लोकसभा चुनाव में बीजेपी के गढ़ में सेंधमारी कर NCP (Sharad Pawar) ने बनाई बढ़त, विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए राहें मुश्किल
पिछले 15 साल से काबिज भारतीय जनता पार्टी को हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार के गुट वाली एनसीपी के भास्कर मुरलीधर भगारे ने सत्ता से उतार दिया है। 2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिश के आधार पर 2008 में इस निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया था।
डिंडोरी महाराष्ट्र राज्य का एक प्रमुख आरक्षित (एसटी) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। जहां पिछले 15 साल से काबिज भारतीय जनता पार्टी को हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार के गुट वाली एनसीपी के भास्कर मुरलीधर भगारे ने सत्ता से उतार दिया है। 2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिश के आधार पर 2008 में इस निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया था। जहां सर्वप्रथम 2009 के आम चुनाव में मतदान हुआ था। डिंडोरी का मूल नाम 1951 तक रामगढ़ था, लेकिन बाद में यह क्षेत्र रामगढ़ की जगह डिंडोरी के नाम से जाना जाने लगा। चेदी, मौर्य, शुंग और कण्व व चालुक्य के राजवंशों ने इस क्षेत्र में लंबे समय तक शासन किया है। इसलिए डिंडोरी का अपना एक अलग ऐतिहासिक महत्व है। कलचुरी काली मंदिर, लक्ष्मण माडव और कुकरा मठ यहां के धार्मिक रूप से प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं। इसके अलावा भी यह क्षेत्र अंगूर की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
2024 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) ने छह में से चार सीटों पर बढ़त बनाकर जीत दर्ज की थी। यह लोकसभा क्षेत्र नंदगांव, कलवान, चांदवाड़, येओला, निफाड़ और डिंडोरी विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया है। यह सभी सीटें नासिक जिले के अंतर्गत ही आती हैं। 1962 में महाराष्ट्र राज्य के गठन के साथ ही अस्तित्व में आयी नंदगाव विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी दल जीत दर्ज कर चुके हैं। वर्तमान में यह सीट एकनाथ शिंदे के गुट वली शिवसेना के सुभाष कांडे के पास है। उन्होंने सीपीआई के पंकज भुजबल को पराजित करके यह सीट अपने नाम की थी। भुजबल ने 10 साल तक इस सीट का राज्य की विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया है।
डिंडोरी लोकसभा की अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित कलवान सीट पूरी तरह से नासिक जिले के अंतर्गत ही आती है। कलवान विधानसभा क्षेत्र पूरे महाराष्ट्र में अर्जुन तुलसीराम पवार के कारण भी जाना जाता है। जिन्होंने 1990 से लेकर 2009 तक पहले भाजपा फिर एनसीपी के टिकट पर जीत दर्ज की थी। वर्तमान में अजित पवार के गुट वाली एनसीपी के नितिन अर्जुन पवार यहां से विधायक हैं।
तो वहीं, 2014 के चुनाव में सीपीएम-आई के जीवा पांडू गावित ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस और शिवसेना को छोड़कर बीजेपी और एनसीपी दोनों दलों को जीत का मौका देने वाली चांदवाड़ विधानसभा सीट पूरी तरह से नासिक जिले के अंतर्गत ही आती है। मूलतः यह सीट भारतीय जनता पार्टी के गढ़ के रूप में जानी जाती है। इस सीट पर भाजपा ने 1985 से लेकर 1999 तक लगातार तीन बार जीत दर्ज की थी। जिसके बाद के दो चुनावों में एनसीपी और उसके बाद निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल करके पार्टी की इस सीट पर पकड़ कमजोर की थी। लेकिन 2014 में एक बार फिर भाजपा ने वापसी की और राहुल दौलतराव अहीर यहां से चुनाव जीतने में सफल रहे। वे लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं।
महाराष्ट्र की विधानसभा में 119 नंबर से जाने जानी वाली येओला विधानसभा सीट पर लंबे समय से एनसीपी के कद्दावर नेता छगन भुजबल का कब्जा है। वह यहां से लगातार 2004 से विधायक हैं। उनके पहले यह सीट शिवसेना के कल्याणराव जयंतराव पाटिल के पास थी। लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो टुकड़े होने पर भुजबल ने अजित पवार का साथ दिया था। वह फिलहाल राज्य सरकार की कैबिनेट में शामिल हैं। उन्हें खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप गई है।
डिंडोरी लोकसभा के अंतर्गत आने वाली निफाड़ विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने 1962 से लेकर 1995 तक लगातार राज किया है। हालांकि, 1995 में यह सीट कांग्रेस से छिटकर शिवसेना के पास चली गई थी। जिसके बाद कांग्रेस कभी इस सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी है। वर्तमान में इस सीट से अजित पवार के गुट वाली एनसीपी के दिलीप बनकर विधायक हैं। उन्होंने 2019 के चुनाव में पिछले दो बार के शिवसेना से विधायक अनिल कदम को मात देकर जीत हासिल की थी। इस लोकसभा क्षेत्र की एक अन्य डिंडोरी विधानसभा सीट भी अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है। वर्तमान में एनसीपी (अजीत पवार) के जिरवाल नरहरि सीताराम यहां से विधायक हैं। विधायक जिरवाल विधानसभा में 2004 से लेकर 2009 और 2014 से 2019 के बीच भी यहां की जनता का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वे फिलहाल राज्य की विधानसभा में डिप्टी स्पीकर के पद पर आसीन हैं।
इस बार के विधानसभा चुनाव में डिंडोरी सीट को देखते हुए किसान और उनके मुद्दे अहम मुद्दा हो सकते हैं। वहीं, इस निर्वाचन क्षेत्र में आदिवासी सदस्यों की संख्या भी अच्छी खासी है। कुछ बुनियादी ढांचे के मुद्दों के साथ-साथ स्वास्थ्य का मुद्दा भी यहां चुनाव के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहने वाला है। लेकिन सबका मुख्य मुद्दा प्याज हो सकता है। यह भी देखा गया है कि प्याज को लेकर सरकार के रुख को लेकर किसान अक्सर आक्रामक हो गये हैं। प्याज निर्यात प्रतिबंध और प्याज की कीमतों का असर चुनाव में दिख सकता है।
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