मुलायम राज में अपहरण, माया काल में केस, योगी सरकार में सजा

Atique Ahmed
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अजय कुमार । Mar 28 2023 4:49PM

बाबूबली अतीक अहमद को उमेश पाल के अपहरण के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। उमेश पाल 25 जनवरी 2005 को सुलेमसराय में तत्कालीन विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में मुख्य गवाह थे। वर्ष 2006 में उमेश पाल का अपहरण कर हत्या के प्रयास किए गए थे।

पूर्वांचल का खूंखार गुण्डा अतीक अहमद जो राजनैतिक संरक्षण में खूब फलाफूला था, आज उसके कर्मों का हिसाब हो गया। प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट ने अतीक अहमद सहित उसके दो साथियों दिनेश पासी और खान सौलत हनीफ को उम्र कैद की सजा सुनाई। अतीक का भाई अशरफ और अन्य सात आरोपी जरूर बरी हो गये। इसके साथ ही यह भी साफ हो गया कि भले ही सौ मुकदमों में उसके खौफ के चलते कोई गवाह सामने नहीं आया था, लेकिन एक मामला उस पर भारी पड़ा, जिसमें उसे उम्र कैद हो गई, जबकि हकीकत यह थी कि अतीक अहमद के काले कारनामों और जघन्य अपराधों की लम्बी लिस्ट थी और उसकी यह क्रूरता कई लोगों ने अपनी आंखों से देखी थी। 

अतीक का खौफ ही ऐसा था कि कोई गवाह देने की हिम्मत नहीं कर पाता था, जिसने हिम्मत की तो उसे साम-दाम-दंड से ‘तोड़’ दिया गया। न जाने कितने गवाह ऐन मौके पर गवाही से मुकर गए, लेकिन कहते हैं कर्मों का हिसाब तो होता ही है, इसलिए 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में गवाही देने जब उमेश पाल नाम का एक शख्स सामने आता है तो अतीक और उसके गुर्गे उसको सबक सिखाने के लिए उसका अपहरण कर लेते हैं। उसे गवाही न देने की धमकी देते हुए मरणासन कर छोड़ देते हैं, लेकिन उमेश पाल बच जाता है, लेकिन पूरे मामले में मुलायम सरकार सोती रहती है। क्योंकि उसका हाथ अतीक के साथ था। 

सपा नेतृत्व अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे गुंडों के सहारे मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी नजर जमाए रखता था। सपा के लिए यह गुंडे नहीं वोट बैंक के सौदागर थे। आज भी कहीं न कहीं अखिलेश यादव और उनकी पार्टी अतीक के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है। वैसे बसपा भी समय-समय पर अतीक और मुख्तार का साथ लेती रही है। कुछ समय पूर्व ही बसपा ने अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन को पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। शाइस्ता को बसपा ने नगर निकाय चुनाव में प्रयागराज से मेयर पद का चुनाव लड़ाने का भी फैसला लिया था।

खैर सियासत के पुराने पन्ने पलटे जाएं तो किसी का समय एक जैसा नहीं रहता है। समय बदला तो उमेश पाल ने एफआईआर लिखा दी। 2007 में मायावती की सरकार बनने के बाद उमेश पाल की ओर से इस मामले में अतीक अहमद सहित 11 लोगों के खिलाफ धूमनगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। 15 वर्षों के बाद इस मामले की सुनवाई 23 मार्च को पूरी हो चुकी थी और 28 मार्च को आज फैसला सुनाया गया, लेकिन इससे पहले ही उमेश पाल की प्रयागराज में दिन दहाड़े गोलियों और बमों से छलनी किया जा चुका था और उमेश की हत्या का आरोप अतीक और उसके बेटों-भाइयों और बीवी पर लगा था। 

यही वारदात (उमेश पाल का अपहरण और हत्या का प्रयास) अतीक के लिए ‘काल’ बन गई जिसमें आज अतीक और उसके गुर्गों को सजा सुनाई गई। इस केस में कुछ दिनों पूर्व अतीक और उसके साथियों के खिलाफ सत्र न्यायालय ने प्रोडक्शन वारंट जारी किया था। इस पर यूपी पुलिस ने साबरमती जाकर अतीक को वारंट तामील कराने के बाद उसके गुजरात के साबरमती जेल से प्रयागराज वापसी के लिए प्रक्रिया पूरी कराई गई। अतीक और उसके भाई  को 27 मार्च 2023 यानी कल ही साबरमती और बरेली जेल से प्रयागराज जेल लाया गया था। बताते चलें अतीक अमहद ने वर्ष 2006 में राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल का न केवल अपहरण किया था बल्कि उससे अपने पक्ष में हलफनामा भी लिखवा लिया था।

