विकास और पर्यावरण का टकराव रोकने के उपाय होंः भागवत

[email protected] । May 12 2016 4:17PM

भागवत ने आज कहा कि हमें दोनों पक्षों (विकास और पर्यावरण) के हितों को देखते हुए मध्यमार्ग निकालना होगा और इस बीच के रास्ते पर चलकर आचरण करना होगा।

निनोरा। विकास और पर्यावरण के हितों का टकराव रोकने के लिये ‘मध्यमार्ग’ के आधार पर नीतियां बनाने की वकालत करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने आज कहा कि लोक व्यवहार में पूरी प्रामाणिकता से इन नीतियों का पालन भी सुनिश्चित होना चाहिये। भागवत ने उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ मेले की पृष्ठभूमि में मध्य प्रदेश सरकार के आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ’ के उद्घाटन समारोह में कहा, ‘ऐसा कोई नहीं बोलता कि पर्यावरण को बर्बाद हो जाना चाहिये। लेकिन बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां आती हैं, तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। विकास और पर्यावरण के टकराव का विश्व के पास फिलहाल कोई जवाब नहीं है। इस टकराव को रोकने के लिये हमें दोनों पक्षों (विकास और पर्यावरण) के हितों को देखते हुए मध्यमार्ग निकालना होगा और इस बीच के रास्ते पर चलकर आचरण करना होगा।’

उन्होंने कहा, ‘हमें ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जिनसे विकास और पर्यावरण के टकराव को रोकने के लिये मध्यमार्ग निकले। तथागत बुद्ध ने धर्म को मध्यमार्ग ही कहा है। हमें ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिनकी मदद से मध्यमार्ग पर चलना सुनिश्चित हो सके।’ भागवत ने कहा, ‘नीतियां बनाने वाले शासक और प्रशासक हमारे समाज से ही आते हैं। आम लोगों को इन शासक-प्रशासकों को ठीक नीतियां बनाने के लिये बाध्य करना चाहिये। फिर आम लोगों को इन नीतियों का पूरी प्रामाणिकता से पालन भी करना चाहिये। जनता को इस बात की शिक्षा देने के लिये कुछ उदाहरण प्रस्तुत होने चाहिये।’
संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि विज्ञान और अध्यात्म को परस्पर विरोधी होने की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि दोनों के तालमेल से वैश्विक समस्याओं के समाधान खोजे जाने चाहिये।

उन्होंने कहा, ‘हमें विज्ञान और अध्यात्म का सहारा लेकर इस बात का चिंतन करना होगा कि हमारे सत्य सनातन आध्यात्मिक मूल्यों के आधार पर ऐसी जीवन पद्धति कौन-सी होनी चाहिये जो देश, काल और परिस्थिति के भी अनुरूप हो। लेकिन केवल चिंतन से काम नहीं होगा, बल्कि हमें नीतियां बनाकर इस चिंतन को आचरण में भी बदलना होगा।’

संघ प्रमुख भागवत ने कहा, ‘विश्व की नयी रचना कैसी हो, इस अवधारणा का मॉडल हमें मौजूदा हालात के परिप्रेक्ष्य में अपने देश के जीवन मूल्यों के आधार पर तय करना होगा।’ भागवत ने कहा कि विज्ञान को भी समझ आ रहा कि दुनिया में कुछ चीजें ऐसी हैं, जिन्हें प्रयोगशालाओं के सूक्ष्मदर्शी यंत्र देख नहीं सकते। विज्ञान जितना उन्नत होता जा रहा है, उतना ही अध्यात्म के निकट आता जा रहा है। विज्ञान सत्य को जानने का तरीका है। लेकिन उसकी जानकारी अभी सीमित है। संघ प्रमुख ने इस बात पर भी जोर दिया कि वैश्विक मसलों के हल के लिये संघर्ष के बजाय समन्वय की राह चुनी जानी चाहिये।

उन्होंने कहा, ‘दुनिया अब विचार कर रही है कि हमें विविधता को न केवल स्वीकार करना चाहिये, बल्कि इसे सम्मानित भी करना चाहिये। लोग धीरे-धीरे इस बात को मानने लगे हैं कि हमें अपने अस्तित्व के लिये परस्पर संघर्ष के बजाय आपसी समन्वय का रास्ता अख्तियार करना होगा।’ संघ प्रमुख ने ‘अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ’ के आयोजन के लिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तारीफ की और कहा कि इस कार्यक्रम से सिंहस्थ मेले की वैचारिक परंपरा फिर जीवित हो गयी है।

इस सम्मेलन में गायत्री परिवार के अंतरराष्ट्रीय प्रमुख प्रणव पंड्या ने कहा, ‘हम इन दिनों परिवर्तन के महान क्षणों से गुजर रहे हैं। आने वाले 10 वर्षों में भारत विश्व गुरु के रूप में उभरेगा और दुनिया का मार्गदर्शन करेगा। वर्ष 2026 तक राजनीति शुद्ध होगी और मनुष्य का मानस परिष्कृत होगा।’ राज्यसभा सांसद के रूप में अपने मनोनयन को अस्वीकार करने वाली हस्ती ने जोर देकर कहा कि भारत के इतिहास में धर्मतंत्र और राजतंत्र की भूमिका समान रही है। धर्मतंत्र की मदद से ही राजतंत्र अपना राजकाज चलाता रहा है। पंड्या ने इस बात पर भी जोर दिया कि देश में संस्कृति और विद्या को विशेष महत्व दिया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा किया गया, तो घोटाले नहीं होंगे और मनुष्य का जीवन सुखी हो जायेगा।

जूना अखाड़ा के प्रमुख अवधेशानंद ने कहा कि वैश्विक समस्याओं के समाधान का रास्ता आर्थिक क्षेत्र या राजनीति से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जगत से निकलेगा। वैश्विक समस्याओं के समाधान में भारत का आध्यात्मिक जगत अगुवाई करेगा।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दुनिया भर में महिलाओं के साथ भेदभाव का मुद्दा उठाते हुए कहा कि तथाकथित विकसित राष्ट्रों में भी ‘आधी आबादी’ के साथ गैर बराबरी का बर्ताव किया जा रहा है। उन्होंने कहा ‘कम्पनियां अपने अलग-अलग उत्पादों को बेचने के लिये इश्तेहारों में नारी देह का इस्तेमाल करने से भी नहीं झिझकती हैं। इस स्थिति को बदले जाने की जरूरत है।’ चौहान ने बताया कि तीन दिवसीय ‘अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ’ में आध्यात्मिक विषयों पर चिंतन मनन के साथ वैश्विक तापक्रम में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं के समाधान खोजने की कोशिश भी की जायेगी। इसके साथ ही, इस विषय पर भी विचार मंथन किया जायेगा कि मौजूदा हालात में जीवन जीने की सही राह कौन-सी होनी चाहिये। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 मई को ‘अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ’ के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे और सिंहस्थ 2016 के सार्वभौम संदेश का विमोचन करेंगे। इस समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना बतौर विशिष्ट अतिथि शिरकत करेंगे।

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