NRC में कोई भेदभाव नहीं, कुछ लोग माहौल खराब करना चाहते हैंः राजनाथ

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गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज असम के एनआरसी विवाद पर राज्यसभा में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि 30 जुलाई को आया ड्राफ्ट अंतिम नहीं है और जो लोग सूची में आने से रह गये हैं उन्हें फिर मौका प्रदान किया जायेगा।

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आज राज्यसभा में कहा कि हाल ही में जारी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे मसौदे को लेकर कुछ लोग डर का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं वहीं निहित स्वार्थ वाले लोग सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार कर रहे हैं ताकि देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ा जा सके तथा मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण किया जा सके। उन्होंने आश्वासन दिया कि एनआरसी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है तथा इसमें किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा रहा है।

गृह मंत्री ने एनआरसी मुद्दे पर उच्च सदन में मंगलवार को हुयी चर्चा का आज जवाब देते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘‘यह बेहद अफसोस की बात है कि कुछ लोग अनावश्यक रूप से डर का माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इस मामले में गलतफहमियां भी फैलाने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार किया जा रहा है ताकि मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण किया जा सके और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ा जा सके।’’ उन्होंने कहा कि इस प्रकार के प्रयास राष्ट्रविरोधी हैं और उनका हर तरह से विरोध किया जाना चाहिए।

सिंह ने विभिन्न सदस्यों की चिंता को दूर करने का प्रयास करते हुए कहा कि यह अंतिम एनआरसी नहीं है, यह मसौदा है। उन्होंने कहा कि अंतिम एनआरसी के प्रकाशन के पहले सभी लोगों को कानूनी प्रावधानों के अनुरूप दावा करने का पर्याप्त मौका मिलेगा। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी। सिंह ने एनआरसी की पूरी प्रकिया को पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ बताया तथा कहा कि इसमें किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि यदि कोई इस प्रकार के आरोप लगाता है तो यह गैर-जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि एनआरसी की पूरी प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार चलायी जा रही है और न्यायालय इसकी लगातार निगरानी कर रहा है।

सिंह ने कहा कि भारत तथा असम की सरकारें प्रतिबद्ध हैं कि समयबद्ध तरीके से सभी वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल किए जाएं। उन्होंने कहा कि असम तथा देश के अन्य राज्यों से आए नागरिकों को समान माना जाएगा। उन्होंने कहा कि सारी अपेक्षित छानबीन और सत्यापन के बाद ही मसौदा तैयार किया गया है। इसमें उन लोगों तथा उनके वंशजों के नाम शामिल हैं जिनके नाम 24 मार्च 1971 तक की मतदाता सूची या एनआरसी 1951 में दर्ज थे। उन्होंने कहा कि भूमि रिकार्ड, पासपोर्ट, जीवन बीमा पालिसी, सहित 12 दस्तावेजों को मंजूरी प्रदान की गयी है।

सिंह ने कहा कि उन्हें इस बात से बड़ी निराशा हुयी कि कुछ जिम्मेदार पदों पर आसीन लोगों ने ऐसे बयान दिए जो भड़काऊ और उत्तेजना पैदा करने वाले थे। उन्होंने कहा कि यह विषय भारत की सुरक्षा से जुड़ा है और सभी से उम्मीद की जाती है कि वे राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखें। उन्होंने कहा कि एनआरसी की प्रक्रिया का प्रारंभ तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा किये गये असम समझौते के अंतर्गत हुआ था। बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया। उन्होंने इस क्रम में एनआरसी की पृष्ठभूमि और इससे जुड़े महत्वपूर्ण घटनाक्रम का उल्लेख किया।

उल्लेखनीय है कि 3.29 लाख लोगों ने एनआरसी के लिए आवेदन किया था और 2.89 करोड़ लोगों के नाम 30 जुलई को जारी मसौदा में शामिल किए गए। इस प्रकार करीब 40 लाख लोगों के नाम मसौदा एनआरसी में शामिल नहीं हुए। इस मुद्दे को लेकर देश भर में एक बड़ा राजनीतिक विवाद शुरू हो गया। उच्च सदन में गत मंगलवार को एनआरसी मुद्दे पर चर्चा हुई थी। चर्चा के दौरान भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने यह दावा किया कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने एनआरसी की प्रक्रिया को पूरा करने की हिम्मत नहीं दिखायी तथा वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस मामले में हिम्मत दिखाते हुए इस काम को आगे बढ़ाया। उनकी इस टिप्पणी का कांग्रेस सहित विपक्ष के कई सदस्यों ने विरोध किया और सदन की कार्यवाही बाधित हुई। पिछले दो दिनों से उच्च सदन में इस मुद्दे को लेकर व्यवधान बना हुआ था।

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