खड़गे ने नयी शिक्षा नीति को बताया पीछे ले जाने वाला दस्तावेज, सरकार पर साधा निशाना

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खडगे ने शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि एनईपी पीछे की ओर ले जाने वाला दस्तावेज है जो भविष्य के लिए योजनाएं बनाने और बच्चों को तैयार करने के बदले 2000 साल पीछे की ओर देखता है।

नयी दिल्ली। वरिष्ठ कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) भविष्य के बदले ‘पीछे ले जाने’ वाला दस्तावेज है तथा शिक्षा संविधान के सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए। खडगे ने शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि एनईपी पीछे की ओर ले जाने वाला दस्तावेज है जो भविष्य के लिए योजनाएं बनाने और बच्चों को तैयार करने के बदले 2000 साल पीछे की ओर देखता है। उन्होंने कहा, ‘‘स्कूलों में नैतिक शिक्षा और उच्च शिक्षा के मूल्य संविधान के सिद्धांतों पर आधारित होने चाहिए न कि प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों पर।’’ 

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खडगे ने कहा कि संविधान के प्रावधान के अनुसार राज्य और राज्य से सहायता प्राप्त संस्थानों में कोई धार्मिक निर्देश नहीं होना चाहिए। उन्होंने इस क्रम में संविधान के अनुच्छेद 28 (1) का जिक्र किया और कहा कि राज्य कोष से संचालित किसी भी शैक्षणिक संस्थानों में कोई धार्मिक निर्देश नहीं दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि आंगनवाड़ी शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए कोई उचित नीति निर्धारित नहीं की गयी है जिससे कस्बों और गांवों के गरीब बच्चों को नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि कक्षा 10 के बाद लगभग 50 प्रतिशत छात्र पढ़ाई छोड़ देते (ड्रॉप आउट) हैं। इसमें कमी लाने के लिए कोई योजना नहीं बनाई गई है। 

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एक अनुमान है कि इन छात्रों में से 32.4 प्रतिशत छात्र दलित, 25.7 प्रतिशत अल्पसंख्यक और 16.4 प्रतिशत आदिवासी हैं। खडगे ने कहा कि शिक्षकों पर पहले से ही चुनावों, जनगणना और टीकाकरण आदि जैसे कई दायित्वों का बोझ है। इससे उनके लिए शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में विकास का अवसर मुहैया कराने के लिए गणित, विज्ञान और अंग्रेजी पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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