राजनीति में ईमानदारी की मिसाल थे Lal Bahadur Shastri, नेहरू के बाद संभाली थी देश को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी
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लाल बहादुर शास्त्री भारत की घरती पर जन्मे ऐसे महापुरुषों में से हैं, जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम, कर्तव्य और आचरण से ना केवल अपने देश का मान बढ़ाया बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी मिसाल पेश की है। उन्होंने छोटी उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने।
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भारत की घरती पर जन्मे ऐसे महापुरुषों में से हैं, जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम, कर्तव्य और आचरण से ना केवल अपने देश का मान बढ़ाया बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी मिसाल पेश की है। उन्होंने छोटी उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने। इतना ही नहीं लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री भी थे। वर्ष 1966 में भारत सरकार ने लाल बहादुर शास्त्री को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ (मरणोपरांत) से सम्मानित किया था। आज उनकी 59 वीं पुण्यतिथि पर पूरा देश अपने लाल को याद कर रहा है।
शास्त्री जी का प्रारंभिक जीवन
उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को हुआ था। उनके पिता ‘शारदा प्रसाद श्रीवास्तव’ एक स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। तब उनकी माँ ‘रामदुलारी देवी’ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर मिर्जापुर जाकर बस गईं। जहाँ उनका पालन पोषण हुआ और उनकी प्राथमिक शिक्षा शुरू हुई। कहा जाता है कि उस छोटे-से शहर में शास्त्री जी की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही।
उन्होंने वहाँ काफी विषम परिस्थितियों में शिक्षा हासिल की। वहीं उन्हें स्कूल जाने के लिए रोजाना मीलों पैदल चलना और नदी पार करनी पड़ती थी। बड़े होने के साथ ही शास्त्री जी ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए थे। शास्त्री जी जब केवल ग्यारह वर्ष के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था।
जानिए ‘शास्त्री’ उपाधि की कहानी
“शास्त्री” की उपाधि वर्ष 1925 में काशी विद्यापीठ से ग्रेजुएट होने के बाद उन्हें दी गई थी। यह शब्द ऐसे व्यक्ति को इंगित करता है जिसे शास्त्रों का अच्छा ज्ञान हो। काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा सरनेम ‘श्रीवास्तव’ हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे ‘शास्त्री’ लगा लिया। जिसके बाद शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया। शास्त्री जी का विवाह 16 मई 1928 में मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। उन्होंने अपनी शादी में दहेज लेने से इनकार कर दिया था। लेकिन अपने ससुर के बहुत जोर देने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी का दहेज लिया था।
शास्त्री जी की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए जब गांधी जी ने देशवासियों से एकजुट होने का आह्वान किया था, उस समय वे महज सोलह वर्ष के थे। लेकिन महात्मा गांधी के इस आह्वान पर उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। 1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून को तोड़ते हुए दांडी यात्रा शुरू की। शास्त्री जी विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे। आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया। स्वतंत्रता संग्राम के जिन जन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें वर्ष 1921 का ‘असहयोग आंदोलन’, वर्ष 1930 का ‘दांडी मार्च’ तथा वर्ष 1942 का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ महत्वपूर्ण हैं।
उनकी राजनीतिक उपलब्धियां
देश की स्वतंत्रता के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई और 1946 में जब अंतरिम सरकार का गठन हुआ। तो शास्त्री जी को अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जल्द ही वे गृह मंत्री के पद पर भी आसीन हुए। इसके बाद वे 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला इनमें रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे।
प्रधानमंत्री बनने की कहानी
नेहरू के बाद देश का अगला प्रधानमंत्री बनने के लिए शास्त्री और मोरारजी के बीच शास्त्री का पलड़ा भारी होने की दो वजहें थी, एक तो तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज मोरारजी देसाई के खिलाफ ही थे। दूसरा मोरारजी देसाई के पक्ष में उनके समर्थक दावेदारी कर रहे हैं। इससे पार्टी में यह संदेश गया कि मोरारजी पीएम बनेंगे तो पार्टी के नेता नाराज हो सकते हैं, यही खबर ही मोररजी के खिलाफ गई और शास्त्री के नाम पर मुहर लग गई। इसके बाद 31 मई 1964 को लाल बहादुर शास्त्री के रूप में देश को दूसरा प्रधानमंत्री मिल गया। खास बात यह थी कि उस दौरान खुद शास्त्री भी अपने आपको पीएम पद का दावेदार नहीं मानते थे उनका मानना था कि नेहरू का उत्तराधिकारी इंदिरा या फिर जेपी नारायण हो सकते हैं।
लाल बहादुर शास्त्री का निधन
लाल बहादुर शास्त्री जब पाकिस्तान के साथ वर्ष 1965 का युद्ध खत्म करने के लिए समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से मिलने गए थे। लेकिन इसके ठीक एक दिन बाद 11 जनवरी 1966 को अचानक खबर आई कि हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई है। हालांकि उनकी मृत्यु पर वर्तमान समय में भी संदेह बरकरार है।
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