दरअसल, राजू पाल हत्याकांड में गवाह बनने के बाद लम्बे समय से उमेश पाल के ऊपर खतरा मंडराने लगा था। अतीक ने कई लोगों से उमेश पाल को कहलवाया था कि वह केस से हट जाए नहीं तो उसे दुनिया से हटा दिया जाएगा। उमेश नहीं माने तो 28 फरवरी 2006 को उसका अपहरण कर लिया गया। उसे प्रयागराज में अतीक के करबला स्थित कार्यालय में ले जाकर रात भर मारापीटा था। उससे हलफनामा पर दस्तखत भी करवा लिए थे, लेकिन उमेश नहीं झुका। इसी मुकदमे में पैरवी कर 24 फरवरी को उमेश घर लौट रहे थे, तभी उनकी हत्या कर दी गई। आज अदालत ने 2006 में उमेश पाल के अपहरण और उसकी हत्या के प्रयास के मामले में सजा सुनाई है।

गौरतलब हो, 25 जनवरी 2005 को सुलेमसराय में तत्कालीन विधायक राजू पाल की हत्या हुई थी। इससे कुछ माह पूर्व ही राजू पाल ने विधान सभा चुनाव में अतीक के भाई को परास्त किया था, जिससे अतीक चिढ़ा हुआ था। इसी हत्याकांड के केस में उमेश पाल मुख्य गवाहों में से एक थे। जब उमेश का अपहरण किया गया तो उस समय उमेश पाल को लगा कि यह उसकी आखिरी रात है। अतीक ने उससे हलफनामा पर दस्तखत करा लिए। हलफनामा पर लिखा था कि वह घटनास्थल पर मौजूद नहीं था। न ही उसने किसी को वहां देखा था। अगले दिन यानी एक मार्च को अतीक ने अदालत में उमेश के हलफनामा को प्रस्तुत कर अदालत के सामने गवाही भी दिलवा दी थी। उस समय शासन प्रशासन में अतीक की तूती बोलती थी।

2007 में जब बसपा सरकार बनी तो स्थिति बदलने लगी। अतीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई। पांच जुलाई 2007 को उमेश ने अतीक, अशरफ और उनके गुर्गों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दिया। उमेश ने लगकर अपने केस में पैरवी की। उसे मुकाम तक लगभग पहुंचा ही दिया था, लेकिन फैसला आने से तकरीबन एक महीने पहले ही उमेश की हत्या कर दी गई। इस तरह से मुलायम राज में हुए उमेश पाल के अपहरण और उसके एक वर्ष बाद माया राज में इस अपहरण कांड की एफआईआर दर्ज होने के 15 साल बाद योगी शासनकाल में इस मामले में अतीक और उसके साथियों को सजा सुनाई गई। इसके साथ ही अन्य कई मामलों में भी अतीक के खिलाफ गवाह सामने आ सकते हैं, जिससे अतीक को सजा मिल सके। बहरहाल, अतीक और उसके साथियों को सजा के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भरी विधान सभा में माफियाओं को मिट्टी में मिला देने का संकल्प आगे बढ़ता दिखा, जो आगे भी जारी रहेगा।

अतीक पर यूपी के पूर्व डीजीपी ओपी सिंह ने खुलासा करते हुए कहा कि अतीक अहमद को सियासी संरक्षण नहीं मिला होता, तब वह उसके आतंक का खात्मा कर देते। पूर्व डीजीपी ने दावा किया कि जब वह 1989-90 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के एसपी सिटी के रूप में तैनात थे, तब उन्होंने उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के जवाब में पुलिस की एक टीम के साथ अतीक के अड्डे पर छापा मारा था। उस समय अतीक के हजारों समर्थकों ने उन्हें गोली मारने के लिए तैयार पुलिस दल को घेर लिया था। सिंह ने दावा किया कि माफिया के आदमियों द्वारा पूरी पुलिस पार्टी को मार गिराया जा सकता था, अगर उन्होंने अतीक को चेतावनी नहीं दी होती कि अगर उनके समर्थकों ने पुलिस पार्टी पर एक भी गोली चलाई, तब अतीक और उनके समर्थक दोनों को पुलिस द्वारा गोली मार दी जाएगी।

यूपी के पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी ने कहा कि वह अतीक और उसके गिरोह को वहीं गिरफ्तार करना चाहते थे, लेकिन राजनीतिक दबाव ने उनकी टीम को बिना किसी गिरफ्तारी के वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर पुलिस के साथ मुठभेड़ के बाद अतीक को गिरफ्तार कर लिया जाता या उसे मार गिराया जाता, तब इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा नहीं होता। सिंह ने कहा कि उस समय उनके काम की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेताओं और इलाहाबाद के लोगों ने प्रशंसा की थी, लेकिन सत्ताधारी दल माफिया का समर्थन कर रहा था, जिसके कारण उनका उदय सबसे खूंखार के रूप में हुआ। 

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