प्लास्टिक प्रदूषण की तीव्रता पर्यावरण और संपूर्ण इको सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है: श्री मगनभाई पटेल

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प्रतिरूप फोटो
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यह संस्था सुपारी के पत्तों से प्लेट, कटोरियां बनाती है जो टिकाऊ और मजबूत होती हैं जिनका दोबारा उपयोग किया जा सकता है और इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता बल्कि कई लोगों को रोजगार भी मिलता है।केरल में इसके लिए कई औद्योगिक इकाइयाँ भी कार्यरत हैं, जहाँ पान के पत्तों से विभिन्न आवश्यक वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।

श्रीमती एन.एम.पाडलिया फार्मेसी कॉलेज,चांगोदर,अहमदाबाद द्वारा इस कॉलेज के मेनेजिंग ट्रस्टी एव श्री सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज के प्रमुख श्री मगनभाई पटेल की अध्यक्षता में "विश्व पर्यावरण दिवस" मनाया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती निधिबेन चौहान उपस्थित रहीं जो पुलिस महानिरीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरो श्री मकरंद चौहान की धर्मपत्नी हैं। श्रीमती निधिबेन चौहान कई शैक्षणिक एवं सामाजिक सेवा गतिविधियों में शामिल हैं। उन्होंने पिछले १३ वर्षों में २००० गरीब लोगों की मदद की है। बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी है और उनकी सेवा गतिविधियों के लिए उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल द्वारा प्रमाण पत्र भी दिया गया है। इस कार्यक्रम में १५० से भी अधिक महिलाएं मौजूद थीं। श्री मगनभाई पटेल ५५ वर्षों से पर्यावरणीय सेवाकार्यों में कई संगठनों के साथ काम कर रहे हैं और अपना वित्तीय सहयोग भी दे रहे हैं।हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदीने २८ जुलाई को चेन्नई में जी-२० पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में जी-२० देशों को प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए प्रभावी ढंग से काम करने का आह्वान किया, इसलिए हम सभी का कर्तव्य है की हम प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी एव उनकी पूरी टीम को इस कार्य में सहयोग प्रदान करेंगे तो निश्चित रूप से इस क्षेत्र में परिणामोन्मुखी काम किया जा सकता है।

  

श्री मगनभाई पटेल ने अपने संबोधन में कहा कि प्लास्टिक उत्पाद हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं जिसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में पॉलिमर का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है। वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक का उत्पादन औसतन प्रति वर्ष १५० मिलियन टन से अधिक है,आज प्लास्टिक का व्यापक रूप से विभिन्न पैकेजिंग फिल्मों, रैपिंग सामग्री, शॉपिंग और कचरा बैग,तरल कंटेनर,कपड़े,खिलौने,घरेलू सामान,औद्योगिक उत्पादों और भवन निर्माण में उपयोग किया जाता है। यह सामग्री अत्यधिक प्रदूषणकारी विनिर्माण प्रक्रिया के साथ तेल से निर्मित होने के कारण कभी नष्ट नहीं होती,जिसके परिणामस्वरूप पूरी दुनिया अब भारी मात्रा में प्लास्टिक कचरे के उचित प्रबंधन की चुनौती का सामना कर रही है।खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए तकनीकी कौशल की कमी, रीसाइक्लिंग और पुनर्प्राप्ति के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढांचे का विकास और नियमों के बारे में जागरूकता की कमी प्लास्टिक कचरे के इस विशाल ढेर के पीछे मुख्य कारक हैं। एक अनुमान के अनुसार ७०% प्लास्टिक पैकेजिंग उत्पाद कम समय में प्लास्टिक कचरे में परिवर्तित हो जाते हैं। देश में लगभग ९.४ मिलियन टीपीए प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसकी मात्रा २६००० टीपीडी2 होती है, जिसमें से लगभग ६०% का पुनर्चक्रण किया जाता है। अधिकांश प्लास्टिक कचरे को पुनर्चक्रित किया जा सकता है लेकिन पुनर्चक्रित उत्पाद पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी बेहद हानिकारक हैं। वर्जिन प्लास्टिक सामग्री को केवल २-३ बार ही पुनर्चक्रित किया जा सकता है क्योंकि प्रत्येक पुनर्चक्रण के बाद प्लास्टिक सामग्री थर्मल दबाव के कारण खराब हो जाती है और इसका जीवनकाल कम हो जाता है। इसलिए प्लास्टिक अपशिष्ट निपटान के लिए पुनर्चक्रण एक सुरक्षित और स्थायी समाधान नहीं है। यह ग्लोबल वार्मिंग के कई प्रमुख कारणों में से एक कारण है।इस अवसर पर श्री मगनभाई पटेलने आगे जानकारी देते हुए कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण की तीव्रता पूरे पर्यावरण और पूरे इको सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।लगातार बढ़ती आबादी, तेजी से शहरीकरण और औद्योगिक प्रगति मानव निर्मित गंभीर समस्याएं पैदा करनेवाले कुछ प्रमुख प्रेरक कारक हैं जो अंततः इस ग्रह पर जीवित प्राणियों के अस्तित्व को खतरे में डालते हैं।प्लास्टिक कचरे की उच्च मात्रा के परिणामस्वरूप लैंडफिलिंग के माध्यम से मिट्टी प्रदूषण होता है, समुद्री डंपिंग के माध्यम से समुद्री प्रदूषण होता है और खुले डंपिंग के माध्यम से वायु प्रदूषण होता है जो पूरी इको सिस्टम को प्रभावित करता है जिससे पर्यावरणीय संतुलन खतरे में पड़ता है।

