मुजफ्फरपुर कांड में मीडिया ट्रायल की अनुमति नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
उच्चतम न्यायालय ने मुजफ्फरपुर आश्रयगृह प्रकरण की सुनवाई करते हुये मंगलवार को कहा कि प्रेस को ‘एक रेखा खींचने’ के साथ ही संतुलन बनाना चाहिए क्योंकि ऐसे मामलों के मीडिया ट्रायल की इजाजत नहीं दी जा सकती।
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मुजफ्फरपुर आश्रयगृह प्रकरण की सुनवाई करते हुये मंगलवार को कहा कि प्रेस को ‘एक रेखा खींचने’ के साथ ही संतुलन बनाना चाहिए क्योंकि ऐसे मामलों के मीडिया ट्रायल की इजाजत नहीं दी जा सकती। इस आश्रय गृह की अनेक महिलाओं का कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण किया गया था।शीर्ष अदालत ने मुजफ्फरपुर आश्रयगृह मामले की जांच की रिपोर्टिंग से मीडिया को रोकने के मामले में पटना उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि यह मामला इतना ‘आसान’ नहीं है। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा, ‘‘यह इतना आसान मामला नहीं है। मीडिया कई बार एकदम चरम पर पहुंच जाता है। इसमे संतुलन बनाने की आवश्यकता है। आप यह नहीं कह सकते कि आप जैसा चाहेंगे कहेंगे। आप मीडिया ट्रायल नहीं कर सकते। हमे बतायें कि कहां रेखा खींची जाये।’’
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे ने पीठ से कहा कि उच्च न्यायालय ने इस मामले में मीडिया पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है।शीर्ष अदालत ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद याचिका पर इस मामले की जांच कर रही सीबीआई और बिहार सरकार को नोटिस जारी किये। इन दोनों को सुनवाई की अगली तारीख 18 सितंबर तक नोटिस के जवाब देने हैं। पीठ को यह भी सूचित किया गया कि उच्च न्यायालय ने 29 अगस्त को एक महिला वकील को इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त किया है और उससे कहा है कि वह उस जगह जाये जहां कथित पीड़ितों को रखा गया है और उनके पुनर्वास के मकसद से उनका इंटरव्यू करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्याय मित्र को इन कथित पीडि़तों का इंटरव्यू करने का निर्देश उसके पहले के आदेश से ‘‘पूरी तरह विपरीत’’ है जिसमें न्यायालय ने मीडिया से कहा था कि इन नाबालिग लड़कियों का इंटरव्यू नहीं किया जाये। पीठ ने स्पष्ट किया कि जांच एजेन्सी को इन पीड़ितों से पूछताछ के समय पेशेवर काउन्सलर और योग्यता प्राप्त बाल मनोचिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए।
इस बीच, पीठ ने कहा, ‘‘इस निर्देश (न्याय मित्र से महिलाओं का इंटरव्यू करने के लिये कहना) पर रोक लगायी जाती है। यह हमारे पहले के आदेश से पूरी तरह विपरीत’ है। अत: इस पर रोक लगानी ही होगी।’’ इससे पहले, बहस के दौरान नफडे ने कहा कि जांच की रिपोर्टिंग से मीडिया को रोकने का उच्च न्यायालय का आदेश शीर्ष अदालत के निर्देश के विपरीत है। पीठ ने नफडे से कहा कि इस मामले में उन्हें न्यायालय की मदद करनी होगी।वरिष्ठ अधिवक्ता ने जब यह कहा कि मीडिया पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं होना चाहिए तो पीठ ने कहा कि हम 18 सितंबर को इस पर गौर करेंगे।
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