प्यार और तकरार के बीच बिहार में मचा सियासी बवाल

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अंकित सिंह । Jun 6 2019 3:42PM

मोदी सरकार के गठन के बाद से नीतीश की चुप्पी ने भाजपा के लिए असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। आधुनिक भारतीय राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह और उनकी पार्टी ने शायद ''wait and watch'' की नीति अपना रखी है।

 गिरिराज सिंह के बयान के बाद बिहार में सियासी उबाल मचा हुआ है। मोदी मंत्रिमंडल में जदयू के शामिल नहीं होने के बाद से ही NDA में कड़वाहट देखी जा रही थी और गिरिराज के बयान आग में घी डालने का काम किया। इस बयान से गिरिराज ने अपनी फजीहत करवा ली। सहयोगी को तो छोड़िए उन्हें अपनों से भी फटकार मिलने लगी। गिरिराज हमेशा नीतीश पर हमलावर रहते हैं पर यह पहली बार हुआ कि उन्हें शांत रहने की हिदायत दे दी गई। इसे भाजपा के लिए मजबूरी और गठबंधन धर्म के लिए जरूरी के रूप में भी देखा जा सकता है। मोदी सरकार के गठन के बाद से नीतीश की चुप्पी ने भाजपा के लिए असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है। आधुनिक भारतीय राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह और उनकी पार्टी ने शायद 'wait and watch' की नीति अपना रखी है। 

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कहने के लिए तो बड़े नेता लगातार यह कह भी रहे हैं कि NDA में सबकुछ ठीक है पर दिखता ठीक इसके उल्टा है। पिछले साल जदयू और भाजपा नेता एक दूसरे के इफ्तार पार्टी में जमकर शरीक हुए थे। इस बार दोनों दलों की इफ्तार पार्टी तो हुआ लोकिन नेताओं ने एक दूसरे की पार्टी से दूरी बना ली। ना भाजपा नेता जदयू की इफ्तार पार्टी में गए ना जदयू वाले भाजपा में आए। दोनों दलों के नेता एक साथ जरूर दिखे और वह भी अपने तीसरे सहयोगी रामविलास पासवान की इफ्तार पार्टी में। नीतीश ने जिसे विश्वासघाती बताया था उस जीतन राम मांझी के इफ्तार पार्टी में चले गए पर भाजपा वालों से दूरी बना ली। क्या यह दूरी नीतीश के लिए जरूरी है?

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चुनाव से पहले विपक्ष और खासकर तेजस्वी यादव लगातार कह रहे थे कि पलटू चाचा चुनाव बाद पलट सकते हैं। नीतीश अभी तक तो पलटे नहीं हैं पर भाजपा को आंखें जरूर दिखा दी हैं। भाजपा पर इसका असर देखने को भी मिल रहा है। गिरिराज प्रकरण के बाद जदयू जहां भाजपा पर हमलावर है तो वहीं भाजपा जदयू को लेकर संयम बनाए हुए है और अपने नेताओं को ही शांत रहने की हिदायत दे रही है। मोदी कैबिनेट के शपथ ग्रहण के बाद ही नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। भाजपा कोटे से कोई भी मंत्री नहीं बना। इसके बाद इस बात को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई कि क्या नीतीश ने अपना बदला ले लिया? भाजपा नेता सुशील मोदी मीडिया के सामने आते हैं और कहते है कि हमें मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए कहा गया था पर हम नहीं हुए। ऐसा ही कुछ दिल्ली में हुआ था कि मोदी ने भी जदयू को भी अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए कहा था और जदयू शामिल नहीं हुई। 

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सवाल यह भी है कि NDA में रहते हुए जदयू शिवसेना वाले रास्ते पर चलने की कोशिश तो नहीं कर रही? कुछ लोग इसे सही मानेंगे क्योंकि बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और अब लड़ाई छोटे भाई और बड़े भाई की हो गई है। नीतीश को लगता है कि बिहार में NDA की इतनी बड़ी जीत उनकी छवि की वजह से हुई है जबकि भाजपा इसे ब्रांड मोदी की जीत मान रही है। नीतीश को यह भी लगता है कि अगर वह भाजपा पर दबाव बनाकर नहीं रखते हैं तो उन्हें सीट बंटवारे में नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि लोकसभा चुनाव में जीत के आकड़ों के अनुसार भाजपा 96 विधानसभा सीटों पर आगे है जबकि जदयू 94 पर। एक सीट किशनगंज जहां NDA हार गई है वहां जदयू और भाजपा के बीच टकराव भी है। भाजपा इस हार के लिए नीतीश को जिम्मेदार मान रही है और वह लगातार कह रही हैं कि नीतीश ने यहां सिर्फ अपने नाम पर वोट मांगा। अगर वह मोदी के नाम पर वोट मांगते तो शायद स्थिति दूसरी होती। वहीं जदयू को यह लगता है कि अगर यहां मोदी के नाम का जिक्र किया जाता तो मुस्लिम हमें वोट नहीं देते। बता दें कि किशनगंज मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। 

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अब बात जदयू के मोदी मंत्रिमंडल में ना शामिल होने की करते हैं। जो नीतीश की तरफ से कहा गया वह यह है कि पार्टी को सिर्फ एक मंत्रिपद दिया जा रहा था और हम सांकेतिक भागीदारी में दिलचस्पी नहीं रखते लेकिन अंदर की खबर यह है कि शायद मंत्रिपद को लेकर जदयू में आम सहमति नहीं बन पाई कि किसे मंत्री बनाया जाए। बताया जाता है कि इसे लेकर जदयू दो गुट में बंट गई थी क्योंकि एक तरफ आरसीपी सिंह थे तो दूसरी तरफ ललन सिंह। नीतीश के लिए धर्मसंकट यह था कि किसे आगे बढ़ाया जाए क्योंकि दोनों ही उनके करीबी थे। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण जो अब निकल कर सामने आ रहा है। वह यह है कि भाजपा अगर धारा 370, राम मंदिर और तीन तलाक जैसे मुद्दो पर आगे बढ़ती है तो नीतीश इसका खुल कर विरोध नहीं कर पाते। भाजपा ने इस बात के लेकर उन्हें पहले ही अवगत करा दिया था कि वह अपनी नई सरकार में इस एजेंडे पर आगे बढ़ेगी और वह दिख भी रहा है। नीतीश की इस खामोशी के बाद राजद ने भी अपने बांहे उनके लिए खोले रखा है। खुद राबड़ी देवी ने कहा है कि राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं। फिलहाल नीतीश उस स्थिति में हैं जहां उनके दोनों हाथों में लड्डू तो है पर खाना बहुत संभल के है क्योंकि 'यह पब्लिक है सब जानती है'। 

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