गिरता ग्राफ और सिमटते जनाधार से कैसे होगी सियासी नैया पार, चुनाव से पहले अकेली पड़ी मायावती

Mayawati
अंकित सिंह । Nov 26 2021 2:46PM

2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 19 सीट जीते थे जिनमें से महज चार विधायक के बचे हुए हैं। कभी उत्तर प्रदेश की शीर्ष पर रहने वाली पार्टी आज अपना दल और कांग्रेस से भी कमजोर हो चुकी है। भले ही बसपा ने उत्तर प्रदेश की ही बदौलत राष्ट्रीय पार्टी का खिताब हासिल किया हो।

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं। उत्तर प्रदेश की 4 बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती एक बार फिर सत्ता में वापसी के सपने संजोए बैठी हैं। हालांकि उनके लिए यह बड़ी चुनौती बनती जा रही है। उनकी पार्टी बहुजन समाज पार्टी यानी कि बसपा लगातार कमजोर होती जा रही है। बसपा की कमजोरी का कारण पार्टी से टूट रहे विधायक हैं। हाल में ही बसपा विधानमंडल दल के नेता शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया। हालांकि गुड्डू जमाली ऐसे पहले विधायक नहीं है जिन्होंने पार्टी को अलविदा कहा है। इनसे पहले भी कई और विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है। आलम यह है कि वर्तमान में देखें तो पार्टी के 75% विधायक बसपा से दूरी बना चुके हैं। 

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2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 19 सीट जीते थे जिनमें से महज चार विधायक के बचे हुए हैं। कभी उत्तर प्रदेश की शीर्ष पर रहने वाली पार्टी आज अपना दल और कांग्रेस से भी कमजोर हो चुकी है। भले ही बसपा ने उत्तर प्रदेश की ही बदौलत राष्ट्रीय पार्टी का खिताब हासिल किया हो। लेकिन 2012 के बाद से उसका ग्राफ लगातार नीचे गिरता जा रहा है। खुद बसपा सुप्रीमो मायावती का भी सियासी जनाधार खिसकता जा रहा है जिसे रोकने की कोशिश तो लगातार होती रही लेकिन यह सिलसिला जारी है। कमजोर संगठन और मजबूत विपक्ष होने के बावजूद मायावती 2022 के चुनाव में फ्रंट फुट पर लड़ते दिखाई दे रही हैं।

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2012 से खराब प्रदर्शन

सत्ता में रहने के बावजूद 2012 के चुनाव के दौरान बसपा सिर्फ 80 सीटें जीत सके थी जबकि उसने उत्तर प्रदेश के पूरे 403 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में 21 सीटें जीतने वाली बसपा 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना खाता तक नहीं खोल सकी। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 19 सीट पर जीत मिली जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी बसपा 10 सीट जीतने में कामयाब रही। हालांकि, अब जब 2022 का चुनाव सिर पर है, मायावती लगातार अपने संगठन को मजबूत करने की कोशिश में हैं। पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र भी लगातार विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। 

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साथ में सिर्फ चार विधायक

मुख्तार अंसारी को बसपा पहले ही टिकट नहीं देने का ऐलान कर चुकी है जबकि एक विधायक सुखदेव राजभर का निधन हो चुका है। रामवीर उपाध्याय भाजपा के साथ बातचीत कर रहे हैं। ऐसे में पार्टी के साथ श्याम सुंदर शर्मा, उमाशंकर सिंह, विनय शंकर तिवारी और आजाद अरिमर्दन सिर्फ पार्टी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस के 7 विधायकों में से एक ने पार्टी छोड़ दी है जबकि एक बगावती तेवर दिखा रहा है। जबकि पांच साथ हैं। अपना दल के कुल 9 विधायक हैं। वही ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के 4 विधायक हैं। 

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