 

खुले में डंपिंग से पर्यावरण में जहरीली गैस,दुर्गंध और संक्रामक रोगों के फैलने जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। जब इसे भूमि पर फेंक दिया जाता है तो यह मिट्टी को बंजर बना देता है और भूजल को प्रदूषित कर देता है। समुद्री डंपिंग के कारण समुद्री जीवन गंभीर रूप से प्रभावित होता है क्योंकि प्लास्टिक सैकड़ों वर्षों तक तैरता रहता है। इसके अलावा बुनियादी ढांचे की कमी,गलत डंपिंग तकनीक, अपर्याप्त कानून और कुप्रबंधन इस प्लास्टिक प्रदूषण के मुख्य कारक हैं।इसके अलावा, जल निकासी प्रणालियों का अवरुद्ध होना, बाढ़ और प्राकृतिक आपदाएँ, मिट्टी की बाँझपन और जल प्रदूषण अनुचित प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के गंभीर परिणाम हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के कुल कचरे का ५-१२% (वजन के हिसाब से २०-३०%) प्लास्टिक होता है,जिसमें से लगभग ६०% पर्यावरण में प्रवेश कर जाता है।आज हमारे देश के साथ-साथ विश्व में भी कई प्रकार के प्लास्टिक कचरे हैं जैसे घरेलू प्लास्टिक, कृषि प्लास्टिक,औद्योगिक प्लास्टिक,विद्युत प्लास्टिक और मेडिकल प्लास्टिक इत्यादि। हमारे महासागरों में सबसे छोटे जीव प्लैंकटन भी माइक्रोप्लास्टिक खाते हैं और उनके खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं।पानी की एक बोतल को नष्ट होने में करीब १००० साल तक का समय लग सकता है।प्लास्टिक प्रदूषण में एशिया दुनिया में सबसे आगे है।अकेले फिलीपींस ने हमारे महासागरों में १ बिलियन पाउंड से अधिक प्लास्टिक डाला है,पिछले ३० वर्षों में हमारे महासागरों में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक के अधिक होने की संभावना है। वर्ष २०१७-१८ की एक रिपोर्ट अनुसार,केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अनुमान लगाया है कि भारत सालाना लगभग ९.४  मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है (जो प्रति दिन २६,००० टन कचरे के बराबर है) और इसमें से लगभग ५.६ मिलियन प्रतिवर्ष टन प्लास्टिक कचरा रिसाइकल हो रहा है। 

