मिन्दा होना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि क्या राष्ट्र विरोधी नारों को अभिव्यक्ति की आजादी कहा जा सकता है। 

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