नेताजी की मौत के रहस्य का राज खुलेगा? ताइवान ने कहा- हमारे पास ऐसे दस्तावेज, जो बहुत कम लोगों को पता होंगे

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अभिनय आकाश । Jan 24 2022 12:54PM

भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी के संघर्ष का एक बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान और बर्मा से लेकर ताइवान, जापान और सिंगापुर में दक्षिण पूर्व एशिया सहित चीन के सुदूर पूर्व तक विदेशी धरती पर था। ताइवान के राजनयिक ने कहा हमारे पास राष्ट्रीय अभिलेखागार और डेटाबेस है।

नेताजी की मौत का रहस्य, भारतीय राजनीति के सबसे लंबे समय तक चलने वाला विवाद। दशकों से भारतवासी जानना चाहते हैं कि आखिर सुभाष चंद्र बोस को क्या हुआ? क्या नेताजी एक विमान दुर्घटना में मारे गए थे या रूस में उनका अंत हुआ। या फिर 1985 तक वह , गुमनामी बाबा बनकर उत्तर प्रदेश में रहे।  इतना लंबा अरसा बीत जाने के बावजूद लोग यह मानने को तैयार नहीं है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस विमान दुर्घटना में ही मारे गए थे। हादसे के बाद नेताजी के बारे में अब तक की जानकारी का बड़ा हिस्सा जापानी दावों और दस्तावेजों पर आधारित रहा है। भारत सरकार ने सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती से 23 जनवरी को “पराक्रम दिवस” ​​के रूप में मनाने की घोषणा भी कर दी है। इसी बीच ताइवान ने नेताजी की विरासत को “फिर से खोजने” के लिए अपने राष्ट्रीय अभिलेखागार और डेटाबेस को खोलने की पेशकश की है।

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ताइवान ने क्या पेशकश की 

ताइवान ने भारतीय विद्वानों को अपने द्वीप राष्ट्र का दौरा करने और अपने अभिलेखागार में उपलब्ध नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करने के लिए आमंत्रित किया है। यह ताइवान में था जहां 1945 में नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। भारत में ताइवान के उप दूत मुमिन चेन ने नेताजी के 125वें जन्मदिन समारोह के लिए शनिवार को फिक्की द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के बारे में आगे के अध्ययन के लिए भारतीय विद्वानों के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार खोलने की पेशकश की। मुमिन चेन ने कहा कि नेताजी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में बहुत सारे ऐतिहासिक साक्ष्य और दस्तावेज ताइवान में हैं। अभी बहुत कम भारतीय विद्वानों ने इस पर ध्यान दिया है कि ऐसी तस्वीरें और ऐतिहासिक दस्तावेज हैं जो दिखाते हैं कि नेताजी के बारे में बहुत सारी रिपोर्टें थीं।

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 राष्ट्रीय अभिलेखागार और डेटाबेस ताइवान में मौजूद

भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी के संघर्ष का एक बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान और बर्मा से लेकर ताइवान, जापान और सिंगापुर में दक्षिण पूर्व एशिया सहित चीन के सुदूर पूर्व तक विदेशी धरती पर था। मैं भारत में अपने दोस्तों से भविष्य में इस बारे में कुछ करने का आह्वान करता हूं। ताइवान के राजनयिक ने कहा हमारे पास राष्ट्रीय अभिलेखागार और डेटाबेस है, भारतीय विद्वानों को आ सकते हैं और नेताजी और उनकी विरासत के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उस समय ताइवान जापान का हिस्सा था। जब जापानियों को बाहर कर दिया गया और च्यांग काई-शेक ने ताइवान पर अधिकार कर लिया, तब नेताजी की यात्राओं और मृत्यु के बारे में रिपोर्टों सहित सभी औपनिवेशिक इतिहास को 1990 के दशक तक कभी भी प्रचारित नहीं किया गया था। ताइवान के राजनयिक ने कहा कि भारत और ताइपे के बीच "ऐतिहासिक संबंध" हैं, जिनके बारे में 1990 के दशक से पहले बड़े हुए अधिकांश लोगों को बहुत कम या कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया, "1940 के दशक में, चियांग काई-शेक ने अपनी डेयरी में नेताजी के बारे में भी लिखा था।  उनके दस्तावेजों से स्वतंत्रता के लिए जापानी लड़ाई में जापान का सहयोग करने का निर्णय समझ में आता है।”

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