 

 श्री मगनभाई पटेल ने अपने भाषण में आगे कहा कि आज मेरी उम्र ८२ वर्ष है।मेरी नानी का ९३ वर्ष की आयु में स्वर्गवास हुआ,जबकि मेरी दादी का ८२ वर्ष की आयु में निधन हुआ,उस समय खाना पकाने से लेकर सभी बर्तन मिट्टी के रखते थे। रसोईघर में केवल १०% तांबे,पीतल और कांसे के बर्तन थे, बाकी मिट्टी के बर्तन थे जिनमें खाना पकाया जाता था।अन्न भंडार की कोठी मिट्टी और गाय के गोबर से ढकी जाती थी।मेरे दादाजी वैष्णव थे,जब हमारे घर में ठाकोरजी की पधरामणि होती थी तो प्रसाद भी खाखरे के पत्तों से बनी पड़िया में परोसा जाता था और खाने के लिए पत्ते ही होते थे।पहेले के समय में कई पैकिंग सामग्री कांच के जार या बोतलों में आती थी, उस समय केवल १०% कांच के बर्तनों का उपयोग किया जाता था।हमारी माता हमे रेटिया द्वारा हाथ से काते गए कपड़े पहनाती थी।वे कस्तूरबा खादी ग्रामोद्योग से जुड़ी थीं और गांधीजी की विचारधारा को अपनाती थीं, इसलिए उन्होंने खादी कपड़े पर जोर दिया क्योंकि इससे लोगों को रोजगार भी मिलता था। फिर धीरे-धीरे पाश्चात्य संस्कृति के अनुकरण के कारण सभी मानव निर्मित व्यवस्थाओं के साथ-साथ अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं जो सभी बायप्रोडक्ट हैं।

 

हाल ही में श्री मगनभाई पटेल भारत सरकार के सामाजिक न्याय और रोजगार मंत्रालय द्वारा आयोजित "दिव्य कला मेला" में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जहाँ उन्होंने केरल स्थित विकलांगों के लिए कार्य कर रही "श्री रेणुका येलमन" संस्थान का दौरा किया।यह संस्था सुपारी के पत्तों से प्लेट, कटोरियां बनाती है जो टिकाऊ और मजबूत होती हैं जिनका दोबारा उपयोग किया जा सकता है और इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता बल्कि कई लोगों को रोजगार भी मिलता है।केरल में इसके लिए कई औद्योगिक इकाइयाँ भी कार्यरत हैं, जहाँ पान के पत्तों से विभिन्न आवश्यक वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। श्री मगनभाई पटेलने देश की औद्योगिक इकाइयों,महासंघों और वाणिज्य मंडलों को संबोधित करते हुए कहा कि अगर हम पर्यावरण की रक्षा और पालन करेंगे तो हम सरकार की मदद कर पाएंगे और यह एक तरह से देश की सेवा होगी। आज देश में करोड़ों गायें, पक्षी और अन्य जंगली जानवर प्लास्टिक पैकिंग पैकेट में फेंके गए खाद्य पदार्थों को खाते हैं, इसलिए अक्सर इन खाद्य पदार्थों के साथ प्लास्टिक भी उनके पेट में चला जाता है और प्लास्टिक जिसे पचाया नहीं जा सकता उसके जहरीले रसायनों के कारण लंबे समय में उनकी मृत्यु हो जाती है इसमें  समुद्री जीवन भी नष्ट हो रहा है जो संलग्न चित्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।आज हम जिसे विकास समझ रहे हैं वास्तव में वह विनाश है, इसलिए संपूर्ण मानव समुदाय प्रकृति विरोधी इन गतिविधियों का शिकार बन रहा है।आज पूरे विश्व में जिस प्रकार पर्यावरण पर आक्रमण हो रहा है उसके लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है, प्रकृति को दोष देने का कोई मतलब नहीं है। 

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