पहले भाजपा अब कांग्रेस पर भी कठोर हुईं ममता, एकला चलो की नीति पर बढ़ेंगी आगे

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अभिनय आकाश । Apr 3 2019 12:43PM

भाजपा के खिलाफ लगातार हमलावार रहने वाली ममता बनर्जी अब कांग्रेस को भी अछूत मानने लगी हैं। ममता बनर्जी ने अपनी सरकार के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने बच्चा कहते हुए उनपर टिप्पणी करने से भी इंकार कर दिया।

ममता बनर्जी की पहचान अलग-अलग लोगों की नज़रों में अलग अलग तरह से है। जनाधार वाली नेता, गरबों की मसीहा, दयालु लेकिन तीखे तेवर, दबंग व तानाशाह, इमानदार परंतु भ्रष्टाचार की अनदेखी करने वाली शासक, जैसे कई सवाल ममता बनर्जी के पहचान से जुड़े हैं। लेकिन ममता दीदी के राजनैतिक सफ़र की कामयाबी पर किसी को कोई शक नहीं। किसी की नज़रों में वह हिटलर दीदी हैं तो कोई उन्हें बंगाल के सियासत की मज़बूरी बताता है। बंगाल की राजनीति में हमेशा से ममता अपने चाहने वालों के दिलों में और विरोधियों के निशाने पर लगातार बनी रही। 

विरोधियों के लिए भले ही ममता कठोर, तुनकमिजाज और मनमानी चलाने वाली हों पर अपने सपोर्टरों की नज़रों में मोम की तरह नरम दिल रखने वाली दीदी उनके हर गम और तकलीफ में उनके साथ खड़ी रहने वाली आयरन लेडी हैं। देश की निगाहों में सियासत की अबूझ पहेली माने जाने वाली ममता गठबंधन की कवायद में सबसे आगे रहने के बाद अब खुद स्पष्ट कर दिया की पश्चिम बंगाल में उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस अकेली ही चलेगी। दरअसल शुरू से ही तृणमूल का गठबंधन आचरण कुछ ऐसा ही रहा है कि वह खुद को ही सियासत के केंद्र में रखकर चाहती है। यानी गठबंधन उस शर्त पर, जिसमें तृणमूल के हित सर्वोपरि हों। 

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भाजपा के खिलाफ लगातार हमलावार रहने वाली ममता बनर्जी अब कांग्रेस को भी अछूत मानने लगी हैं। ममता बनर्जी ने अपनी सरकार के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने बच्चा कहते हुए उनपर टिप्पणी करने से भी इंकार कर दिया। बता दें कि राहुल ने पिछले हफ्ते माल्दा में एक चुनावी रैली में आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख अपने वादों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं। उन्होंने यह आरोप भी लगाया था कि बंगाल में कोई बदलाव नहीं हुआ और ममता के कार्यकाल में राज्य में कोई विकास नहीं हुआ। 

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घोषणा पत्र जारी कर जनता से किए वादें

ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव के लिए घोषणा पत्र जारी किया। इसमें उन्होंने वादा किया कि लोकसभा चुनावों के बाद अगर विपक्षी गठबंधन सत्ता में आया तो नोटबंदी की जांच होगी और योजना आयोग को बहाल करेंगे। ममता ने अपनी पार्टी के चुनावी घोषणापत्र को जारी करते हुए कहा कि 100 दिनों के काम की योजना को बढ़ाकर 200 दिनों का करेंगे और इसकी मजदूरी भी दोगुनी होगी। उन्होंने कहा, 'हम नोटबंदी के फैसले की जांच कराएंगे और योजना आयोग को वापस लाएंगे. नीति आयोग की कोई उपयोगिता नहीं है।

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गठबंधन तोड़ने में रहीं हैं माहिर

अगर पिछले इतिहासों को गौर कर देखा जाय तो  ममता ने कभी अपने मुद्दों से समझौता नहीं किया और तुरंत गठबंधन तोड़ लिया। फिर चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सरकार हो या फिर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार। इसमें दो राय नहीं कि ममता आंदोलनों से निकली जमीनी स्तर की जुझारू नेता हैं, लेकिन गठबंधन की राजनीति में उनका जोर नहीं चला है। इस बार भाजपा के खिलाफ गठबंधन की वकालत करने वाली वह संभवत: पहली विपक्षी पार्टी थी। न केवल कांग्रेस बल्कि दूसरे दलों को भी वह घूम- घूम कर जोड़ती रहीं, लेकिन शुरुआत में ही शर्त रख दी थी कि हिस्सेदारी की नीयत न रखें। उनका साफ कहना था कि जो दल जहां मजबूत है, वहां दूसरे सभी मिलकर उनकी मदद करे। अब वह गठबंधन से बाहर हैं। तृणमूल कई बार सनक में फैसले लेती रही है।

किस राह पर चलेंगी ममता

ममता के दोनों प्रमुख दलों के प्रति जैसे तीखे तेवर हैं, लोकसभा चुनाव 2019 के बाद देश में राजग या संप्रग सरकार बनने के बाद उनके लिए दोनों में से किसी भी दल के साथ जाना काफी कठिन लग रहा है। चुनाव से पहले एकला चलो के नारे के साथ आगे बढ़ती ममता दीदी के लिए चुनाव के बाद भी दोनों दलों के प्रति नाराजगी खासकर सत्ता में काबिज सरकार के प्रति ऐसे तेवर का बरकरार रहना प्रदेश के लिए भी हितकर नहीं रहेगा। 

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