कालेश्वरम सिंचाई परियोजना को कानून का उल्लंघन कर पर्यावरण मंजूरी दी गई: एनजीटी

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हरित अधिकरण ने पर्यावरण और वन मंत्रालय को सात सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन करने और अपनाये जाने वाले राहत और पुनर्वास उपाय सुझाने को कहा।

नयी दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने मंगलवार को कहा कि तेलंगाना में कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना को कानूनी आवश्यकताओं का उल्लंघन करते हुए ‘पूर्वव्यापी’ प्रभाव से पर्यावरण मंजूरी दी गयी। एनजीटी ने इससे हुए नुकसान का आकलन करने और स्थिति बहाल करने के लिए जरूरी कदमों का पता लगाने के लिहाज से एक समिति का गठन किया है। हरित अधिकरण ने पर्यावरण और वन मंत्रालय को सात सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन करने और अपनाये जाने वाले राहत और पुनर्वास उपाय सुझाने को कहा। 

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एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि परियोजना प्रस्तावक का यह कहना ‘पूरी तरह अस्वीकार्य’ है कि पर्यावरण मंजूरी दिये जाने से पहले क्रियान्वित परियोजना का सिंचाई से कोई लेनादेना नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘हम परियोजना प्रस्तावक के इस रुख को स्वीकार नहीं कर सकते कि प्राथमिक रूप से परियोजना जल आपूर्ति और जल प्रबंधन के लिए है और सिंचाई इस परियोजना का पूरक या आकस्मिक भाग है इसलिए 2008 से 2017 तक परियोजना के क्रियान्वयन से पहले पर्यावरण मंजूरी जरूरी नहीं थी।’’

अधिकरण ने कहा, ‘‘हम इस बात से भी सहमत नहीं हैं कि राज्य सरकार ने परियोजना में मंजूरी मिलने तक सिंचाई के पहलू को नहीं रखा था और केवल पेयजल आपूर्ति से संबंधित पक्षों को ही रखा था।’’ अधिकरण ने कहा कि लिफ्ट सिंचाई परियोजना को कानूनी आवश्यकताओं का उल्लंघन करते हुए ‘पूर्वव्यापी’ प्रभाव से पर्यावरण मंजूरी दी गयी। 

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तेलंगाना निवासी मोहम्मद हयातुद्दीन की याचिका पर एनजीटी का फैसला आया जिन्होंने आरोप लगाया था कि बिना पर्यावरण और अन्य वैधानिक मंजूरियों के योजना का निर्माण शुरू किया गया। वकीलों संजय उपाध्याय और सालिक शफीक के माध्यम से दाखिल याचिका में वन्य क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई, विस्फोट करने तथा सुरंगों की खुदाई जैसी वन्य संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन करने वाली गतिविधियों पर प्रतिबंध की मांग की गयी थी।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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